कांग्रेस में सर्जरी क्यों आवश्यक है

Created on Tuesday, 11 March 2025 18:54
Written by Shail Samachar
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ब्यान में कहा है कि पार्टी के भीतर भाजपा के एजैन्ट मौजूद हैं और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना पड़ेगा। राहुल कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। इसलिये उनके ब्यान को गंभीरता से लिया जा रहा है। क्योंकि वर्तमान में राहुल ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने हजारों किलोमीटर की पद यात्राएं करके देश की परिस्थिति को निकट से देखने और समझने का प्रयास किया है। राहुल की पदयात्राओं के प्रभाव के कारण ही इस लोकसभा चुनावों में भाजपा 240 के आंकड़े पर आकर रुक गयी। ऐसे में कांग्रेस के भीतर भाजपा के एजैन्ट होने के आरोप का विश्लेषण किया जाना आवश्यक हो जाता है। देश में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ और 1977 तक सत्ता कांग्रेस के पास ही रही। जब देश आजाद हुआ था तब देश में कितने राजे रजवाड़े थे जो अपने में स्वतंत्र रियासतें थी उन राजाओं को केन्द्रीय सत्ता में लाना एक बहुत बड़ा काम था। जो 1948 में सरदार पटेल के प्रयासों से संपन्न हुआ। रियासतों के विलय के बाद देश में भूमि सुधारो का काम हुआ। उस समय बैंक भी प्राइवेट सैक्टर में थे उनका राष्ट्रीयकरण किया गया। लेकिन उस समय कुछ लोगों ने भू सुधारों का विरोध किया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ तो सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया और संसद में संविधान संशोधन लाकर बैंकों का राष्ट्रीयकरण पूरा किया गया। उस समय कुछ ताकतें ऐसी थी जो इन सुधारों के पक्ष में नहीं थी। इसी परिदृश्य में देश के कुछ राज्यों में 1967 में ‘संविद सरकार’ का गठन हुआ। पंजाब में जनसंघ और अकाली दल की सरकार बनी। फिर कुछ परिस्थितियां ऐसी घटी के 1975 में देश को आपातकाल देखना पड़ा। 1977 में जब आपातकाल घटा तब वाम दलों को छोडकर शेष विपक्ष में अपने-अपने दलों का विलय करके जनता पार्टी का गठन किया और 1977 के चुनावों में सत्ता जनता पार्टी के पास आ गयी। 1977 में बनी जनता पार्टी 1980 में जनसंघ घटक की आर.एस.एस. के साथ निष्ठाओं के कारण दोहरी सदस्यता के आरोप में टूट गयी। जनता पार्टी के विघटन के बाद जनसंघ घटक ने अपना नाम भारतीय जनता पार्टी रख लिया। 1980 में बनी भाजपा को केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के लिये अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन से सत्ता प्राप्त हुयी। इस दौरान राम जन्मभूमि, बाबरी विध्वंस, आरक्षण विरोध आदि कई आन्दोलनों का भाजपा को सहारा लेना पड़ा। इस सबके परिणाम स्वरुप 2014 में सत्ता प्राप्त हुई। 2014 के आंकड़े में 2019 में बढ़ौतरी हुई परन्तु यह बढ़ौतरी 2024 में रुक गयी। इस दौरान भाजपा ने अपने सहयोगी दलों में तोड़फोड़ करवाकर उनको अपने में शामिल करवा लिया। कांग्रेस का भी एक बड़ा वर्ग भाजपा में जा मिला है। लेकिन अब डॉनाल्ड ट्रंप के खुलासों ने जिस तरह से मोदी की छवि में छेद किया है उससे राजनीतिक परिस्थितियां एकदम बदल गयी हैं। आने वाले समय में भाजपा मोदी को कई सवालों का जवाब देना पड़ेगा। इन बदली हुई परिस्थितियों ने कांग्रेस की भूमिका को बहुत अहम बना दिया है। क्योंकि इस समय कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है भाजपा का। राहुल गांधी को पप्पू प्रचारित करने के लिये किस तरह का अभियान चलाया गया था वह कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन से स्पष्ट हो चुका है। राहुल गांधी की पदयात्रा ने राहुल को स्थापित कर दिया है। आज राहुल से ही मोदी और भाजपा को डर है। ऐसे में मोदी भाजपा हर संभव तरीके से कांग्रेस में अन्दर बाहर से सेंधमारी का प्रयास करेंगी। इसलिये आज कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी भीतर बैठे एजैन्टांे के चिन्हित करके बाहर करना आवश्यक हो जाता है। इस सर्जरी में कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों पर विशेष नजर रखने की आवश्यकता है। क्योंकि इन राज्य सरकारों के माध्यम से ही यह संदेश जायेगा कि कांग्रेस को अपने विजिन के प्रति पूरी तरह स्पष्ट और ईमानदार है। आज कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों से ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचने का डर है क्योंकि एक राज्य सरकार का आचरण पूरे देश में प्रचारित हो जाता है जैसे हरियाणा और महाराष्ट्र में हिमाचल को प्रचारित किया गया है।