क्या उत्तर प्रदेश में ‘मोदी है तो मुमकिन है’-हो पायेगा

Created on Tuesday, 25 January 2022 10:12
Written by Shail Samachar

पांच राज्यों के चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान हो जायेगा। जिस तरह कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं और हर राज्य ने इसके कारण बंदीशें लगा रखी हैं उससे यह आशंका अभी भी बराबर बनी हुई है कि कहीं यह चुनाव कुछ समय के लिए टालने न पड़ जायें। फिर अब सर्वाेच्च न्यायालय में भी एक याचिका आ चुकी है जिसमें चुनाव टालने का आग्रह किया गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहले ही चुनाव टालने का आग्रह कर चुका है। ऐसे में शीर्ष अदालत का फैसला क्या आता है उस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। क्योंकि कुछ लोग इन प्रयासों को प्रायोजित भी करार दे रहे हैं। इस परिदृश्य में कुछ बिंदुओं पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। यह चुनाव विवादित कृषि कानूनों की वापसी के बाद हो रहे हैं। जब इन कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन चल रहा था तब हुये बंगाल और अन्य राज्यों के चुनाव के परिणाम क्या रहे हैं यह सारा देश जानता है। उस समय बंगाल में भाजपा ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी थी और ममता के हाथों बच नहीं पायी थी। वहां से प्रधानमंत्री का जो ग्राफ गिरना शुरू हुआ था वह अब तक संभल नहीं पाया है। बल्कि अब जिस तरह से पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया उसकी हवा सर्वाेच्च न्यायालय ने जांच कमेटी बनाकर निकाल दी है। यही नहीं प्रधानमंत्री की विदद्वता का भी उस समय खुलासा सामने आ गया जब वह एक आर्थिक मंच पर विश्व को संबोधित करते हुए टेलीप्राम्पटर का लिंक टूटते ही एक शब्द भी आगे नहीं बोल पाये। इससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा शासित राज्य अकेले प्रधानमंत्री के नाम पर ही अब सत्ता में वापसी की उम्मीद नहीं कर पायेंगे।
इन चुनावों में यह भी सामने आ गया है कि अब लोग भाजपा छोड़कर अन्य दलों में जाने शुरू हो गये हैं। 2014 में जो कांग्रेस के साथ घटा था वह अब भाजपा के साथ घटना शुरू हो गया है। इसमें भी सबसे अहम यह है कि जो लोग मंत्री विधायक भाजपा छोड़कर जा रहे हैं वह सबसे बड़ा आरोप यही लगा रहे हैं कि भाजपा सरकारों ने पिछड़े वर्गों दलितों बेरोजगार युवा छोटे किसानों आदि के लिए कुछ नहीं किया है। आज देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ही इस सरकार के कार्यकाल में 16 लाख नौकरियां छीनी है। जबकि यूपी में बेरोजगारी ही सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में यह बेरोजगार कैसे इस सरकार को समर्थन देंगे यह एक बड़ा सवाल है। पिछड़े और दलित इस सरकार में उपेक्षा के शिकार हुये हैं। यह सीधा आरोप सरकार से निकलने वालों का है। मुसलमानों को पिछले चुनाव में भी भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया था इस बार किसी मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया जाता है या नहीं यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा।
इस सबसे हटकर बड़ा सवाल किसानों का है। सरकार ने भले ही कृषि कानून वापस ले लिये हैं। लेकिन एमएसपी का मुद्दा अभी भी अपनी जगह खड़ा है। इस पर सरकार आगे नहीं बढ़ी है। बल्कि जिस ढंग से बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन, बीज और खाद आदि सभी कुछ प्राइवेट सैक्टर के हवाले कर दिया गया है उससे क्या किसान की निर्भरता कॉर्पाेरेट सैक्टर पर नहीं हो जायेगी। अब तो अदानी कैपिटल को एसबीआई का लोन पार्टनर तक बना दिया गया है। जो किसानों को ऋण देने वाला सबसे बड़ा संस्थान होगा। किसान आंदोलन का सबसे बड़ा मुद्दा यह था कि कृषि क्षेत्र को कारपोरेट सेक्टर के हवाले किया जा रहा है। जब सरकार ने वह हर चीज जो किसान को खेती के लिए आवश्यक है उसे कॉरपोरेट सैक्टर के हवाले कर दिया है तो क्या परिणामतः कृषि पर इस क्षेत्र का कब्जा नहीं हो जायेगा ? क्या यह सब किसान की समझ में नहीं आयेगा ? निश्चित रूप से किसान इसे समझेगा और भाजपा को चुनाव में समर्थन देने पर दस बार सोचेगा? इस तरह जो भी परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं वह एक-एक करके सरकार के प्रतिकूल ही होती जा रही हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस ने जिस तरह से महिलाओं और युवाओं को उत्तर प्रदेश में अपनी नीतियों का केंद्र बिंदु बना दिया है वह अपने में एक नया प्रयोग है। पंजाब में दलित मुख्यमंत्री को केंद्र में रखा गया है। इससे कांग्रेस का पिछड़ों, दलितों, महिलाओं और युवाओं को लेकर एजेंडा साफ हो जाता है। फिर कांग्रेस यूपी में अकेले चुनाव लड़ रही हैं और उसने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देकर और युवाओं के लिये अलग रोजगार नीति घोषित करके अपने एजेंडे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट कर दी है। इससे सारा चुनावी परिदृश्य बदल गया है। ऐसे में इस चुनाव के परिणामों का देश पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा यह तय है।