जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में गुरूवार को हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गये हैं। पूरा देश इस कायराना हमले के बाद सदमे और आक्रोश में है। हरके इस घटना की निन्दा करते हुए यह सवाल पूछ रहा है कि यह सब कब तक चलता रहेगा? मोदी सरकार के शासन में आतंक की यह सत्राहवीं घटना है। उड़ी में 18 सितम्बर 2016 को हुई आंतकी घटना में सेना बीस जवान शहीद हो गये थे और भारत ने उसका जवाब देते हुए 20 सितम्बर 2016 को ही पाक सीमा में घुसकर सर्जीकल स्ट्राईक करके आतंकीयों के सात ठिकानां को नष्ट करते हुए 38 आतंकीयों को मार भी गिराया था। इस सर्जीकल स्ट्राईक को सरकार का बड़ा कदम माना गया था। इस स्ट्राईक के बाद यह दावा किया गया था कि आतंकी गतिविधियों को शह देने वाले पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जायेगा। लेकिन इस स्ट्राईक के बाद भी यह घटनाएं रूकी नही है। बल्कि अब एक सप्ताह पहले ही खुफिया ऐजैन्सीयों के अर्लट के वाबजूद यह घटना अपने में बहुत सारे सवाल खड़े कर जाती है। यह सोचने पर विवश होना पड़ता है कि क्या जम्मू-कश्मीर को लेकर हमारी नीति सही भी है या नही।
हर आतंकी घटना के बाद उसकी निन्दा की जाती है और उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ होने का आरोप लगाया जाता है। टीवी चैनलों पर बहस चलती है और उस बहस में सेना के कई सेवानिवृत बड़े अधिकारियों को बुलाकर उनकी राय/प्रतिक्रिया ली जाती है। कई चैनल पाकिस्तान के पीरजादा तक की प्रतिक्रिया ले लेते हैं। इस प्रतिक्रिया में आरोप-प्रत्यारोप लगाये जाते हैं जिनसे कोई परिणाम नही निकलता है केवल इसी धारणा को पुख्ता किया जाता है कि इन आतंकी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस बार भी यही हुआ है। इस बार सेना के कुछ विशेषज्ञों ने सेना के लिये खरीदे जा रहे उपकरणों की खरीद प्रक्रिया पर उठने वाले सवालों पर यह कहकर एतराज जताया है कि इससे सेना की तैयारीयों पर असर पड़ता है। शायद उनका इंगित राफेल पर चल रहे वाद विवाद की ओर था। लेकिन इस घटना पर जो प्रतिक्रिया केन्द्र के राज्य मन्त्रा जितेन्द्र सिंह की आयी है उसमें पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की भूमिका पर भी सवाल उठाया गया है। जितेन्द्र सिंह की प्रतिक्रिया से ऐसा लग रहा था कि वह इस घटना पर राजनीतिक सवाल उठा रहे थे। अभी अफजगुरू की फांसी की बरसी के मौके पर जिस तरह से महबूबा मुफ्ती की प्रतिक्रिया रही है शायद जितेन्द्र सिंह उस पर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे थे। क्या केन्द्रिय मंत्री की इस तरह की प्रतिक्रया इस मौके पर आनी चाहिये थी यह एक अपने में बड़ा सवाल है।
आज देश के सामने बड़ा सवाल यह है कि यह सब कब तक चलता रहेगा? और यह सवाल देश की सरकार से ही पूछा जायेगा। आतंक को पाकिस्तान समर्थन दे रहा है देश यह लम्बे अरसे से सुनते आ रहे हैं। लेकिन इसी के साथ एक सच यह भी है कि पाकिस्तान इन घटनाओं को अंजाम देने के लिये हमारे ही युवाओं को इस्तेमाल कर रहा है। उन्हे ही आतंक की ट्रेनिंग दी जा रही है और ट्रेनिंग के बाद हथियार और गोलाबारूद दिया जा रहा है। यह सब हम सुनते आ रहे हैं लेकिन इसे रोक नही पाये हैं। पिछले दिनां यह भी सामने आया है कि अब गोला बारूद की जगह पत्थरबाजी लेती जा रही है। इन पत्थरबाजों के खिलाफ सेना ने कारवाई भी की है। इस कारवाई पर जम्मू-कश्मीर के बड़े नेताओं डा. फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की प्रतिक्रिएं भी आयी हैं। लेकिन क्या इन प्रतिक्रियाओं के तर्क का गुण दोष देश के सामने रखा गया। भाजपा के साथ अब्दुल्ला और महबूबा दोनां काम कर चुके हैं। महबूबा के साथ तो अभी भाजपा सरकार में भी भागीदार थी। लेकिन इस भागीदारी के बावजूद आज तक देश के सामने यह नही रखा गया कि आखिर जम्मू-कश्मीर की समस्या है क्या? वहां का युवा आतंकी क्यों बनता जा रहा है। वहां के नेतृत्व की इसमें क्या भूमिका है? उस भूमिका को सारे देश के सामने क्यों नही रखा जा रहा है? जब पाकिस्तान का ही हाथ इन घटनाओं के पीछे है तो फिर इसके खिलाफ आज तक कोई बड़ी राजनीतिक कारवाई क्यों नही की जा सकी है। जब पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने का प्रस्ताव यूएन में आया था तब चीन ने उस पर वीटो की थी। आज चीन के साथ हमारे व्यापारिक रिश्ते बहुत आगे है। देश के हर प्रदेश में चीन को काम मिला हुआ है। फिर हम चीन को इसके लिये सहमत क्यां नही कर पाये हैं कि वह इस मुद्दे पर भारत का साथ दे। हमारे प्रधानमंत्रा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री के यहां एक समारोह में अचानक पहुंच गये थे। वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रकाश वैदिक पाकिस्तान के एक बड़े आतंकी नेता से मुलाकात करके आये थे और यह चर्चा रही थी कि वह प्रधानमन्त्री के दूत बन कर गये थे। लेकिन इस सबका आखिर परिणाम क्या रहा? आतंकी घटनाएं बराबर जारी हैं। पाकिस्तान के साथ हमारे राजनीतिक रिश्ते अपनी जगह कायम हैं।
यही नही भाजपा जनसंघ के समय से ही जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का विरोध करती आयी है। यह उसका एक बड़ा मुद्दा रहा है। आज केन्द्र में जिस प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा की सरकार रही है शायद आगे इतने बड़े बहुमत के साथ कोई सरकार न बन पाये। लेकिन इस सरकार ने धारा 370 हटाने के लिये कोई कदम नही उठाया। बल्कि जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 35। के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में आयी याचिका पर केन्द्र सरकार का स्पष्ट पक्ष सामने नही आया है। ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर केन्द्र सरकार अपना पक्ष स्पष्ट नही कर पायी है। नोटबंदी लाते हुए भी एक बड़ा तर्क यह दिया गया था कि इससे आतंकवाद खत्म हो जायेगा। लेकिन ऐसा कुछ हो नही पाया है। इससे सीधे यह सवाल उठता है कि इस आतंकवाद की समस्या को राजनीति से ऊपर उठकर हल करने की आवश्यकता है। इसके लिये सारे राजनीतिक दलों को एक होकर इसका हल खोजना होगा। आज देश का कितना बड़ा बजट हमारी रक्षा तैयारियों पर खर्च हो रहा है और इन तैयारियों के नाम पर हम अत्याधूनिक हथियार व गोलाबारूद संग्रह करने के अतिरिक्त और क्या कर रहे हैं। लेकिन जब भी यह हथियार और गोला बारूद चलेगा तो इससे केवल विनाश ही होगा यह तय है। ऐसे में आज आवश्यकता इस बात की है कि समस्याओं को सत्ता के तराजू में तोलते हुए उन्हें आम आदमी के नजरिये से देखा जाये क्योंकि आम नागरिक की कहीं के भी दूसरे नागरिक से कोई शत्रूता नही होती है यह शत्रूता केवल राजनीतिक सत्ता की देन है और अब इससे ऊपर उठना होगा।