अन्य पिछड़ा वर्गो के लिये 1979 में जब तब की जनता पार्टी सरकार ने वीपी मण्डल की अध्यक्षता मे आयोगा का गठन किया था तब पूर्व जन संघ भी जनता पार्टी और उसकी सरकार में शामिल था। क्योंकि 1977 में कांग्रेस के विरोध में वाम दलों को छोड़कर अन्य लगभग सभी विपक्षी दलों ने अपने को विलय करके जनता पार्टी का गठन किया था। 1979 में जब मण्डल आयोग का गठन किया गया था तब जनता पार्टी में विलय हुए किसी भी घटक ने इसका विरोध नहीं किया था। यदि 1980 में मण्डल आयोग की रिपोर्ट आने से पहले ही जनता पार्टी की सरकार न गिर जाती तो शायद उसी दौरान मण्डल की सिफारिशें लागू हो जाती और कोई विरोध न होता। 1980 के बाद केन्द्र में गैर कांग्रेसी सरकार 1989 में वीपी सिंह की अध्यक्षता में बनी और जन संघ से बनी भाजपा भी इस सरकार में शामिल थी। इसलिये यह आशंका ही नहीं थी कि भाजपा मण्डल की सिफारिशों को विरोध करेगी। बल्कि मण्डल की सिफारिशों का प्रारूप सारी राज्य सरकारों को उनकी राय जानने के लिये भेजा गया था। शायद किसी भी राज्य सरकार ने इसका विरोध नहीं किया। कुछ ने इस पर खामोशी अपना ली भी जिनमें हिमाचल की शान्ता सरकार भी शामिल थी। इस परिदृश्य में जब यह सिफारिशें लागू की गयी तब जो विरोध हुआ उसे भाजपा का प्रायोजित विरोध माना गया जो वीपी सिंह की सरकार गिरने के साथ ही समाप्त हो गया।
इस तरह जो विरोध उस समय शुरू हुआ था वह आज तक किसी न किसी शक्ल में चलता आ रहा है। आरक्षण विरोधीयों में यह धारणा बन चुकी है कि भाजपा की सरकार ही इसे समाप्त करेगी। इसी धारणा के परिणामस्वरूप 2014 में जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार आयी है तब से कई राज्यों में आरक्षण को लेकर आन्दोलन हो चुके हैं और यह मांग रही है कि या तो हमे भी आरक्षण दो या सबका बन्द करो। इसीके परिणामस्वरूप आज स्वर्ण आयोग गठित करने की मांग उठनी शुरू हो गयी है। जब कि भाजपा के इसी शासन में सर्वोच्च न्यायालय ने जब प्रोमोशन में आरक्षण पर रोक लगायी तब संसद में इस फैसले को पलट दिया। अब जब महाराष्ट्र सरकार के फैसले को शीर्ष अदालत ने संविधान के खिलाफ करार दिया तो इसे भी संसद में पलट कर राज्यों को अधिकार दे दिया कि वह ओबीसी की सूची अपने अनुसार तैयार कर सकते हैं। स्वभाविक है कि जब इस सूची में नये लोग जुड़ेंगे तब यह अपने लिये और आरक्षण की मांग करेंगे। तब तक रोहिणी आयोग की रिपोर्ट भी आ जायेगी और एक नया विवाद खड़ा हो जायेगा। आरक्षण जारी रहेगा और इसे कोई खत्म नही कर सकता। भाजपा ऐसा नहीं होने देगी इसकी स्पष्ट घोषणा गृहमन्त्री अमितशाह कर चुके हैं। 2014 से 2021 तक सरकार के आचरण पर यदि नजर डाली जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा का हर कदम आरक्षण को संरक्षण देने का ही रहा है। इस परिदृश्य मे यह नहीं लगता कि भाजपा की मोदी सरकार स्वर्ण आयोग का गठन करके स्वर्णों के लिये अलग से आरक्षण की कोई व्यवस्था कर पायेगी। पिछले लेख में भी मैंने यह आशंका व्यक्त की थी। उस पर कई पाठकों ने इस समस्या का समाधान सुझाने का आग्रह किया है। इस पर कुछ कहने का प्रयास करूंगा।
स्मरणीय है कि जब इस संद्धर्भ में काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला आयोग 1953 में गठित हुआ था उसने 1955 में अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए यह आग्रह किया था कि इस रिपोर्ट पर अमल न किया जाये। काका कालेलकर ने भी अपने पत्र में यह सुझाव दिया था कि इन जातियों/वर्गों को मुख्य धारा में लाने के लिये आरक्षण का नहीं वरन आर्थिक प्रोत्साहन देने का प्रयास किया जाये इसके कुछ सुझाव भी दिये थे। इसके बाद जब दूसरे आयोग की सिफारिशों को 1990 में लागू किया गया और उसका जमकर विरोध हुआ तब आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। इन्दिरा साहनी मामले में इसका फैसला आया। सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण का आधार आर्थिक संपन्नता करने को कहा। इसके लिये क्रीमी लेयर तैयार करने की बात की और उस समय उसकी सीमा एक लाख रूपये रखी गयी। लेकिन आज मोदी सरकार के आने के बाद इस क्रीमी लेयर की सीमा 2015 में आठ लाख कर दी गयी है। इस पर आज तक चार बार इस सीमा में संशोधन किया गया है। इस पर अगर गंभीरता से विचार करे तो इसका अर्थ यह निकलता है कि हर वह आदमी जिसकी आय आठ लाख नहीं है वह आरक्षण का हकदार है। आज शायद प्राईवेट सैक्टर में काम/ नौकरी करने वाले 90% लोग ऐसे नहीं मिलेंगे जो एक साल में आठ लाख कमा पाते हो या पगार लेते हों। बल्कि सरकारी क्षेत्र में नौकरी करने वालो में भी शायद 80% ऐसे कर्मचारी होंगे जो 8 लाख की बचत नहीं कर पाते हैं। तब प्रति व्यक्ति आय ही अभी तक दो लाख नही हो पायी है तो आठ लाख होने मे तो और कई दशक निकल जायेंगे। जब क्रीमी लेयर की सीमा आठ लाख कर दी गयी है तब आरक्षण का प्रतिशत भी उसी अनुपात में होना चाहिये। जब क्रीमी लेयर की यह सीमा इसी सरकार ने 2015 में की है तब उस पर अमल करने में सरकार को परेशानी क्यों होनी चाहिये। क्या क्रीमी लेयर की इस सीमा का किसी ने विरोध किया है? क्या इसी में सारी जातियां अपने आप ही शामिल नहीं हो जाती। क्रीमी लेयर के मानक पर अमल करने से किसी भी जाति के लिये अलग से कोई व्यवस्था करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है क्योंकि यह व्यवस्था तो सुप्रीम कोर्ट ने सुझायी है। आज तो स्वर्ण आयोग की मांग करने की बजाये क्रीमी लेयर पर अमल करवाने के लिये सारी जातियों को एक मंच पर आकर इसकी मांग करनी चाहिये। जब सरकार अपनी ही व्यवस्था पर अमल करने को तैयार न हो तो उससे समझ जाना खहिये की सरकार की नीयत क्या है। इस समय जब सब कुछ आऊट सोर्स किया जा रहा है तब सरकार के पास नौकरी देने के लिये बचेगा ही क्या।