ई.वी.एम. के माध्यम से जब से मतदान शुरू हुआ है तभी से इन मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते आ रहे हैं। सबसे पहले उनकी विश्वसनीयता पर भाजपा ने सवाल उठाये थे। जब आडवाणी पार्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब वाकायदा एक किताब लिखकर इन मशीनों की कमियां गिनाई गई थी। फिर भाजपा नेता डॉ. स्वामी इस मुद्दे पर अदालत पहुंचे। तब इन मशीनों के साथ वी.वी.पैट में मिलान करने का प्रावधान किया गया। लेकिन मशीनों की विश्वसनीयता पर उठते सवाल कम नहीं हुये। मतदान वैलेट पेपर से करवाने की मांग बढ़ती चली गई। अठराह राजनीतिक दल एक साथ सर्वाेच्च न्यायालय पहुंचे और वैलेट पेपर से मतदान की मांग रखी। सर्वाेच्च न्यायालय ने यह मांग तो अस्वीकार कर दी लेकिन यह प्रावधान कर दिया कि ई.वी.एम वी.वी.पैट का सारा रिकॉर्ड 45 दिनों तक सुरक्षित रखा जायेगा। इसी के साथ यह भी प्रावधान कर दिया गया कि यदि चुनाव परिणाम के बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे प्रत्याशी चुनाव पर आपत्ति जताते हुए इसकी जांच की मांग करते हैं तो वी.वी.पैट और ईवीएम मशीनों का मिलान किया जाये। इस पर आने वाला खर्च इन लोगों से लिया जाये। यदि इनके मिलान में गड़बड़ी सामने आती है तो इनका पैसा इनको वापस कर दिया जाये और अगली कारवाई अमल में लाई जाये।
पिछले वर्ष हुये लोकसभा और विधानसभा चुनावों के समय यह वैधानिक वस्तुस्थिति थी। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव में यह अनुमान लगाये जा रहे थे की इन राज्यों में कांग्रेस और इण्डिया गठबंधन निश्चित रूप से जीत हासिल करेगा। लेकिन चुनाव परिणामों में परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे। इसके बाद ईवीएम मशीनों और चुनाव आयोग पर जो गंभीर आरोप लगे उनमें आयोग पर चुनाव डाटा जारी करने में गड़बड़ी के आरोप लगे। मशीनों की बैटरी चार्जिंग प्रतिशतता पर सवाल उठे। मतदान के आंकड़ों पर सवाल उठे। चुनाव आयोग के पास प्रमाणों के साथ शिकायतें दायर हुई। जिन्हें आयोग ने अस्वीकार कर दिया। महाराष्ट्र में तो कुछ गांव में कांग्रेस इण्डिया गठबंधन को एक भी वोट नहीं मिलने के तथ्य सामने आये। ग्रामीणों ने ईवीएम मशीनों की प्रमाणिकता के लिये मॉक पोलिंग का सहारा लिया जिसे चुनाव आयोग ने रोक दिया। लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले बने और कुछ को जेल तक जाना पड़ा। हरियाणा में लोगों ने अदालत का रुख किया। पंजाब एण्ड हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सारा रिकॉर्ड और सी.सी.टी.वी फुटेज का डाटा उपलब्ध करवाने की मांग की गई। उच्च न्यायालय ने यह डाटा देने के आदेश कर दिये। लेकिन जिस दिन यह आदेश हुये उसी दिन इस संबंध में कानून बनाकर यह डाटा देने पर रोक लगा दी गई। अब यह मामला सर्वाेच्च न्यायालय में पहुंच गया है। लेकिन चुनाव आयोग ने यह डाटा देने से इसलिये मना कर दिया है कि इसमें करोड़ों घंटों की रिकॉर्डिंग है जिसे खंगालने में 36 वर्ष लग जायेंगे। आयोग के इस तर्क से मशीनों और आयोग पर उठते सवाल स्वतः ही और गंभीर हो जाते हैं क्योंकि किसी को भी वही डाटा/फुटेज देखने की आवश्यकता होगी जहां पर गड़बड़ी की आशंका होगी। इस प्रकरण में हरियाणा के सिरसा जिले के रानिया विधानसभा क्षेत्र के चुनाव परिणाम आने पर कांग्रेस प्रत्याशी सर्वमित्र कंबोज इनेलो के अर्जुन चौटाला से हार गये। इस हार के बाद उन्होंने नो बूथों पर ईवीएम मशीनों और वीवीपीएटी के मिलान और जांच के लिये आवेदन कर दिया। आवेदन के साथ 4,34,000 की फीस भी जमा करवा दी। उनके आवेदन पर जांच के आदेश भी हो गये। चुनाव में जितने भी प्रत्याशी थे सबको इस जांच के दौरान हाजिर रहने के आदेश हो गये। लेकिन जब चैकिंग की बात आयी तो जिन मशीनों पर वोटिंग हुई थी उनका रिकॉर्ड दिखाने की बजाये वह डाटा डिलीट कर नये सिरे से मॉक वोटिंग करके उसकी गणना करने का आयोग की ओर से फरमान जारी हो गया। इस पर कांग्रेस प्रत्याशी ने सारी प्रक्रिया को वहीं रुकवा दिया। अब यह मामला उच्च न्यायालय और सर्वाेच्च न्यायालय तक जाने की संभावना बन गयी है। चुनाव आयोग के अपने आचरण से ही कई गंभीर शंकाएं उभर जाती हैं।
इस सारे प्रकरण के बाद जो सवाल उठते हैं उनमें सबसे पहला सवाल यह उठता है कि शीर्ष अदालत ने सारा रिकॉर्ड पैंतालीस दिनों तक सुरक्षित रखने का फैसला दिया है। चुनाव परिणाम पर सवाल उठने का हक दूसरे और तीसरे प्रत्याशी को पूरा खर्च जमा करवाने के बाद दिया है। पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह रिकॉर्ड देने का आदेश पारित कर दिया। फिर इस आदेश के बाद कानून बदलकर रिकॉर्ड देने पर रोक का प्रावधान क्यों किया गया? जब महाराष्ट्र में मॉक वोटिंग रोकने के लिये आयोग ने पुलिस बल का प्रयोग करके उसे रोक दिया तो हरियाणा में रानिया विधानसभा में इस मॉक वोटिंग पर आयोग क्यों आया। इस बार चुनाव डाटा देरी से जारी करने का सबसे बड़ा आरोप आयोग पर लगा है। अब जो परिस्थिति अदालत के फैसले और आयोग के आचरण से निर्मित हुई है उसके परिणाम आने वाले समय में बहुत गंभीर होंगे। रानिया में जिस तरह का आचरण सामने आया है उससे अब तक के सारे चुनाव परिणामों पर जो सन्देह आयेगा उसका अंतिम परिणाम क्या होगा यह एक बड़ा सवाल होगा।