जब सरकार ही सच का सामना करने का साहस न कर पाये जो सामने दिवार पर साफ-साफ लिखा है उस पर आंखे बन्द कर ले और यह सब लोकतान्त्रिक सरकार में हो जाये तो क्या लोकतन्त्र को बचाया रखा जा सकेगा? आज यह सवाल हर संवेदलशील बुद्धिजीवी के लिये एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है क्योंकि आज सरकार यह कह रही है कि इस कोरोना में आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। किसी भी राज्य सरकार या केन्द्रशासित प्रदेश से ऐसी कोई जानकारी कोई आंकड़ा उसके पास आया ही नहीं है। आक्सीजन के लिये किस तरह का हाहाकार पूरे देश में मचा हुआ था यह पूरा देश जानता है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार किस तरह आक्सीजन के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गये थे यह पूरा देश जानता है बल्कि देश के लगभग सभी उच्च न्यायालयों ने इस संकट का संज्ञान लेकर सरकारों से सवाल पूछे हैं और समय- समय पर रिपोर्टें तलब की हैं यह सब रिकार्ड उपलब्ध है। जब राज्य सरकारें इस संकट से जूझ रही थी और आक्सीजन की सप्लाई केन्द्र से हो रही थी क्या तब केन्द्र सरकार का राज्यों से यह जानना फर्ज नहीं था कि कहीं आक्सीजन की कमी से कोई मौतें तो नहीं हो रही है। आज जब केन्द्र सरकार यह कह रही है कि राज्यों ने ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं भेजी है तब क्या केन्द्र को राज्यों से यह पूछना-जानना नहीं चाहिये था। क्या आज राज्यों पर जिम्मेदारी डालकर उनको लोगों का दर्द कम किया जा सकता है जिन्होंने आक्सीजन के कारण अपनों को खोया हैं क्या केन्द्र सरकार का यह इन्कार उन लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कना नहीं हो जायेगा? इस समय मौत के आंकड़ो को लेकर केन्द्र और अन्य ऐजेन्सीयों के आंकड़ों में जो अन्तर सामने आ रहा है उससे सरकार की विश्वसनीयता पर और गंभीर प्रश्नचिन्ह लगते जा रहे हैं। क्योंकि सरकार का आंकड़ा अभी चार लाख बीस हजार तक ही पहुंचा है जबकि अन्यों के मुताबिक यह आंकड़ा चालीस लाख से अधिक है। इन अन्यों में एक अध्ययन करने वाले इसी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार रहे हैं। कोरोना के प्रबन्धन में सरकारों की असफलता झेल रहे आम आदमी के सामने जब मौतों पर भी सरकार का इन्कार सामने आया है तब उसकी हालात क्या हो रही होगी इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि जब मौतों को भी सरकार राजनीति का विषय बना दे तो ऐसी सरकार का केवल मतदान के दिन ही सच से सामना करवाया जा सकता है।
इसी तरह जासूसी प्रकरण में भी सरकार अपनी भूमिका से इन्कार कर रही है। सरकार और भाजपा का हर नेता केन्द्र से लेकर राज्यों तक सरकार का पक्ष रखते हुए इस प्रकरण को बाहरी ताकतों की साजिश करार दे रहा है। इस प्रकरण मे जो अब तक खुलासे सामने आये हैं उनके मुताबिक इसमें पत्रकारों, राजनेताओं, सरकारी अधिकारियो,ं उद्योगपतियां और न्यायपालिका तक के फोनटैप हुए हैं। इन लोगों की जासूसी की गयी है। इस जासूसी के लिये इजरायल की एक कम्पनी एनओएस का पैगासस स्वाईवेय इस्तेमाल हुआ है। मोदी सरकार के दो मन्त्रीयों की भी जासूसी हुई है। सरकार यह जासूसी होने से इन्कार नहीं कर रही है केवल यह कह रही है कि इसमें उसका हाथ नहीं है। भाजपा नेता पूर्व मन्त्री डा़ स्वामी ने यह कहा है कि जासूसी करने वाली कंपनी एनओएस पैसे लेकर जासूसी करती है। इजरायल का कहना है कि यह स्पाईवेयर केवल सरकारों को ही बेचा जाता है। भारत सरकार इसे देश के खिलाफ विदेशी ताकतों की साजिश करार दे रही है। ऐसे में क्या यह सवाल उठना स्वभाविक नहीं हो जाता कि जब कोई बाहरी ताकत देश के खिलाफ ऐसा षडयन्त्र कर रही है तो भारत सरकार को तुरन्त प्रभाव से इसकी जांच करनी चाहिये। लेकिन मोदी सरकार यह जांच नहीं करवाना चाहती। जब सरकार ने यह जासूसी नहीं करवाई है तो वह जांच करवाने से क्यों भाग रही है। जासूसी हुई है इससे सरकार इन्कार नहीं कर रही है। सरकार ने की नहीं है। तब क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं बन जाती है कि इस प्रकरण की जांच करे। सरकार का जांच से भागना देश और सरकार दोनों के ही हित में नहीं होगा।
आक्सीजन की कमी से हुई मौतों से इन्कार करना और इतने बड़े जासूसी प्रकरण के घट जाने पर जांच से भागना ऐसे मुद्दे आज देश के सामने आ खड़े हुए हैं जिन पर हर आदमी को अपने और अपने बच्चों के भविष्य को सामने रख कर विचार करना होगा और अपने बच्चों के भविष्य को सामने रखकर विचार करना होगा। क्योंकि ऐसे ही इन्कारों का परिणाम है मंहगाई और बेरोज़गारी।