चुनाव परिणामों के बाद एक पखवाड़े के भीतर ही पैट्रोल डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ गये हैं। 800 दवाइयों के दाम 1 अप्रैल से बढ़ने का समाचार आ चुका है। इसका असर अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर भी पड़ेगा। यह निश्चित है देश से विदेशी मुद्रा भंडार 9 अरब डॉलर कम हो गया है। रिलायंस ने अपने पेट्रोल पम्प बंद करने का ऐलान कर दिया है। वर्ष 2022-23 के बजट में मनरेगा, ग्रामीण विकास, जल जीवन, फसल बीमा और पीडीएस के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में काफी कटौती की गयी है। इस कटौती का परिणाम भी महंगाई और बेरोजगारी के रूप में सामने आयेगा ही। जैसे-जैसे यह महंगाई तथा बेरोजगारी बढ़ती जायेगी उसी अनुपात में सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर चर्चायें बढ़ेंगी। इन चर्चाओं को अन्य मुद्दे रोक नहीं पायेंगे। जिस विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी को सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि मानती थी। आज उसमें एकदम 9 अरब डॉलर की कमी आने से सारा परिदृश्य ही बदल गया है। जब गांव और रक्षा से जुड़े बजट में ही सरकार को कटौती करनी पड़ जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि जो प्रचारित किया जा रहा है सच उससे कहीं अलग है।
मोदी सरकार का सबसे पहला और बड़ा फैसला नोटबंदी का आया था। नोटबंदी लाने के जो कारण और लाभ बताये गये थे उनका सच इसी से सामने आ जाता है कि 99. 6ः पुराने नोट नये नोटों से बदला दिये गये। इसका अर्थ है कि काले धन के जो आंकड़े और इसके आतंकवाद में लगने के जो आंकड़े परोसे जा रहे थे वह सब काल्पनिक थे। केवल सत्ता परिवर्तन का हथियार बनाये जा रहे थे। इसी काले धन से हर बैंक खाते में 15 लाख आने का सपना दिखाया गया था। इस नोटबंदी से जो अद्योगिक क्षेत्र प्रभावित हुये वह सरकार के पैकेज से भी पुनःजीवित नहीं हो सके हैं। नोटबंदी के कारण बड़े क्षेत्र का उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी। इसी नोटबंदी के बाद बैंकों में हर तरह से के जमा पर ब्याज दरें घटाई और हर सेवा का शुल्क लेना शुरू कर दिया। इसी का परिणाम है कि जीरो बैलेंस जनधन खातों पर पांच सौ और हजार के न्यूनतम बैलेंस की शर्त लगा दी गई। नोटबंदी से हर व्यक्ति और हर उद्योग प्रभावित हुआ। लेकिन आम आदमी इसके प्रति चौकन्ना नहीं हो पाया। क्योंकि उसके सामने गौरक्षा, लव जिहाद, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून, राम मन्दिर और धारा 370 जैसे मुद्दे परोस दिये गये। लेकिन इन मुद्दों से चुनाव तो जीत लिये गये परंतु इन से अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो पाया। अर्थव्यवस्था को सबसे घातक चोट कोरोना के लॉकडाउन में पहुंची। जब सारा उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया। स्वभाविक है कि जब उत्पादन ही बंद हो जायेगा तो उसका असर निर्यात पर भी पड़ेगा। इसी का परिणाम है विदेशी मुद्रा कोष में भारी गिरावट आ गयी है।
इस समय जिस ढंग से सरकार ने सार्वजनिक संपत्तियों को निवेश के नाम पर प्राइवेट सैक्टर को सौंपना शुरू किया है उसका अंतिम परिणाम महंगाई और बेरोजगारी के रूप में ही सामने आयेगा। यह एक स्थापित सत्य है कि जब कोई सरकार सामान्य जन सेवाओं को भी निजी क्षेत्र के हवाले कर देती है तो उससे गरीब और अमीर के बीच का अन्तराल इतना बढ़ जाता है कि उसे पाटना असंभव हो जाता है। आज सरकार अपनी आर्थिक नीतियों पर बहस को कुछ अहम मुद्दे उभार कर दबाना चाह रही है। जैसे ही दामों की बढ़ौतरी हुई तो उससे ध्यान भटकाने के लिए कश्मीर फाइल जैसी फिल्म का मुद्दा परोस दिया गया। यहां तक कि स्वयं प्रधानमंत्री इस फिल्म के प्रचार पर उतर आये। अब यह आम आदमी को सोचना होगा कि वह इस फिल्म के नाम पर महंगाई और बेरोजगारी के दंश को भूल जाता है या नहीं। अभी फिर चुनाव आने हैं और इनसे पहले यह फिल्म आ गयी है। इसका मकसद यदि राजनीति नहीं है तो इसे यू टयूब पर डालकर सबको क्यों नहीं दिखा दिया जाता। कश्मीरी पंडितों के अतिरिक्त और भी कईयों के साथ ऐसी ज्यादतियां हुयी हैं। उन पर भी फिल्में बनी जिन्हें रिलीज नहीं होने दिया गया है। ऐसे में यदि इस फिल्म को महंगाई और बेरोजगारी पर पर्दा डालने का माध्यम बना दिया गया तो फिर कोई भी सवाल पूछने का हक नहीं रह जायेगा।