पर्यटकों को क्लीन चिट और शादी समारोहों को दोष

Created on Tuesday, 08 December 2020 10:47
Written by Shail Samachar

कोरोना के बढ़ते मामलों का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय से लेकर कई प्रदेशों के उच्च न्यायालयों ने इस पर चिन्ता जताई है। सभी ने इस पर सरकारों से इस संद्धर्भ में उनकी तैयारी को लेकर रिपोर्ट तलब की है। सरकार की तैयारीयों पर सवाल भी उठाये हैं और निर्देश भी दिये हैं। इन निर्देशों में मास्क पहनने और सोशल डिस्टैन्सिंग की अनुपालना करने पर सभी ने एक बराबर जोर दिया है। इनकी अनुपालना न होने पर जुर्माना लगाने के आदेश भी दिये गये हैं। लेकिन यह सवाल कहीं नहीं उठाया गया है कि जब 24 मार्च को पूरे देश में बिना किसी पूर्व सूचना के लाकडाऊन कर दिया गया था तब उसके परिणामस्वरूप सारे अस्पतालों में तुरन्त प्रभाव से व्यवहारिक रूप से सारा ईलाज बन्द हो गया था। उस समय अस्पतालों में जो मरीज दाखिल थे उन्हें घर भेज दिया गया था। ओपीडी बन्द कर दी गयी थी। इसके कारण वह मरीज बिना ईलाज के हो गये थे। बल्कि यह कहना ज्यादा सही और व्यवहारिक होगा कि आज भी कोरोना के अतिरिक्त अन्य बिमारियों का ईलाज पूरी तरह बहाल नहीं हो पाया है। लोग अभी भी अस्पतालों में ईलाज के लिये जाने से डर रहे हैं। लोगों में यह डर कितना और किस कदर घर कर गया है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस कोरोना काल में शिमला के एक शमशान घाट में कोरोना मृतकों के हुए अन्तिम संस्कारों में से पांच दर्जन से अधिक मृतकों की अस्थियां लेने कोई परिजन वहां नहीं आया है। प्रबन्धकों के सामने यह एक समस्या खड़ी हो गयी है कि वह इन अस्थियों का विसर्जन कहां और कैसे करें।
हिन्दु संस्कारों में अस्थि विसर्जन की अपनी एक प्रक्रिया और महता है। लेकिन इससे इन संस्कारों की प्रसांगिकता पर सवाल खड़ा हो जाता है। क्योंकि कोरोना से जिन लोगों की शिमला में मृत्यु हो गयी थी, उनका अन्तिम संस्कार शिमला में ही करने के आदेश थे। ऐसे शवों को उनके पैतृक स्थानों पर नहीं ले जाया गया। इनका अन्तिम संस्कार भी प्रशासन की नामजद टीम ने किया। आधी रात को भी संस्कार कर दिये जाने की घटना यहीं पर हुई थी। इस पर जांच तक बैठी थी। यह सब इसलिये हुआ क्योंकि आम आदमी को सरकार की व्यवस्था ने इतना डरा दिया कि वह अपनों के संस्कार में शामिल होने से भी डरा और आज उनकी अस्थियां लेने का भी साहस नहीं कर पा रहा है। ऐसे में क्या यह सवाल उठना स्वभाविक नहीं है कि इस डर से आम आदमी को बाहर कौन निकालेगा और कैसे निकालेगा। जिन मरीजों का ईलाज लाकडाऊन के कारण एक दम बन्द हो गया था यदि उनमें से 25% भी गंभीर रहे हों और उनमें से किसी को भी कोरोना का संक्रमण हो गया हो तो उसकी हालत क्या हुई होगी, क्या वह जिन्दा रह पाया होगा? क्या इसके लिये किसी की जिम्मेदारी नहीं बनती है?
आज प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिन्ता व्यक्त करते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार को यह निर्देश दिया था कि प्रदेश में आने वाले हर व्यक्ति का कोरोना टैस्ट करवाया जाये। ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों पर होटल व्यवसायियों ने आपत्ति जताई और मुख्यमन्त्री ने इस चिन्ता को अधिमान देते हुए यह टैस्ट करवाने से छूट दे दी है। मुख्यमन्त्री ने कोरोना के बढ़ते फैलाव के लिये शादी आदि समारोहों के आयेाजनों को जिम्मेदार ठहराया है। क्योंकि उच्च न्यायालय ने भी आम आदमी द्वारा लापरवाही बरतने को जिम्मेदार माना है। इस तरह आम आदमी का व्यवहार मुख्यमन्त्री और उच्च न्यायालय दोनों की नज़र में दोषी है। सरकार के निर्देशों के बाद शादी आदि समारोहों का निरीक्षण करना भी प्रशासन ने शुरू कर दिया है। कुल्लु, मनाली मेें तो एक ऐसे आयोजक की गिरफ्तारी भी की गयी है। प्रशासन के इस कदम से आम आदमी में डर और कितना बढ़ेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन यहां पर यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि सरकार ने यह कैसे मान लिया कि प्रदेश मेे आने वाले पर्यटक कोरोना के वाहक नही हो सकते। एक पर्यटक का ठहराव प्रदेश में होता ही कितना हैं शायद एक सप्ताह से ज्यादा नहीं। फिर उसके कारण किसी को संक्रमण हुआ है या वह स्वयं संक्रमित हुआ है इसकी जानकारी तो शायद एक सप्ताह के भीतर नहीं आ पाती है। यहां पर कोरोना के मामले तब बढ़ने शुरू हुए थे जब प्रदेश में बाहर से आने वालों को अनुमति दी गयी थी। तब तो शादी समारोह भी शुरू नहीं हुए थे। फिर मुख्यमन्त्री सहित आधे से ज्यादा मन्त्री संक्रमित हो चुके हैं। एक दर्जन से ज्यादा विधायक और इतने ही अधिकारी संक्रमित हो चुके हैं। पुलिस के साथ पर्यटकों की बदतमीज़ी के कई मामले मास्क आदि न पहनने को लेकर शिमला में ही घट चुके हैं। ऐसे में होटल मालिकों के दबाव में पर्यटकों को क्लीन चिट देना व्यवहारिक नहीं होगा।