कांग्रेस को अपनों से ही खतरा है

Created on Friday, 09 February 2024 12:55
Written by Shail Samachar

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मन्दिर प्रमाण प्रतिष्ठा आयोजन के बाद भी चुनावी सफलता को लेकर शंकित है। राजनीतिक विश्लेषण में यह संकेत बिहार झारखण्ड और चण्डीगढ़ के घटनाक्रमों से उभरे हैं। क्योंकि यह सब इण्डिया गठबंधन को चुनाव से पहले तोड़ने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। इस गठबंधन में सबसे बड़ा दल कांग्रेस ही है। इसलिये यह प्रायः सीधे कांग्रेस को कमजोर करने के कदम माने जा रहे हैं। ऐसे में यह विश्लेषण आवश्यक हो जाता है कि इसका कांग्रेस पर क्या असर होगा और भाजपा मोदी को क्या लाभ मिलेगा। इस समय 2014 और 2019 में मोदी भाजपा द्वारा जो चुनावी वादे किये गये थे उनका व्यवहारिक परिणाम यही रहा है कि कुछ लोग ही इन नीतियों से व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित हुये हैं। जबकि अधिकांश के हिस्से में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी ही आयी है। इसी के परिणाम स्वरूप आज भी 140 करोड़ में से 80 करोड़ सरकारी राशन पर निर्भर हैं। केन्द्र से लेकर राज्यों तक हर सरकार का कर्ज बड़ा है यदि कर्ज न मिल पाये तो शायद सरकारी कर्मचारियों को वेतन भी न दे पाये। हर सरकार चुनावी सफलता के लिये केवल मुफ्ती की घोषणाओं के सहारे टिकी हुयी है। रिजर्व बैंक ने भी मुफ्ती के खतरों के प्रति सचेत किया है। अन्तर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सीयों ने भी गंभीर चेतावनी जारी की हुयी है। लेकिन किसी भी सरकार पर इसका कोई असर नहीं है। चाहे वह भाजपा की सरकार हो या गैर भाजपा दलों की। इस परिदृश्य में मोदी सरकार के पास गंभीर आर्थिक प्रश्नों का कोई जवाब नहीं है। इसलिये मोदी सरकार आने वाले चुनाव को धार्मिकता का रंग देने और इण्डिया गठबंधन को कमजोर करने के प्रयास में लगी हुयी है। पिछले दो लोकसभा चुनाव के परिणाम और उसके बाद सरकारी नीतियों का कार्यन्वयन जिस तरह से हुआ है उससे यह धारणा बलवती हो गयी है कि जब तक विपक्ष इकट्ठा होकर सरकार का सामना नहीं करेगा वह भाजपा को हरा नहीं पायेगा। इसी धारणा के परिणाम स्वरुप इण्डिया का जन्म हुआ जबकि इसके सभी प्रमुख घटक किसी न किसी रूप परोक्ष/अपरोक्ष में ई.डी. और सी.बी.आई. जैसी केन्द्रिय एजैन्सीयों का सामना कर रहे थे। इसी वस्तुस्थिति में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की। इस यात्रा में इण्डिया के घटक दलों का साथ नहीं के बराबर था। शायद सभी को यात्रा के सफल होने का सन्देह था। सरकार ने इस यात्रा को असफल करवाने के लिये हर संभव प्रयास किया। राहुल गांधी की सांसदी तक जाने की स्थिति बन गयी। लेकिन जिस अनुपात में यह यात्रा सफल हुई और मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी की जनसभा में भीड़ देखने को मिली उससे सभी का गणित गड़बड़ा गये। इसी वस्तुस्थिति ने इण्डिया को जन्म दिया। लेकिन तीनों राज्यों के परिणामों ने फिर मनस्थितियां बदली। केन्द्रीय एजैनसीयों की सक्रियता फिर बड़ी। इसी बीच राहुल ने न्याय यात्रा शुरू कर दी। इस न्याय यात्रा में कैसे व्यवधान खड़े किये गये यह भी सबके सामने है। इस तरह जो परिस्थितियों निर्मित हुयी उनमें कांग्रेस को यह प्रमाणित करना था कि मोदी बीजेपी को हटाने के लिये कोई भी बलिदान देने को तैयार है। कांग्रेस के इस आचरण से सरकार और घटक दल फिर परेशान हो उठे। गठबंधन के साथ औपचारिकताएं पूरी करने की जिम्मेदारी राहुल को छोड़कर बाकी नेताओं पर डाल दी गयी। राहुल संगठन को सशक्त बनाने के लिये न्याय यात्रा के माध्यम से फिर जनमानस के बीच उतर गये। केन्द्रीय एजैन्सियां अपने काम में लग गयी। बिहार में नीतिश फिर भाजपा के हो गये। लेकिन नीतिश के पासा बदलने से जो नुकसान नीतिश का हुआ है उससे ज्यादा मोदी शाह का हुआ है। चण्डीगढ़ के घटनाक्रम ने फिर मोदी सरकार पर लोकतंत्र और उसकी व्यवस्थाओं को कमजोर करने का आप पुख्ता कर दिया है। इण्डिया को तोड़ने का आरोप कांग्रेस की बजाये घटक दलों पर आ रहा है। ऐसे में राहुल की न्याय यात्रा के बाद कांग्रेस को कोई नुकसान होने की संभावना नहीं के बराबर रह जाती है। बल्कि लाभ ही मिलने की स्थिति हो जाती है। ऐसे में मोदी का प्रयास अब कांग्रेस को भीतर से तोड़ने का रह जाता है। इसलिये कांग्रेस को अन्य दलों से नहीं वरना कांग्रेसियों से ही खतरा है।