अब अधिकारी होंगे रथ प्रभारी

Created on Tuesday, 31 October 2023 12:21
Written by Shail Samachar

मोदी सरकार अपने नौ वर्ष के कार्यकाल की उपलब्धियां को लेकर एक विकसित भारत संकल्प यात्रा कर रही है। यह यात्रा देश के 765 जिलों की 2.69 लाख पंचायतों से होकर गुजरेगी। 2014 से अब तक जो उपलब्धियां इस सरकार की रही है उन्हें इस यात्रा के माध्यम से देश के सामने रखा जाएगा। हर रथ एक उपलब्धि का वाहक होगा और उसका प्रभारी एक भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होगा। अक्तूबर 2022 में इस योजना की रूपरेखा तैयार की गयी थी। अब अक्तूबर 2023 में एक प्रपत्र के माध्यम से इन प्रभारियों के नाम मांगे गये। इसमें उपनिदेशक से लेकर संयुक्त सचिव स्तर तक के अधिकारियों को रथ प्रभारी नामित किया जाएगा। इससे पूर्व रक्षा मंत्रालय ने भी छुट्टी पर जाने वाले सैनिकों से भी कहा है कि उन्हें राष्ट्रीय निर्माण के कार्य में हिस्सा लेना चाहिए इसके लिए स्थानीय समुदाय से जुड़कर सरकारी योजनाओं का प्रचार करना चाहिए। यह यात्रा 25 नवम्बर 2023 से 25 जनवरी 2024 तक जारी रहेगी। कई राजनीतिक दलों ने इस योजना का विरोध करते हुए इसे अधिकारियों का राजनीतिकरण किया जाने की संज्ञा दी है। चुनाव आयोग ने भी इसका संज्ञान लेकर जिन राज्यों में अभी चुनाव हो रहे हैं और वहां पर आचार संहिता लागू हो चुकी है वहां पर इसके प्रवेश पर रोक लगा दी है। अब इस मुद्दे पर एक अलग बहस छिड़ गई है क्योंकि जहां कांग्रेस और अन्य दल इसका विरोध कर रहे हैं वहीं पर भाजपा इसका पुरजोर समर्थन कर रही है। जब सरकार पिछले एक वर्ष से इस योजना की रूपरेखा तैयार कर रही है तो निश्चित है कि यह लागू होगी। भले ही रथ प्रभारी के स्थान पर इन अधिकारियों को नोडल अधिकारी का पदनाम दे दिया जाये। यहां पर यह भी स्मरणीय है कि मोदी सरकार ने निजी क्षेत्र से तीन दर्जन से भी अधिक कॉर्पाेरेट अधिकारियों को यू.पी.एस.सी. पास किए बिना ही सीधे आई.ए.एस. संयूक्त सचिव नामित कर दिया और उस पर आई.ए.एस. द्वारा कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी गई थी। क्योंकि सरकार ऐसा कर सकती है। शायद इसी मौन का परिणाम है कि आज आई.ए.एस. अधिकारियों को सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए रथ प्रभारी नामित किया जा रहा है। संभव है कि इसके बाद देश प्रतिबद्ध कार्यपालिका की ओर भी बढ़ जाये। सविधान में कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका तीनों को स्वतंत्र रखा गया है। कार्यपालिका के लिए तो सेवा नियम 1964 अलग से परिभाषित है और अपेक्षा की जाती है कि कार्यपालिका राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहे। क्योंकि राजनीतिक सता तो हर पांच वर्ष बाद बदल जाती है। इसीलिए कार्यपालिका को 60 वर्ष की आयु तक का कार्यकाल दिया गया है ताकि उसकी निरन्तरता में सता बदलने का कोई प्रभाव न पड़े। इसलिए नीति और नियम बनाने का काम व्यवस्थापिका को दिया गया है। इन नीति नियमों की अनुपालना कार्यपालिका के जिम्मे है। ऐसे में जब राजनीतिक सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के प्रचार प्रसार की ऐसी जिम्मेदारी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को दी जाएगी तो उनकी निष्पक्षता कितनी बनी रह पाएगी यह अपने में ही एक बड़ा सवाल बन जाएगा। सरकार के ऐसे फैसलों पर वरिष्ठ नौकरशाही की ओर से ऐतराज़ आना चाहिए था। लेकिन जब कैबिनेट सचिव स्तर से लेकर कई राज्यों के मुख्य सचिव तक सेवा विस्तारों पर चल रहे हो तो फिर कार्यपालिका की निष्पक्षता कैसे सुरक्षित रह पाएगी?