पिछले दिनों मोदी सरकार ने बैड बैंक (Bad Bank) की स्थापना की है और केन्द्र सरकार ने इसमें 36000 करोड़ निवेश करके इसकी शुरूआत कर दी है। भारत में यह प्रयोग पहली बार किया जा रहा है। वैसे वित मंत्री निर्मला सीतारमण इस पर 2017 से विचार कर रही थी। लेकिन अभी सितंबर माह में ही एन पी ए को लेकर जो रिपोर्ट ऐसोचेम और क्रिसील की आयी है उसके बाद यह कदम तुरंत प्रभाव से उठा लिया गया है इसके परिणाम कैसे रहते हैं यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। वैसे यह प्रयोग पहली बार 1988 में अमेरिका के एक बैंक समूह में हुआ था। उसके बाद 2012 में स्पेन, फीनलैंड, स्वीडन, बैल्जियम और इण्डोंनेशिया में हो चुके हैं लेकिन यह प्रयोग बहुत सफल नहीं रहे हैं। बहुत संभव है कि अधिकांश पाठकों को यह जानकारी ही नहीं है कि यह बैड बैंक की अवधरणा है क्या और इसे स्थापित करने की आवश्यकता क्यों पडती है तथा इसका देश की आर्थिकी पर क्या प्रभाव पडता है। बैड बैंक का सीधा संबंध बैड लोन से हो जाता है जब बैंकों का एन पी ए एक ऐसी सीमा तक पहुंच जाता है जो उनके प्रबंधन के वश में नहीं रहता और उससे बैंको का सामान्य काम काज भी प्रभावित हो जाता है तथा उसे बट्टे खाते में डालकर भी स्थिती सुधारने की संभावना ना रहे तब बैड बैंक का प्रयोग अंतिम विकल्प रह जाता है। किसी भी बैंक या अन्य वितीय संस्थान द्वारा दिए गए कर्ज की वापसी आनी रूक जाती है और ऐसा लगातार तीन माह तक चलता रहे तथा कर्ज वापसी की सारी संभावनाएं धूमिल हो जाऐं तब ऐसे कर्ज को बैंक बैड बैंक को बेच देता है। ऐसे कर्ज को घाटे में बेचा जाता है। इससे कर्ज देने वाले बैंक के रिकार्ड से एन पी ए का दाग हट जाता है और उसकी वर्किंग सामान्य हो जाती है।
दूसरी ओर अब इस कर्ज को वसूलने की सारी जिम्मेवारी बैड बैंक की हो जाती है। बैड बैंक कर्जदार की समंपत्तियां बेचे या गांरटी देने वालां से वसूली करे यह सब बैड बैंक की अपनी कार्यशैली पर निर्भर करता है। यह सब करने के बावजूद भी यदि कुछ कर्ज की वसूली न हो पाये तो इसकी भरपाई करने की गांरटी सरकार की होती है। इस तरह बैड बैंक बैड लोन की वसूली करने का एक और मंच बन जाता है। ऐसे में जो सवाल खडें होते हैं कि जब किसी सरकार को बैड बैंक बनाने की स्थिति खडी हो जाती है तो उसका अर्थ होता है कि अधिकांश बैंक फेल होने के कगार पर पहुंच गये हैं। यह बैंक अपना काम जारी रख पाने की स्थिती में नहीं रह गये हैं। इन्हें लोगों के जमा पर ब्याज घटाने और कर्ज देने की ब्याज दर बढ़ाने की अनिवार्यता हो जाती है। बल्कि नये कारोबार के लिए यह ऋण देने की स्थिती में नहीं रह गए होते हैं। ऐसी स्थिती में ही मंहगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ती चली जाती है। इस समय देश ऐसी ही स्थिती से गुजर रहा है। यह मंहगाई और बेरोजगारी सरकार के नियंत्रण से पूरी तरह बाहर हो जायेगी। इस स्थिति पर कैसे नियंत्रण पाया जाए इस पर विचार करने से पहले कर्ज और एन पी ए के आंकडो पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
वर्तमान सरकार ने 2014 में सत्ता संभाली थी। उस समय केंद्र सरकार का कर्ज 53.11 लाख करोड़ था जो आज बढ़कर 150 लाख करोड़ से उपर हो गया है। उस समय बैंकों का कुल एन पी ए 2,24,542 करोड़ था जो आज बढ़कर दस खरब करोड़ हो गया है। दिसम्बर 2017 में यह एन पी ए 7,23,513 करोड़ था। यह आंकडे आर टी आई में सामने आये है। 2018 में सरकार ने एक योजना शु़रू की थी प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना। इसमें 59 मिनट में एक करोड़ का कर्ज देने की घोषणा की गयी थी। इस योजना के तहत 2019 के मध्य तक खुले मन से बैंको ने एम एस एम ई के लिये कर्ज बांटे हैं। 2019 में ही लोकसभा के लिये चुनाव हुए जिनमें भारी बहुमत से भाजपा फिर सता में आ गयी। अब जो आर टी आई में एन पी ए की सूचना आयी है उसके मुताबिक एम एस एम ई के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में जो कर्ज दिया गया है उसी के कारण दिसम्बर 2017 का सात लाख करोड़ का एन पी ए सितंबर 2021 में ऐसोचेम की रिपोर्ट के मुताबिक दस खरब को पहुंच गया है। प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में बांटे गए ऋण के अधिकांश लाभार्थियों की तो पूरी जानकारी भी बैंकों के पास नहीं है। हर प्रदेश में ऐसे ऋण दिये गये हैं इनकी वसूली लगभग अंसभव हो गयी है। इसी वसूली के लिये बैड बैंक बनाना पडा है। इसके माध्यम से भी यह वसूली हो पायेगी यह असंभव है। यह भी तय है कि जब बैंक इस हालत तक पहुंच गये हैं तो इसका असर मंहगाई और बेरोजगारी पर पडेगा। अभी आम आदमी को यह जानकारी नहीं है कि सता में बने रहने के लिये ही प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना शुरू की गयी थी जो 2019 में ही बंद कर दी गयी अब इस एन पी ए से उभरने के लिए ही कर्ज को बेचने की योजना बैड बैंक के माध्यम से लायी गयी है। आर्थिकी की समझ रखने वालों की नजर में बैड बैंक की नौबत आना एक बडे़ खतरे का संकेत है और इसके प्रभावों से बाहर आ पाना आसान नही होगा।