वोट चोरी के आरोपों से राजनीतिक संकट बढ़ा

Created on Tuesday, 09 September 2025 04:21
Written by Shail Samachar


राहुल गांधी ने वोट चोरी का जिस प्रामाणिकता के साथ खुलासा देश की जनता के सामने रखा है उससे पूरे देश में चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार की विश्वसनीयता पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। क्योंकि इन आरोपों पर चुनाव आयोग अपना प्रमाणिक रिकॉर्ड जनता में जारी करके अपना स्पष्टीकरण देने की बजाये राहुल गांधी से ही शपथ पत्र की मांग करके और भी प्रश्नित हो गया है। वोट चोरी का आरोप एक जन मुद्दा बन चुका है और आम आदमी को यह समझ आ गया है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल का ही पक्षधर बनकर रह गया है। वोट चोरी के आरोप पर जिस तरह का जन समर्थन राहुल गांधी को मिला है उससे स्पष्ट हो गया है की आने वाले समय में यह मुद्दा देश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल देगा। क्योंकि इस जन मुद्दे पर से ध्यान भटकाने के लिये जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी की स्वर्गवासी मां को मंच से गाली देने का खेल खेला गया और गाली देने वाला एक भाजपा का ही कार्यकर्ता निकला उससे सत्ता पक्ष की हताशा ही जनता के सामने आयी है।

इस समय इस गाली वाले मुद्दे पर जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस नेतृत्व से सार्वजनिक क्षमा याचना की मांग की है उससे वह पुराने सारे दृश्य जिनमें प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक भाजपा नेताओं द्वारा स्वयं सोनिया गांधी और शशि थरूर की पत्नी पर जिस तरह की भाषाओं का इस्तेमाल करते हुये उन्हें संबोधित किया गया था एकदम नए सिरे से चर्चा में आ गये हैं। भाजपा के एक भी नेता द्वारा उन अपशब्दों पर एक बार भी खेद व्यक्त नहीं किया गया। बल्कि इसी दौरान भाजपा सांसद कंगना रनौत को लेकर भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने जिस तरह के आरोप प्रधानमंत्री पर लगाये हैं और पूरी भाजपा डॉ. स्वामी को लेकर एकदम मौन साधकर बैठ गयी है उससे स्थिति और भी गंभीर हो गयी है। इन्हीं आरोपों के दौरान प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर जो सवाल उठे हैं उन पर भी भाजपा नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रियाएं नहीं आयी हैं। प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अडानी को लेकर जिस तरह का विवाद अमेरिकी अदालत के माध्यम से सामने आया है उससे भी प्रधानमंत्री की छवि पर कई गंभीर प्रश्न चिन्ह स्वतः ही लग गये हैं। भाजपा का पर्याय बन चुके प्रधानमंत्री पर जिस तरह के सवाल खड़े हो गये हैं उनका परिणाम गंभीर होगा यह तय है।
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पद त्याग पर उठी चर्चाओं ने भाजपा और मोदी के राजनीतिक चरित्र पर जिस तरह के सवाल खड़े किये हैं उससे स्थिति और भी सन्देहास्पद हो गयी है। भाजपा के इस राजनीतिक चरित्र पर भी सवाल उठने लग पड़े हैं कि भाजपा का साथ देने वाले दलों का राजनीतिक भविष्य कितना सुरक्षित रह पाता है। पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के इस चरित्र का प्रमाण है। कुल मिलाकर जिस तरह से राहुल गांधी ने वोट चोरी का आरोप लगाने से पूर्व इस संद्धर्भ में पुख्ता दस्तावेजी प्रमाण जूटा कर चुनाव आयोग और इससे लाभान्वित होती रही भाजपा की राजनीति पर हमला बोला है उससे पूरे देश में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर जो प्रश्न चिन्ह खड़े हुए हैं उसका जवाब चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार से नहीं आ पा रहा है। बल्कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर जिस तरह के सवालों से घिर गये हैं उसके परिणाम भाजपा की राजनीतिक सेहत के लिए नुकसानदेह प्रमाणित होंगे। क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय ने बिहार की एस.आई.आर. पर जिस तरह से चुनाव आयोग को घेरा है उससे सारा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया है। ऐसी स्थितियां बन गयी हैं जिनसे केंद्र की सरकार पर संकट आता नजर आ रहा है। इस राजनीतिक परिदृश्य में यदि राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर बैठे भाजपा के स्लीपर सैलों को चिन्हित करके बाहर का रास्ता न दिखा पाये तो इससे राहुल को कांग्रेस के अन्दर भी एक बड़ी लड़ाई छेड़नी पड़ेगी। क्योंकि देश की राजनीति इस समय जिस मोड़ पर पहुंच गयी है उसमें इस तरह के भीतरघात का सबसे अधिक डर रहता है। क्योंकि आसानी से कोई सत्ता नहीं छोड़ता है।