क्या विकास की कीमत है यह विनाश

Created on Sunday, 16 July 2023 18:26
Written by Shail Samachar

हिमाचल में इस बार भारी बारिश के कारण जो बाढ़ और भूस्खलन देखने को मिला है उससे यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि यह सब विकास की कीमत की किस्त तो नहीं है। क्योंकि प्रदेश में बारिश के कारण इतनी मौतें पहली बार देखने को मिली है। जो माली नुकसान हुआ है उसका सरकारी आकलन आठ हजार करोड़ है। संभव है यह आंकड़ा और बढ़ेगा। जितनी सड़कें पेयजल योजनाएं और पुल टूटे हैं उन्हें फिर से बनाने में लम्बा समय लगेगा। क्योंकि सरकार पहले ही वित्तीय संकट से गुजर रही है मुख्यमंत्री और उसके सहयोगी मंत्री आपदा स्थलों का दौरा कर आये हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदेश के केंद्रीय मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी इन क्षेत्रों का दौरा कर आये हैं। प्रदेश के मंत्री ने इस विनाश के लिये अवैध खनन को दोषी ठहराया है तो दूसरे मंत्री ने इस ब्यान को ही बचकाना करार दिया है। इन ब्यानों और दौरों से हटकर कुछ तथ्यों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि थुगान के बाजार में आये पानी में जिस तरह से लकड़ी बड़ी मात्रा में आयी है उस पर नेता प्रतिपक्ष चुप रहे हैं जबकि यह उनका चुनाव क्षेत्र है।
अभी शिमला के कच्चे घाटी क्षेत्र में नगर निगम ने एक पांच मंजिला भवन को गिराने के आदेश पारित किये हैं। क्योंकि यह निर्माण अवैध था। शिमला में कई हजार अवैध निर्माण उच्च न्यायालय तक के संज्ञान में लाये जा चुके हैं। जोकि एनजीटी के आदेशों के बाद बने हैं। स्मरणीय है कि हिमाचल में ग्रामीण एवं नगर नियोजन विभाग 1978 में बना था 1979 में एक अंतरिम प्लान भी जारी हुआ था। जो अब तक फाइनल नहीं हो पाया है। लेकिन अब तक नौ बार रिटेंशन पॉलिसीयां जारी हो चुकी हैं और हर बार अवैध निर्माणों को नियमित किया गया है। हिमाचल उच्च न्यायालय एन.जी.टी. और सर्वोच्च न्यायालय तक अवैधताओं पर सरकारों को फटकार लगाते हुये दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के निर्देश दे चुके हैं। अदालत ने दोषियों को नामतः चिन्हित भी कर रखा है। लेकिन इसके बावजूद किसी के खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई है। हर सरकार ने अवैधताआें को बढ़ावा देने का काम किया है। अभी सरकार के एस.डी.पी. को सर्वोच्च न्यायालय ने अगले आदेशों तक रोक रखा है। यह प्लान अभी तक फाइनल नही है। लेकिन वर्तमान सरकार ने भी अदालत के आदेशों को अंगूठा दिखाते हुये एटिक को रिहाईशी बनाने और बेसमैन्ट को खोलने के आदेश कर रखे हैं। जबकि यह एन.जी.टी. के आदेशों की अवहेलना है।
इस बारिश में जहां-जहां ज्यादा नुकसान हुआ है वह ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अदालत अवैध निर्माणों का संज्ञान लेकर निर्माणों पर रोक लगाने के आदेश पारित कर चुके हैं। कसौली का गोलीकांड इसका गवाह है। कुल्लू-मनाली के कसोल में तो एक पूर्व मंत्री के होटल में अवैध निर्माण का आरोप लग चुका है और मंत्री सर्वोच्च न्यायालय में अवैध निर्माण को स्वयं गिराने का शपथ पत्र दे चुका है। लेकिन इस शपथ पत्र पर कितना अमल हुआ इसकी कोई रिपोर्ट नहीं है। धर्मशाला में बस अड्डे का अवैध निर्माण भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद टूटा है। जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को लेकर चम्बा से किन्नौर तक कई जगह स्थानीय लोग विरोध जता चुके हैं। चम्बा में रावि पर बनी हैडरेल परियोजना में 65 किलोमीटर तक रावि अपना मूल स्वरूप हो चुकी है। यह जो फोरलेनिंग सड़क परियोजनाएं प्रदेश में चल रही हैं इसका लाभ किस पीढ़ी को मिलेगा यह तो कोई नहीं जानता। लेकिन जितना नुकसान इनसे संसाधनों का हो रहा है उसकी भरपायी कई पीढ़ियों को करनी पड़ेगी यह तय है। कालका-शिमला जब से बन रहा है तब से हर सीजन में इसका नुकसान हो रहा है। अब किरतपुर-मनाली फोरलेन भी उसी नुकसान की चपेट में आ गया है।
इस परिदृश्य में यह सोचना आवश्यक है कि क्या पहाड़ी क्षेत्रों में भी मैदानों की तर्ज पर सड़क निर्माण किया जा सकता है। यह चेतावनी आ चुकी है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं। एक समय इन जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पानी नहीं मिल पायेगा। हिमाचल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिये भी यह सोचना पड़ेगा कि जल ताण्डव की जो पहली किश्त आयी है इस की दृष्टि में पर्यटन कितना सुरक्षित व्यवसाय रह पायेगा। प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र भी बाढ़ की चपेट में आ गये हैं। ऊना के स्वां में अवैध खनन का संज्ञान तो सर्वोच्च न्यायालय तक ले चुका है। इसके ऊपर जांच भी आदेशित है। इसलिये आज भी समय है कि ठेकेदारी की मानसिकता से बाहर निकल कर वस्तुस्थिति का व्यवहारिक संज्ञान लेकर भविष्य को बचाने का प्रयास किया जाये।