क्यों हारी कांग्रेस

Created on Sunday, 03 December 2023 17:04
Written by Shail Samachar

पहले हिमाचल और फिर कर्नाटक में चुनावी जीत हासिल करके कांग्रेस ने मध्य प्रदेश राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में भी मुफ्ती के वायदों के सहारे जो चुनाव जीतने की उम्मीद लगा रखी थी उसे परिणामों ने धरासाही कर दिया है। क्योंकि भाजपा ने कांग्रेस से बड़े वायदे परोस दिये और जनता अपना लाभ देखकर भाजपा की ओर हो ली। 2014 से 2023 तक जितने भी संसद से लेकर विधानसभा तक के चुनाव हुये हैं हर चुनाव मुफ्ती के वायदे पर लड़ा गया है। मुफ्ती के इन वायदों की कितनी कीमत सरकारी खजाने और आम आदमी को उठानी पड़ती है इस पर कभी सार्वजनिक बहस नहीं हुई है। सर्वाेच्च अदालत में भी मुफ्ती  के मामले पर कोई ठोस कारवाई नहीं हो पायी है। इसलिए जब तक राजनीतिक दल मुफ्ती पर चुनाव लड़ते रहेंगे तब तक चुनावी हार जीत इसी तरह चलती रहेगी। नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा को देश 2014 से देखता आ रहा है हर चुनाव में नया वायदा और नया मुद्दा मूल मंत्र रहा है। जिस देश में 140 करोड़ की आबादी में से अभी भी 81 करोड़ को सरकार के मुफ्त अनाज के सहारे जीना पड़ रहा हो उसको कितना विकसित देश माना जाना चाहिये यह सोचने का विषय है। इसलिये चुनावी हार जीत कोई बहुत ज्यादा प्रासंगिक नहीं रह जाती।
लेकिन इस चुनावी हार के बाद राहुल गांधी के लिये अवश्य ही कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठ जाते हैं क्योंकि राहुल गांधी ने जिस ईमानदारी से देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं और परंपराओं के ह्यस का प्रश्न उठाया। जिस तरह से देश के संसाधनों को कॉरपोरेट घरानों के हाथों बेचे जाने के बुनियादी सवाल उठाये और समाज को नफरती ब्यानों द्वारा बांटे जाने का सवाल उठाया। इन सवालों पर देश को जोड़ने के लिये कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली और जनता ने उसका स्वागत किया। उससे लगा था कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का विकल्प हो सकते हैं। लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा नुकसान राहुल गांधी की छवि को होगा। क्योंकि इन चुनावों की धूरी कांग्रेस में वही बने हुये थे। इसलिये इस हार से उठते सवाल भी उन्हीं को संबोधित होंगे। इस समय केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों तक सभी भारी कर्ज के बोझ तले दबे हैं। राज्य सरकारों पर ही 70 लाख करोड़ का कर्जा है। ऐसे में क्या कोई भी राज्य सरकार बिना कर्ज लिये कोई भी गारन्टी वायदा पूरा कर सकती है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये एक वर्ष हो गया है। प्रदेश सरकार हर माह 1000 करोड़ का कर्ज ले रही है। दस गारंटीयां चुनावों में दी थी जिनमें से किसी एक पर अमल नहीं हुआ है। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर इन राज्यों में खूब उछाला। इसी कारण हिमाचल कांग्रेस का कोई बड़ा नेता या मंत्री इन राज्यों में चुनाव प्रचार के लिये नहीं आ पाया। क्या हिमाचल सरकार की इस असफलता का कांग्रेस की विश्वसनीयता पर असर नहीं पड़ेगा? जब तक कांग्रेस अपनी राज्य सरकारों के कामकाज पर नजर नहीं रखेगी तब तक सरकारों की विश्वसनीयता नहीं बन पायेगी।
आने वाले लोकसभा चुनावों के लिये जो जनता से वायदे किये जायें उन्हें पूरा करने के लिये आम आदमी पर कर्ज का बोझ नहीं डाला जायेगा जब तक यह विश्वास आम आदमी को नहीं हो जायेगा तब तक कोई भी चुनावी सफलता आसान नहीं होगी। इसलिए अब जब यह देखा खोजा जा रहा है कि कांग्रेस क्यों हारी तो सबसे पहले प्रत्यक्ष रूप से हिमाचल का नाम आ रहा जिसने गारंटीयों से अपनी जीत तो हासिल कर ली परन्तु और जगह हार का बड़ा कारण भी बन गयी।