इस बार संसद परिसर में अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस के सांसदों कोे जिस तरह से संसद के अन्दर जाने से रोका गया और स्थिति धक्का-मुक्की तक पहुंच गयी उसे पूरे देश ने देखा है। यह मामला एफ आई आर तक पहुंच गया है। भाजपा के दो सांसदों को चोट लगने का आरोप है। इसके लिये नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ मामला बनाया गया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे भी इस धक्का-मुक्की से नीचे गिर गये थे। कांग्रेस ने भी इस पर एफआईआर दर्ज करवाई है। पूरा प्रकरण जांच के लिये क्राइम ब्रांच को सौंपा गया है। पूरा संसद परिसर सीसीटीवी कैमरों से लैस है इसलिए जांच में इन कैमरों के माध्यम से पूरा सच देश के सामने आ जायेगा। इसलिए जांच रिपोर्ट आने तक इस प्रकरण पर कुछ भी ज्यादा कहना सही नहीं होगा। लेकिन स्थितियां यहां तक क्यों पहुंची? किस तरह का राजनीतिक वातावरण पिछले दिनों देश में निर्मित हुआ है उस पर एक नजर मोटे तौर पर डालना आवश्यक हो जाता है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा-मोदी चार सौ पार का नारा लेकर चले थे। राम मन्दिर का निर्माण भाजपा का बड़ा संकल्प था। उसकी प्राण-प्रतिष्ठा का आयोजन भी सारे सवालों के बावजूद चुनावी गणित को सामने रखकर करवा दिया। लेकिन यह सब करने के बाद भी लोकसभा में भाजपा का आंकड़ा 240 पर आकर रुक गया। लोकसभा के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र की चुनावी जीत में फिर ईवीएम का मुद्दा आकर खड़ा हो गया। महाराष्ट्र में यह मुद्दा जो आकार लेने जा रहा है उसके परिणाम गंभीर होंगे। इसी बीच अमेरिका में गौतम अडानी के खिलाफ एक भ्रष्टाचार का मामला वहां की अदालत तक पहुंच गया। यहां विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेर लिया। अडानी और ईवीएम दो मुद्दे विपक्ष के हाथ लग गये। इसी बीच संसद में संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर चर्चा की बात उठ गयी ईवीएम के मुद्दे पर ममता और उमर अब्दुल्ला तथा सपा कांग्रेस से अलग हो गये। इसी बीच प्रधान मंत्री ने संसद के इसी सत्र में ‘एक देश एक चुनाव’ लाकर खड़ा कर दिया। इन मुद्दों की चर्चा में संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रिया गृह मंत्री अमित शाह की ओर से आयी उसने पूरे देश में दलित समाज को एक बड़ा मुद्दा दे दिया। इण्डिया गठबंधन जो अपरोक्ष में अडानी और परोक्ष में ईवीएम के मुद्दे पर बिखरने के कगार पर पहुंच गया था उसे ‘एक देश एक चुनाव’ और डॉ. अम्बेडकर के मुद्दों ने फिर अनचाहे ही संसद में इकट्ठा कर दिया।
‘एक देश एक चुनाव’ तो कमेटी को चला गया है। लेकिन अम्बेडकर के मुद्दे को लेकर विपक्ष पूरी तरह अडिग है। गृह मंत्री अमित शाह के त्यागपत्र की मांग की जा रही है। प्रधानमंत्री यह मांग स्वीकारने की स्थिति में नहीं है। राज्यसभा में सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ चुका है। वक्फ संशोधन विधेयक भी अभी कमेटी के पास ही है। वक्फ पर नीतीश और चन्द्रबाबू नायडू का समर्थन सरकार को मिल ही जायेगा यह निश्चित नहीं है। संघ और भाजपा के रिश्ते अभी तक ज्यादा सुधार नहीं पाये हैं और इसी कारण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया है। इस वस्तु स्थिति में जब संसद में विपक्ष नियमित विरोध प्रदर्शन की रणनीति पर चल रहा हो तो सरकार के लिए स्थितियां सुखद नहीं हो सकती। जब इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कांग्रेस कर रही हो तो सरकार के लिये और भी असहज स्थिति हो जाती है। क्योंकि ‘एक देश एक चुनाव’ के मुद्दे ने कई बुनियादी संवैधानिक सवाल खड़े कर दिये है।ं देश में 1967 तक सारे चुनाव एक साथ होते थे क्योंकि तब कहीं यह नहीं था कि किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा से आगे पीछे हो रहा हो। केवल 1959 में केरल में अपवाद की स्थिति बनी जब वहां राष्ट्रपति शासन लगा था। लेकिन आज पूरे देश की स्थिति बदली हुई है। ऐसे में यह कैसे संभव हो सकेगा कि विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल पर निर्भर करेगा। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनसे यह आशंका बलवती हो गई है कि इस विधेयक के माध्यम से क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को खतरा हो गया। इस स्थिति को अधिनायक वाद के पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है।
इस वस्तुस्थिति में जो कुछ संसद परिसर के अन्दर घटा है और पुलिस जांच तक जा पहुंचा है उसके परिणामों को धैर्य से देखने तथा समझने की आवश्यकता होगी। यह देश के भविष्य की दिशा में एक बड़ा कदम प्रमाणित होगा। इसमें कांग्रेस को अपने प्रदेशों के नेतृत्व पर कड़ी नजर बनाये रखनी होगी।