महाराष्ट्र में कांग्रेस शिवसेना उद्धव ठाकरे और एनसीपी का गठबंधन विधानसभा चुनाव हार गया है। लोकसभा चुनाव में जितनी सफलता इस गठबंधन को मिली थी उसको सामने रखते हुये विधानसभा का परिणाम गठबंधन के लिये एक शर्मनाक हार है। इस हार के लिये एक बार फिर चुनाव आयोग और उसकी ईवीएम मशीनों को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है। जबकि इसी आयोग और इन्हीं मशीनों के चलते झारखण्ड में भाजपा की करारी हार हुई है। हरियाणा में भी हार के लिये ईवीएम मशीनों पर दोष डाला गया था। हरियाणा में इस संबंध में लम्बे चौड़े सबूत जुटाकर चुनाव आयोग से शिकायत की गयी थी। लेकिन चुनाव आयोग ने जो जवाब दिया वह एक तरह से कांग्रेस पर ही प्रहार था। आयोग के जवाब के बाद मामला सर्वाेच्च न्यायालय में पहुंचा दिया गया है। ईवीएम मशीनों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर लम्बे समय से सवाल उठते आ रहे हैं। इन सवालों की शुरुआत भी एक समय भाजपा ने ही की थी जब वह विपक्ष में थी। हर चुनाव के बाद ईवीएम मशीनों पर सवाल उठते आये हैं। सवाल भी गंभीर होते हैं। सवालों के साथ प्रमाण भी सौंप जाते हैं। लेकिन चुनाव आयोग से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय तक ने इन्हें सही नहीं माना है। हरियाणा और महाराष्ट्र में मशीनों की बैटरी चार्जिंग के आरोप लगे हैं। इन आरोपों को लेकर आम आदमी भी आयोग की कार्यप्रणाली पर सन्देह करने लग गया है। लेकिन चुनाव आयोग और ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने के बावजूद किसी भी दल ने आज तक इस मुद्दे पर चुनाव का बहिष्कार नहीं किया है।
देश में उन्नीस लाख ईवीएम मशीने गायब होने की जानकारी एक आरटीआई के माध्यम से सामने आयी थी। मामला पुलिस और अदालत तक भी पहुंचा। लेकिन संसद में कभी इस पर प्रश्न नहीं आये और न ही यह किसी नियोजित सार्वजनिक बहस का मुद्दा बना। चुनाव परिणामों पर सवाल उठ रहे हैं। मतदान खत्म होते ही जो आंकड़े जारी किये जाते हैं वही आंकड़े मतगणना के समय बदल जाते हैं यह तथ्य भी जनता के सामने आ चुके हैं। बाहर हर देश मत पत्र से चुनाव करवाने लग गया है। हमारे यहां भी पूरी चुनावी प्रक्रिया में लम्बा समय लगता आ रहा है। मत पत्र से चुनाव न करवाने का तर्क दिया जाता है कि परिणाम घोषित करने में चार-पांच दिन की देरी हो जायेगी। जब पूरी प्रक्रिया में लम्बा समय लगाया जा रहा है। कई-कई चरणों में चुनाव करवाये जा रहे हैं तब यदि परिणाम घोषित करने में एक सप्ताह का समय और लग जाता है तो उससे किसी का भी नुकसान होने वाला नहीं है। फिर जब मशीन के साथ वी वी पैट लगा हुआ है और उस पर बाकायदा पर्ची सामने आ जाती है तो उसे गिनने में कितना समय और लग जायेगा। इस समय जिस तरह का विश्वास पूरी चुनाव प्रक्रिया पर उभर रहा है। वह कालान्तर में पूरी व्यवस्था के लिए घातक होगा। ऐसे में राजनेताओं को ईवीएम को संसद से लेकर सड़क तक मुद्दा बनाकर जनता के बीच आना होगा। चुनावों के बहिष्कार करने तक आना होगा। जब इस तरह की स्थिति पूरे देश में एक साथ बनेगी तभी मशीन की जगह मत पत्रों पर बात आयेगी। यदि राजनेता और राजनीतिक दल ऐसा करने के लिये तैयार न हों तो उन्हें हर हार के बाद ईवीएम पर दोष डालने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है।
इसी के साथ राजनीतिक दलों को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिये अपनी राज्य सरकारों की परफॉरमैन्स पर भी ध्यान देना होगा। अभी हरियाणा के चुनावों में प्रधानमंत्री ने हिमाचल सरकार की परफॉरमैन्स को मुद्दा बनाया। कांग्रेस जवाब नहीं दे पायी क्योंकि तथ्यों पर आधारित था सब कुछ। अब महाराष्ट्र में भी हिमाचल को प्रधानमंत्री ने मुद्दा बनाया। इसका जवाब देने मुख्यमंत्री महाराष्ट्र गये। फिर मुख्यमंत्री का जवाब देने प्रदेश भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष और दूसरे नेता महाराष्ट्र जा पहुंचे। इस तरह मुख्यमंत्री के दावों पर विश्वास नहीं बन पाया और परिणाम सामने है। हिमाचल आज पूरे देश में चर्चा का विषय बनता जा रहा है। यदि कांग्रेस ने समय रहते स्थितियों में सुधार नहीं किया तो फिर कुछ भी हाथ नहीं आयेगा।