किसान की कर्ज माफी पर सवाल क्यों

Created on Monday, 24 December 2018 09:31
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। अभी हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने वायदा किया था कि यदि उसकी सरकार बन जायेगी तो वह सत्ता संभालते ही दस दिन के भीतर यहां के किसानों के दो लाख तक के कर्जे माफ कर देगी। चुनाव परिणाम आने पर तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकारें बन गयी और इन राज्यों के मुख्यमन्त्रीयों ने सबसे पहला काम कर्ज माफी का किया। इस कर्ज माफी को लेकर कई हल्कों में एतराज के स्वर भी सामने आये हैं। इस तरह की कर्ज माफी को सत्ता की सीढ़ी करार दिया जाने लगा है। इससे जीडीपी पर कुप्रभाव पडे़गा यह तर्क भी सामने आया है कुल मिलाकर सारे गैर कांग्रेसी दलों ने इस कर्ज माफी का समर्थन नही किया है। इन दलों की पीड़ा समझी जा सकती है क्योंकि आज भी देश की 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इसी जनसंख्या से आने वाला किसान कर्ज के कारण आत्म हत्यायें कर रहा है यह कड़वा सच भी सबके सामने आ चुका है। किसान की आय 2022 तक दोगुनी हो जायेगी केन्द्र के इस आश्वासन के बावजूद आज का किसान अपनी फसले सड़क पर फैंकने के लिये विवश हो गया है। जब प्याज सड़कों पर फैंका गया तब सरकार ने उसके लिये मुआवजे़ की घोषणा की। देश के हर कोने से आये किसानों ने दिल्ली में कितना लम्बा प्रदर्शन किया यह भी देश देख चुका है। हर तरह का खाद्यान खेत से ही पैदा होता है यह एक धु्रव सत्य है। खेत का कोई विकल्प नही है और न ही हो सकता है यह एक सच्चाई है और सदैव बनी रहेगी। इस सच्चाई के कारण किसान को ‘‘अन्नदाता’’ की संज्ञा दी गयी है।
इस परिप्रेक्ष में जब किसान की स्थिति का आंकलन किया जाता है और उसकी आत्महत्याओं का सच सामने आता है तो यह सोचने पर विवश होना पड़ता है कि ऐसा हो क्यों हो रहा है और इस स्थिति से बाहर कैसे आया जा सकता है। इसमें सबसे पहले यही आता है कि इन आत्महत्याओं को कैसे रोका जाये इसके लिये तत्काल उपाय सीमान्त और छोटे किसान के कर्ज माफी के अतिरिक्त और कुछ नही हो सकता। इसलिये यह कर्ज माफी एकदम व्यवहारिक और अपरिहार्य कदम हो जाता है। इसका विरोध एकदम गलत है। हां इसी के साथ यह प्रयास भी साथ ही शुरू हो जाना चाहिये कि भविष्य में किसान को कृशि ऋण के कारण आत्महत्या करने की नौबत न आये। यहां यह उल्लेख करना भी प्रसांगिक होगा कि देश में सबसे पहले किसान के कर्जे माफ करने का कदम 1990 में उठाया गया था। जब 1989 में भाजपा के सहयोग के साथ केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी थी और 1990 में विधानसभाओं के चुनाव भी इसी तालमेल के साथ लड़े गये थे। तब स्व. चौधरी देवी लाल ने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा की थी और उस पर अमल किया था। आज जो लोग इसे कांग्रेस का सत्ता प्राप्ति का शाॅर्टकट करार दे रहे हैं उन्हे 1989 और 1990 को याद रखना आवश्यक है। यह सही है कि कर्ज माफी इस समस्या का कोई स्थायी हल नहीं हो सकता क्योंकि यह कर्जमाफी अन्ततः आम आदमी पर ही भारी पड़ती है।
इस कर्ज माफी का स्थायी हल खोजने के लिये आवश्यक है कि यह तय किया जाये कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं। आज जो आंकड़े सामने हैं उनके अनुसार देश में बेरोज़गारी हर वर्ष 9% की दर से बढ़ रही है। आंकडे यह भी बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में निवेश लगातार कम हुआ है। यह निवेश कम होने के साथ ही एनपीए का आंकड़ा भी बढ़ा है। 31 मार्च 2018 को यह एनपीए 12.5 लाख करोड़ हो गया था और देश के अनिल अंबानी जैसे उद्योग घराने पर भी दो लाख करोड़ का कर्ज है। विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहूल चौकसी जैसे बड़े-बड़े एनपीए वाले लोगों की आत्महत्या की खबर कभी नहीं आती है क्योंकि यह लोग एनपीए लेकर विदेश चले जाते हैं। उनके कर्जे को एनपीए का नाम दे दिया जाता है। लेकिन किसान के साथ ऐसा नही होता। बैंक कर्ज वसूली के लिये उसके सिर पर खड़ा रहता है और फिर मज़बूर होकर वह आत्महत्या का रूख करता है। इसलिये यह समझना और मानना आवश्यक है कि कृषि को जबतक उद्योग से ऊपर का दर्जा नही दिया जायेगा तब तक स्थिति में सुधार हो पाना कठिन होगा। कृषि को उद्योग से ऊपर का दर्जा इसलिये चाहिये क्योंकि रोज़गार के जितने अवसर खेत पैदा करता है उतने उद्योग से नहीं। किसान का पूरा परिवार खेत में काम करता है लेकिन उसकी विडम्बना यह है कि उसे अपनी उपज की पूरी कीमत नही मिलती है। वह अपनी ऊपज की कीमत खुद तय नहीं कर पाता। उसके पास यह विकल्प नहीं होता कि यदि उसे पूरा दाम नहीं मिल रहा है तो वह उस ऊपज को अपने पास जमा करके रख ले क्योंकि उसके पास कोल्ड स्टोर की सुविधा नही है न ही उसके पास ऐसा कोई विकल्प रहता है कि उसकी उपज की प्रौसेसिंग से वह कुछ और तैयार कर सके। इसमें सबसे बड़ी हैरानी तो इस बात ही है कि आज तक किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में यह नहीं आता कि वह अपने चुनावक्षेत्र में इतने कोल्डस्टोर बनवा देगा और स्थानीय उपज पर आधारित कोई उ़द्योग इकाई वहां पर सहकारी क्षेत्र में लगा देगा। जब तक किसान के लिये यह सुविधायें उपलब्ध नही होगी उसे कर्ज से मुक्ति दिला पाना आसान नही होगा। आज हर सांसद और विधायक को क्षेत्रिय विकास निधि मिलती है लेकिन इनमें से कभी भी किसी ने इस तरीके से इस पर विचार नही किया। आज हर सांसद/विधायक अपने -अपने क्षेत्र की उपज के आधार पर कोल्ड स्टोर और प्रसंस्करण इकाईयां लगाने की बात शुरू करे दे तो निश्चित रूप से किसान और देश की स्थिति बदल जायेगी। गांवों में अच्छे रोज़गार के साधन उपलब्ध रहेंगे और शहरों की ओर पलायन रूक जायेगा।