संसद सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के सभापति और देश के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुये अपने पद से जैसे ही त्यागपत्र देने की घोषणा की तो सब चौंक गये थे कि अचानक क्या हो गया। लेकिन जैसे ही इस त्यागपत्र की परतंे खुलकर यह सामने आया कि त्यागपत्र दिया नहीं है बल्कि लिया गया है तो सारे देश की नजरें इस पर आ गयी हैं कि आखिर उप-राष्ट्रपति ने ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें तुरन्त प्रभाव से अपना पद छोड़ने के लिये बाध्य किया गया। देश की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उप-राष्ट्रपति का पद प्रधानमंत्री से बड़ा होता है। इस त्यागपत्र के बाद जिस तरह का राजनीतिक व्यवहार जगदीप धनखड़ के साथ हुआ है उससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि उन्हें पूरी तरह अपमानित किया गया है। इस अपमान के कारणों का खुलासा प्रधानमंत्री स्वयंम् या उनका कोई प्रतिनिधि अभी तक नहीं कर पाया है। ऐसे में यह देश का हक बनता है कि उसे वास्तविक कारणों की जानकारी दी जाये क्योंकि यह देश से जुड़ा सवाल है। देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति के साथ ऐसा आचरण हो जाये और उसके कारणों की जानकारी देश की जनता को न दी जाये तो इसे लोकतंत्र की कौन सी संज्ञा दी जायेगी? क्या देश में सही में लोकतंत्र खतरे में आ गया है? देश का शासन संविधान के अनुसार चल रहा है या किसी तानाशाह के इशारे पर चल रहा है? यदि प्रधानमंत्री यह देश के सामने स्पष्ट नहीं करते हैं तो इससे आने वाले समय के लिये अच्छे संकेत नहीं जायेंगे। यदि देश का उप-राष्ट्रपति ही सुरक्षित नहीं है तो और कौन हो सकता है? यदि उप-राष्ट्रपति ने देश हित के खिलाफ कोई अपराध कर दिया है तब तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि वह अपराध जल्द से जल्द देश के सामने लाया जाये। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह माना जायेगा कि यह कृत्य संवैधानिक पद की सुनियोजित हत्या है।
उप-राष्ट्रपति का पद खाली होने के बाद इसी संसद सत्र में इस पर चुनाव करवाया जायेगा। चुनाव आयोग इस प्रक्रिया में लग गया है। चुनाव आयोग हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनावों में जिस कदर विवादित हो चुका है और बिहार विधान सभा चुनावों की तैयारीयों में जिस तरह से मतदाता सूचियों के विशेष संघन निरीक्षण SIR पर विपक्ष सवाल उठाता जा रहा है और सत्ता पक्ष तथा चुनाव आयोग अपने को सर्वाेच्च न्यायालय से भी बड़ा मानकर चल रहा है वह सही में लोकतंत्र के लिये एक बड़ी चुनौती होगी। चुनाव आयोग और सरकार के रुख को उपराष्ट्रपति पद के साथ हुए आचरण के साथ यदि जोड़कर देखा जाये तो तस्वीर बहुत भयानक हो जाती है। संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों को यह सोच कर चलना होगा कि यदि उनका आचरण पद की मर्यादा के अनुसार नहीं होगा तो जनता को स्वयं सड़कों पर उतरना होगा। हम बच्चों को राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पदों के अधिकार और कर्तव्य पढ़ाते हैं। क्या किसी व्यवस्था में यदि इन पदों की जलालत पढा़नी पड़े तो क्या पढ़ाएंगे। इन पदों पर बैठे हुए लोगों को भी अपनी गरिमा और मर्यादा की स्वयं रक्षा करनी होगी।
इस समय केन्द्र सरकार अकेली भाजपा की नहीं है उसके सहयोगी दल भी हैं। सहयोगी दलों में अपने-अपने वर्चस्व के सवाल उठने लग पड़े हैं। ऐसे में जिस तरह का आचरण जगदीप धनखड़ के साथ सामने आया है वह एन.डी.ए. के घटक दलों के लिये भी एक बड़ी चेतावनी प्रमाणित होगी। यदि बिहार विधानसभा चुनावों में किन्हीं कारणों से एन.डी.ए. की सरकार नहीं बन पाती है तो उसके बाद एन.डी.ए. का बिखरना शुरू हो जायेगा क्योंकि सब धनखड़ के साथ हुए व्यवहार को सामने रखेंगे।