क्या वक्फ संशोधन धार्मिक राष्ट्र घोषित करने का संकेत है?

Created on Sunday, 20 April 2025 14:12
Written by Shail Samachar
क्या वक्फ संशोधन हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक सुनियोजित कदम है? यह सवाल इसलिय प्रसांगिक हो जाता है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा संघ परिवार का एक अनुषांगिक संगठन है। 1925 में विजयदशमी के दिन हुई इसकी प्रारंभिक बैठक में हेडगेवार के साथ हिन्दू महासभा के जिन चार नेताओं बी.एस.मुंजे, गणेश सावरकर, एल.वी.परांजपे और बी.बी. डोलकर की मन्त्रणा हुई थी उसमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ही संकल्प लिया गया था। स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिन्दू महासभा और आर.एस.एस. के नेतृत्व का योगदान कितना रहा होगा यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में यह तथ्य सामने आया कि उन्होंने स्वतन्त्रता सेनानियों के खिलाफ अदालत में गवाही तक दी हुई है। गवाही देने के इस प्रमाण को भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने ही देश के सामने रखा है। इस देश में मुस्लिम और अंग्रेज दोनों ही शासन कर चुके हैं। लेकिन मुस्लिम शासकों के खिलाफ उस तरह का आन्दोलन कभी नहीं हुआ जिस तरह का अंग्रेजों के खिलाफ हुआ है। मुस्लिम नेताओं का देश की आजादी के आन्दोलन में भी बराबर का योगदान रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ हुई लड़ाईयों में भी मुस्लिमों का योगदान सराहनीय रहा है अब्दुल हमीद जैसे कई नाम रिकॉर्ड पर हैं। आज भी भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के पारिवारिक रिश्ते मुस्लिमों के साथ हैं। कई बार ऐसे ही नेताओं की सूचीयां वायरल हो चुकी है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि आज का सारा हिन्दू मुस्लिम विवाद कुछ राजनीतिक कारणों के प्रतिफल से अधिक कुछ नहीं है। प्रश्न सत्ता में बने रहने का ही है।
आर.एस.एस. के बिना भाजपा की कल्पना करना भी संभव नहीं है। 2019 में आयी संघ की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक इसकी 84877 शाखाएं चल रही हैं जिनमें से 59266 प्रतिदिन चल रही है। दर्जनों इसके अनुषांगिक संगठन है। 1973 से तो इसका इतिहास लेखन प्रकोष्ठ भी चल रहा है जो इतिहास पर अपने दृष्टिकोण से काम कर रहा है। वीर सावरकर के बारे में पूर्व मन्त्री और वरिष्ठ पत्रकार अरुण शौरी ने अपनी किताब में संघ को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। आज जिस तरह का नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है उसका अन्तिम परिणाम देश के लिये घातक होगा। क्योंकि हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा में मुस्लिम और अन्य कोई भी गैर हिन्दू शासन की मुख्य धारा में नहीं आता है। भारत एक बहुभाषी और बहुधर्मी देश है। मुस्लिम देश की दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी है। इसी बहुधर्मिता के कारण संविधान में सरकार का चरित्र धर्म निरपेक्षता का रखा गया है। यदि किसी भी आधार पर किसी भी धर्म के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया जायेगा तो उसका अन्तिम परिणाम फिर बंटवारा ही होगा यह एक कटु सत्य है।
भारत को धार्मिक देश बनाने की दिशा में जो प्रयास शुरू हुये हैं उन पर एक नजर डालना आवश्यक हो जाता है। 2014 में देश में भाजपा भ्रष्टाचार, काले धन और हर एक के हिस्से में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने के नाम पर सत्ता में आयी। लेकिन क्या इन मुद्दों पर कुछ हुआ शायद नहीं। 2014 के भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गये आन्दोलन का संचालन आर.एस.एस. के हाथ में था। लोकपाल की नियुक्ति इस आन्दोलन का मुख्य मुद्दा था। हर चुनाव में नये मुद्दे उछाले गये और पुराने को भुलाते गये। नोटबन्दी और करोना ने बहुत कुछ बदल दिया। करोना में ही तबलीगी समाज पर इसे फैलने का आरोप लगा। लव जिहाद और गौ रक्षा में भीड़ हिंसा तक सामने आयी। फिर तीन तलाक, धारा 370 और समान नागरिक संहिता के मुद्दे सामने आये। इन सारे मुद्दों के साये में सारे सार्वजनिक संस्थान निजी हाथों में चले गये। यह पहली सरकार है जिसके शासन में कोई नया सार्वजनिक संस्थान नहीं खुला। स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया तक में अदानी की सहभागिता हो गयी। आज देश का कर्ज जीडीपी के बराबर होने जा रहा है यह विश्व बैंक का आकलन है। 140 करोड़ की आबादी वाले देश में जब 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर निर्भर होने को बाध्य हो जायें तो वहां विकास के सारे दावों का सच अपने आप प्रश्नित हो जाता है। दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष का दावा और कृषि के लिये लाये गये तीन कानून क्या हकीकत बयां करते हैं यह अन्दाजा लगाया जा सकता है।
इस वस्तु स्थिति में वक्फ कानून में संशोधन लाकर जिस तरह से देश की दूसरी बड़ी धार्मिक आबादी को छेड़ दिया गया है वह संविधान की धारा 26 पर सीधा हमला है। जिससे यह इंगित होता है कि सरकार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिये अपने कदम बढ़ाती जा रही है। जब संसद के नये भवन में सांसदों ने प्रवेश किया था तब उन्हें संविधान की जो प्रतियां दी गई थी उन में धर्मनिरपेक्ष शब्द प्रस्तावना से हटा दिया गया था। अब वक्फ संशोधन के खिलाफ जिस तरह का वातावरण बनता नजर आ रहा है यदि वह कन्ट्रोल न हुआ तों कई प्रदेशों में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बन जायेंगी। कांग्रेस शासित कुछ राज्य अपने ही भार से दम तोड़ने के कगार पर पहुंच जायेंगे। कुछ ऐसी परिस्थितियों बनती नजर आ रही हैं जहां सरकार देश को धार्मिक राज्य घोषित करने का कदम उठा सकती है।