एग्जिट पोल का सच

Created on Tuesday, 08 March 2022 16:05
Written by Shail Samachar

सात मार्च को अंतिम चरण का मतदान था। इस मतदान के बाद एग्जिट पोल के परिणाम आने शुरू हो गये जो मतगणना तक चलते रहेंगे। हर चुनाव के बाद एग्जिट पोल और चुनाव से पहले ओपिनियन पोल का चलन काफी अरसे से चला आ रहा है। लेकिन इनके परिणाम कभी भी पूरी तरह सही साबित नहीं हुए हैं यह भी सच है। इस परिदृश्य में यह दावे के साथ कहा जा सकता है यह पोल परिणाम सही सिद्ध नहीं होंगे। हमारा आकलन पहले भी यह रहा है कि पांचों राज्यों में भाजपा की जीत नहीं होगी। पंजाब को लेकर भी यह आकलन है कि वहां पर आप की सरकार बनने की कोई संभावना नहीं है। इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहेगा यह हमारा मानना है। चुनाव परिणाम स्पष्ट कर देंगे कि किस का आकलन सही रहेगा। इसलिए आकलन का आधार क्या है इस पर अभी कोई लंबी चर्चा करने का औचित्य नहीं है।
लेकिन एग्जिट पोल को लेकर यह सामने रखना आवश्यक हो जाता है की मतगणना के दिन से शुरू होने से पहले तक पोस्टल बैल्ट आ सकते हैं। जो लोग मतदान के अंतिम दिन के बाद पोस्ट से अपना मतदान भेजेंगे उस मतदाता की एग्जिट पोल के परिणामों से प्रभावित होने की संभावना बराबर बनी रहती है। क्योंकि जब वह इन पोल परिणामों में यह देखता है कि सरकार तो अमुक पार्टी की बन रही है तो उसी के पक्ष में मतदान करना उचित रहेगा। इससे जिन उम्मीदवारों की हार जीत सौ पच्चास वोटों से हो रही होती है उनको इससे लाभ मिल जाता है। इसी कारण से यह कहना शुरू कर दिया जाता है कि बड़े कम अंतर से हार जीत होगी। बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में इन्हीं पोस्टल बैल्ट से पूरा चुनावी परिणाम बदल गया था यह देश देख चुका है। इसी परिदृश्य में यह उठाया जाना आवश्यक हो जाता है कि क्या मीडिया को इस तरह का आचरण करना चाहिए? क्या इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठेंगे? जब मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो देता है तब समाज में अराजकता पनपती हैं। जो कालांतर में सबको घातक सिद्ध होती है। मीडिया के साथ ही प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व भी अविश्वसनीय हो जाता है।
आज देश ही नहीं पूरा विश्व संकट के दौर से गुजर रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर नीचे तक हर वैश्विक संस्था की प्रसंगिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिये हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मानवता से ऊपर व्यापार हो गया है। हर राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की आपदा में अपने लिये व्यापारिक अवसर तलाशने को प्राथमिकता दे रहा है। इसलिए कोई भी राष्ट्र यह युद्ध छिड़ने से पहले अपने नागरिकों को यूक्रेन से नहीं निकाल पाया। क्या सभी देशों की गुप्तचर संस्थाओं को यह युद्ध छिड़ने की संभावनाओं की पूर्व जानकारी ही नहीं हो सकी? हमारे ही मीडिया संस्थानों के विदेश में बैठे पत्रकारों को भी युद्ध की पूर्व जानकारी क्यों नहीं मिल पायी? यदि गुप्तचर एजेंसियों और मीडिया को जानकारी थी लेकिन सरकार ने उसके आधार पर अपने लोगों को यूक्रेन से निकालने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया? ये ऐसे सवाल हैं जो देर सवेर उठेंगे ही। सबकी विश्वसनीयता पर यह प्रश्न चिन्ह होगा। क्योंकि यह सब कुछ इन्हीं चुनाव के दौरान घटा और हमारा नेतृत्व इस युद्ध के साये में भी सशक्त नेतृत्व के लिये समर्थन मांग रहा था।
इन चुनाव परिणामों का देश की राजनीति पर एक बड़ा और लंबा असर पड़ेगा यह तय है। क्योंकि इन चुनावों में महंगाई और बेरोजगारी जिस हद तक लोगों ने झेली है उसके असर का भी प्रभाव इन परिणामों में सामने आयेगा। देश के किसान ने जिस तरह से तीन कानूनों का विरोध किया और सात सौ किसानों ने अपनी आहुति दी इस सबका जवाब भी यह परिणाम होंगे। एक तरह से यह चुनाव आम आदमी की समझ की परीक्षा होंगे और उसका परिणाम एग्जिट पोल नहीं होंगे।