क्या प्रदेश वित्तीय आपात की ओर बढ़ रहा है?

Created on Sunday, 01 September 2024 19:29
Written by Shail Samachar

मुख्यमंत्री सुक्खविन्दर सिंह सुक्खू ने प्रदेश विधानसभा में राज्य की कठिन वित्तीय स्थिति पर एक लिखित वक्तव्य रखकर यह कहा है कि वह स्वयं और उसके सहयोगी मंत्री तथा मुख्य संसदीय सचिव अपने दो माह के वेतन भत्ते निलंबित कर रहे हैं। जब प्रदेश की वित्तीय स्थिति सुधरेगी तब है यह वेतन भत्ते ले लेंगे। उन्होंने विधायकों से भी ऐसा करने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री ने आंकड़े रखते हुये यह कहा है कि केन्द्र सरकार राजस्व अनुदान घाटे की भरपाई में लगातार कमी कर रही है और उसके कारण यह स्थिति पैदा हुई है। सुक्खू सरकार ने दिसम्बर 2022 से प्रदेश की सत्ता संभाली थी तब से लेकर 31 जुलाई 2024 तक यह सरकार 21366 करोड़ का कर्ज ले चुकी है यह जानकारी सदन में रखी गई है। सरकार प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र भी सदन में रख चुकी है। इसके मुताबिक एक वित्तीय वर्ष में हिमाचल सरकार 6800 करोड रुपए का कर्ज ले सकती है। लेकिन राज्य सरकार अपने प्रबंधन के कौशल के सहारे इस सीमा से अधिक कर्ज ले चुकी है। कैग के मुताबिक प्रदेश का कर्ज जीडीपी का करीब 45% है जबकि यह अनुपात 3.5% से नहीं बढ़ना चाहिये। करोना काल में लगे लॉकडाउन में जब सारी गतिविधियां बन्द हो गई थी तब यह सीमा 3.5% से बढ़कर 6.5% कर दी गई थी जो अब पुरानी सीमा तक ला दी गयी है। प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन से जुड़े तंत्र को इन तथ्यों की जानकारी है। यहां यह भी उलेखनीय है कि राज्य सरकारों को अपना राजस्व खर्च अपने ही संसाधनों से पूरा करना होता है। राजस्व घाटा अनुदान सभी राज्यों को एक नियम के तहत ही मिलता है। पिछले दिनों जब नीति आयोग प्रदेश में आया था तब भी यह प्रश्न इस आयोग के सामने रखा गया था और यह जवाब मिला था कि सभी राज्यों को एक सम्मान नीति के तहत आबंटन होगा।
अब जब वेतन भत्ते निलंबित करने की जानकारी अधिकारिक तौर पर सदन के पटल पर जा पहुंची है और नेता प्रतिपक्ष ने इसमें यह जोड़ दिया है कि कर्मचारियों को वेतन का भुगतान 5 तारीख को तथा पैन्शनरों को पैन्शन का भुगतान 10 तारीख को होने की जानकारी है तो उससे स्थिति और गंभीर हो गयी है। क्योंकि यह भी जानकारी आ गयी है कि कर्मचारियों के जीपीएफ पर भी सरकार कर्ज ले चुकी है। वैसे तो सरकार की बजट में दिखाई गई पूंजीगत प्राप्तियां जीपीएफ और लघु बचत आदि के माध्यम से जुटाया गया कर्ज ही होता है। लेकिन यह कर्ज कभी इस तरह से चर्चित नहीं होता था। वेतन भत्ते निलंबित करने का फैसला संबंधित लोगों का अपना फैसला है। इस पर सदन में कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सकता। शायद ऐसा फैसला सदन के पटल पर रखने की आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि दो माह बाद यह वेतन भत्ते एक साथ ले लिये जायेंगे। वेतन भत्तों के निलंबन से कोई स्थाई तौर पर राजस्व नहीं बढ़ेगा बल्कि यह जानकारी अधिकारिक तौर पर केन्द्र सरकार तक पहुंच जायेगी कि राज्य सरकार समय पर वेतन भत्तों का भुगतान करने की स्थिति में नहीं रह गयी है। केन्द्र इस स्थिति का अपने तौर पर आकलन करके संविधान की धारा 360 के तहत कारवाई करने तक की सोच सकता है।
दूसरी ओर प्रदेश के अन्दर राज्य सरकार के अपने खर्चों पर चर्चाएं चल पड़ेंगी। अभी यह सवाल उठने लग पड़ा है कि सरकार ने जो राजनीतिक नियुक्तियां कैबिनेट रैंक में कर रखी है उनका क्या औचित्य है। मुख्य संसदीय सचिवों के औचित्य पर सवाल खड़े होने लग पड़े हैं। अभी कामगार बोर्ड के अध्यक्ष का मानदेय 30 जुलाई को 30,000 से बढ़कर 1,30,000 कर दिया गया जबकि एक माह के भीतर ही निलंबन तक की स्थिति पहुंच गयी। इसी के साथ बड़ा सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि संसाधन बढ़ाने के नाम पर आम आदमी की सुविधाओं पर तो कैंची चला दी गयी परन्तु राजनेताओं की ओर तो आंख तक नहीं उठायी गयी। अभी प्रदेश सचिवालय के कर्मचारी आन्दोलन की राह पर है। सरकार की फिजूल खर्ची पहले ही उनके निशाने पर रह चुकी है। आगे यह आन्दोलन क्या आकार लेता है यह विधानसभा सत्र के बाद पता चलेगा। वेतन भत्तों के निलंबन से दो करोड़ की राहत मिलने का दावा किया गया है। यदि इस समय राजनीतिक नियुक्तियां पाये लोग स्वेच्छा से अपने पद त्याग दें तो प्रतिमाह इतनी बचत हो सकती है। क्योंकि आने वाले समय में कर्ज के निवेश को लेकर सवाल उठेंगे और तब यह कहना आसान नहीं होगा की कर्ज से कर्मचारियों के वेतन का भुगतान किया गया है। वेतन भत्तों के निलंबन की जानकारी सदन के पटल पर आना कहीं वितीय आपात का न्योता न बन जाये इसकी आशंका बढ़ती नजर आ रही है।