स्व. डॉ. मनमोहन सिंह के अन्तिम संस्कार पर उठा विवाद निन्दनीय है

Created on Monday, 30 December 2024 03:23
Written by Shail Samachar

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का अन्तिम संस्कार कहां होगा उनका स्मारक बनेगा या नहीं। बनेगा तो कहां बनेगा? इन सवालों पर जिस तरह का अनचाहा वाद-विवाद उभरा है वह निन्दनीय है। लेकिन यह विवाद सामने आया है और उससे कई और सवाल खड़े हो गये हैं। दूरदर्शन राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल और सरकार के नियंत्रण में है। दूरदर्शन ने स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अन्तिम यात्रा और अन्तिम संस्कार का लाइव कवरेज करने के लिये जितना समय लगाया था उसके मुकाबले में स्व.डॉ.मनमोहन सिंह के लिये जितना समय दिया है उसी पर सवाल उठ गये हैं। जबकि दोनों ही दो-दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। सरकारी चैनल में इस तरह का भेदभाव पाया जाना क्या सरकार की मंशा और चैनल की निष्पक्षता पर सवाल नहीं खड़े करता है? पूर्व प्रधानमंत्री के अन्तिम संस्कार के दौरान खास राजकीय प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है। इसका मकसद देश के प्रति उनके योगदान और पद की गरिमा को सम्मानित करना होता है। पूर्व प्रधानमंत्रियों का अन्तिम संस्कार दिल्ली के विशेष स्मारकीय स्थलों पर किया जाता है जैसे जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का अन्तिम संस्कार राजघाट परिसर में किया गया था। वहीं कई पूर्व प्रधानमंत्रीयों के लिये अलग से समाधि स्थान भी बनाया जाता है। अन्तिम संस्कार का तरीका दिवंगत व्यक्ति और उनके परिजनों के धार्मिक विश्वासों के अनुसार होता है। यह प्रोटोकॉल सरकार द्वारा तय है। 1997 में इसके नियमों में संशोधन करके राज्य सरकारों को भी राष्ट्रीय शोक घोषित करने का प्रावधान किया था।
राष्ट्रीय प्रोटोकॉल के तहत स्व.डॉ. मनमोहन सिंह का अन्तिम संस्कार कहां किया जायेगा यह केन्द्र सरकार को तय करके डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार को सूचित करना था। लेकिन केन्द्र सरकार सुबह 11ः30 बजे मंत्रिमण्डल की बैठक करने के बाद भी शाम तक इसकी सूचना नहीं दे सकी जबकि परिवार और कांग्रेस पार्टी द्वारा इसके लिये आग्रह किया गया था कि उनका संस्कार राजघाट पर किया जाये। लेकिन सरकार राजघाट पर जगह चिन्हित नहीं कर पायी। इस पर प्रियंका गांधी ने स्व.इंदिरा गांधी और स्व. राजीव गांधी के स्मारक स्थलों में जमीन चिन्हित करके स्व.डॉ. मनमोहन सिंह का अन्तिम संस्कार वहां करने और स्मारक बनाने की पेशकश कर दी। इसके बाद जो वाद-विवाद सामने आया उसमें यहां तक आरोप लगा की सरकार ने स्व.डॉ. मनमोहन सिंह का नीयतन अपमान करके एक नया मुद्दा खड़ा कर दिया है। स्व.डॉ. मनमोहन सिंह के देहान्त की खबर आने के बाद अन्तिम संस्कार तक बीच में जितना वक्त था उसमें केन्द्र सरकार सारे फैसले समय पर लेकर डॉ. साहब के परिवार और कांग्रेस पार्टी को सूचित कर सकती थी। जबकि प्रोटोकॉल के अनुसार यह केन्द्र को ही करना था। लेकिन केन्द्र सरकार ऐसा नहीं कर पायी। केन्द्र की यह चूक नीयतन हुई या अनचाहे ही हो गयी। इसका फैसला आने वाला समय करेगा। लेकिन स्व.डॉ मनमोहन सिंह जिस व्यक्तित्व के मालिक थे और देश के लिये जो योगदान उनका रहा है उसको सामने रखते हुये यदि केन्द्र का आचरण नीयतन रहा है तो यह सरकार पर भारी पड़ेगा।
जो लोग स्व.डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उस दौरान उठे अन्ना आन्दोलन की बात करते हैं उनको यह भी स्मरण रखना चाहिए कि उन्ही के कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्रियों के खिलाफ कारवाई हुई। यह अब स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है कि अन्ना आन्दोलन एक प्रायोजित कार्यक्रम था। डॉ.सिंह के ही कार्यकाल में कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ कारवाई हुई। उन्होंने ही लोकपाल विधेयक लाया। लेकिन जिस लोकपाल के लिये अन्ना आन्दोलन हुआ उसके तहत कितने मामलों की जांच पिछले एक दशक में हुई वह अभी तक सामने नहीं आयी है। विनोद राय सी ए जी की जिस रिपोर्ट पर टू जी स्कैम का आरोप लगा और 1,76,000 करोड़ के घपले का आरोप लगा। उसकी जांच में विनोद राय ने यह खेद क्यों प्रकट किया कि उनको गणना में गलती लग गई थी। इन तथ्यों के परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि स्व. डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार पर लगे आरोपों का सच क्या है। इसलिये आज उनके निधन के बाद उनके अपमान का मुद्दा कहीं कुछ बड़ा न हो जाये इसकी आशंका उभरने लगी है।