नये समीकरणों का संकेत है महाराष्ट्र का घटनाक्रम

Created on Monday, 02 December 2019 11:57
Written by Shail Samachar

क्या महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से अन्ततः बाहर हो गयी है। इस बाहर होने के संकेत तभी उभर गये थे जब शिवसेना ने आधे कार्यकाल के लिये अपने मुख्यमन्त्री की मांग रखी थी और भाजपा ने इससे इन्कार कर दिया था। इस इन्कार के बाद शिवसेना  एनसीपी और कांग्रेस में सहमति बनाने के प्रयास हुए। जब यह प्रयास सफल हो गये तभी रातों रात फिर खेल बदला और सुबह भाजपा के फडनवीस  तथा एनसीपी के अजीत पवार की मुख्यमन्त्री तथा उप मुख्यमन्त्री के रूप में शपथ हो गयी। इस शपथ ग्रहण के बाद फिर खेल बदला और मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहंुच गया। सर्वोच्च न्यायालय ने जब फ्लोर टैस्ट के आदेश दिये तब इस टैस्ट में सफल/असफल होने से पहले ही अजीत पवार और फड़नवीस ने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया। क्योंकि फड़नवीस के पास वांच्छित बहुमत नही था। सत्ता के इस खेल में क्या-क्या कैसे घटा यह सब देश ने देखा है। कौन सा गठनबन्धन कितना सिद्धान्तों पर आधारित रहा है यह गौण हो गया है। इस सबको धूर्तता की पराकाष्टा कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नही होगी।

 महाराष्ट्र में जो कुछ यह घटा है उसने कुछ बुनियादी सवाल भी खड़े किये हैं। यह सवाल उठता है कि जब शिवसेना की शर्त न मानकर भाजपा ने सरकार बनाने के इन्कार कर दिया था और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था तब ऐसी क्या विवशता आ खड़ी हुई कि सबुह-सुबह ही शपथ ग्रहण समारोह करवा दिया गया? क्या उस समय राजनेताओं से हटकर गुप्तचर ऐजैन्सीयों ने भी यह जानकारी नहीं दी कि अजीत पवार के जिस पत्र को आधार बनाया जा रहा है वह वास्तव में ही सही नही है? गुप्तचर ऐजैन्सीयों की यही जिम्मेदारी होती है कि वह हर घटना की तथ्यों सहित सही जानकारी अपने वरिष्ठों के सामने रखें। यहीं पर एक और सवाल खड़ा होता है कि क्या गुप्तचर ऐजैन्सीयां सही जानकारी ही नहीं दे पायीं या फिर उनकी जानकारी को नजरअन्दाज किया गया। इसमें जो भी स्थिति रही हो वह देश के लिये हितकर नही हो सकती यह स्पष्ट है। क्योंकि ऐजैन्सी का आकलन गलत होना या उसे नजरअन्दाज कर दिया जाना देश की सुरक्षा के लिये हानिकारक  हो सकता है। यदि यह मान लिया जाये कि ऐजैन्सियों का आकलन सही था लेकिन उसे राजनैतिक आकाओं ने अपने स्वार्थों के कारण नहीं माना तो इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अब राजनीतिक नेतृत्व अहंकार में आ चुका है और नेतृत्व का अहंकार संगठन और राष्ट्र दोनों के लिये कालान्तर में नुकसान देह साबित होता है।
महाराष्ट्र में जो कुछ घटा है उसकी समीक्षा एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में की जानी आवश्यक है क्योंकि इस समय देश एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विकास दर का आकलन अब पांच प्रतिशत से भी नीचे आ गया है जिस मुद्रा लोन योजना के माध्यम से बड़ा सपना संजोया गया था कि एक घण्टे में एक करोड़ का लोन देकर देश का कायाकल्प हो जायेगा वह योजना एनपीए का सबसे बड़ा आंकड़ा हो गया है क्योंकि 3.63 करोड़ खाते डिफाल्ट हो गये हैं। आर्थिक स्थिति को सुधारने का सरकार का हर उपाय असफल हो गया है। स्थिति एक ऐसे मोड़ पर पहंुच गयी है जहां हर व्यक्ति इससे व्यक्तिगत तौर पर प्रभावित होना शुरू हो गया है। यह वह आम आदमी है जिसके पास कोई नियमित आय किसी वेतन, पैन्शन या दुकान से नही है और इसकी संख्या 80% से भी अधिक है। इसके लिये राममन्दिर, हिन्दु-मुस्लिम, तीन तलाक और धारा 370 से बड़ा सवाल उसकी रोज़ी-रोटी हो जाती है। जब यह आदमी प्रभावित होता है तब यह बिना किसी दल और नेतृत्व के अपनी नाराज़गी सत्ता के खिलाफ मतदान करके अपनी नाराज़गी प्रकट करता है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम इसी स्थिति का प्रतिफल है। इसी का परिणाम है कि महाराष्ट्र में एकदम विरोधी विचारधाराओं के लोगों को इकट्ठा होना पड़ा है। आज हिन्दुत्व को एक राजनीतिक ऐजैण्डे के रूप में लेने के स्थान पर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ के रूप में लेना होगा।
 महाराष्ट्र जहां 288 सदस्यों के सदन में 176 सदस्यों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हों वहां पर यह लोग सीबीआई और ईडी के खौफ को दरकिनार करके इकट्ठे होने को बाध्य हो गये हों तो ऐसी स्थिति को राजनीति में नये समीकरणों की आहट के रूप में लेना होगा। क्योंकि पिछले कुछ समय में जो कुछ याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में आयी हैं वह सीधे रूप में नये उभरते जन सरोकारों और जनाक्रोश की ही अभिव्यक्ति हैं। एक जनहित याचिका में विधायकों/सांसदो को पैन्शन दिये जाने का विरोध किया गया है। एक याचिका में राजनीति दलों द्वारा आपराधिक मामला झेल रहे व्यक्ति को चुनाव में उम्मीदवार न बनाये जाने के लिये चुनाव आयोग से इस संद्धर्भ में नियम बनाने की मांग की गयी है। अश्वनी उपाध्याय की इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने तीन माह में जवाब मांगा है। एडीआर और कामन काज की याचिका में पिछले लोकसभा चुनावों में 347 लोकसभा क्षेत्रों में वीवी पैट और ईवीएम  में आयी विसंगतियों पर कुछ स्थायी प्रावधान बनाये जाने की मांग करते हुए कई और गंभीर विषयों पर ध्यान आकर्षित किया गया है। बीस लाख ईवीएम मशीनों के गायब होने पर पहले ही याचिकाएं लंबित चल रही हैं। इन सारी याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे आने वाले दिनो में सार्वजनिक चर्चा का विषय बनेंगे यह तय है। यह मुद्दे और देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति दोनो का सांझा प्रभाव राजनीति में नये समीकरणों का कारक बनेगा यह निश्चित है और महाराष्ट्र को इसका पहला प्रयोग माना जा सकता है।