प्रदेश के राज्यपाल महामहिम आर्चाय डा. देवव्रत प्रदेश के विश्वविद्यालयों के पदेन चांसलर और इस नाते इन संस्थनों के सर्वोच्च हैं। महामहिम वैदिक संस्कारों और सस्कृति के लिये कितने प्रतिबद्ध है इसकी झलक पिछले दिनों राजभवन में स्थायी यज्ञशाला के निर्माण से सामने आ गयी है। राजभवन में स्थायी रूप से यज्ञशाला की स्थापना को लेकर शैल का महामहिम से मतभेद है और मतभेद के पक्षों को हम अपने पाठकों के सामने रख भी चुकें हैं। लेकिन राज्यपाल द्वारा राजभवन में प्रतिदिन वैदिक हवन किये जीने पर हमारा कोई एतराज नही है। बल्कि इसके लिये वह प्रशंसा और बधाई के पात्र हैं कि वह एक सच्चे और प्रतिबद्ध आर्यसमाजी की मान्यताओं का अपने निजि जीेवन मे निर्वहन कर रहें हैं। लेकिन वह राज्यपाल के रूप में प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख हैं और इस नाते उन्हे ऐसी परम्पराओं की स्थायी स्थापना से भी परहेज करना होगा जिनका निर्वहन करना उनके बाद आने वाले राज्यपालों के लिये कठिन और विवादित न बन जाये।
लेकिन अब राज्यपाल ने सरकार को पत्र लिखकर प्रदेश के विश्वविद्यालयों और उनके अधीन आने वाले अन्य शैक्षणिक संस्थानांे के दीक्षांत समारोहों के लिये अब तक चली आ रही ड्रेस कोड को बदलने का आग्रह किया है। राज्यपाल के इस पत्र के कारण ही टांडा मैडिकल कालिज दीक्षांत समारोह कुछ दिनों के लिये स्थगित किया गया है। राज्यपाल के इस आग्रह पर हिमाचल विश्वविद्यालय ने नया ड्रेस कोड सुझाने के लिये एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने लम्बे चैडे़ विचार विमर्श के बाद विशुद्ध हिमाचली परिवेश पर आधारित एक डेªस कोड तैयार करके ई सी के सामने रखा है। ई सी ने इस डेªस कोड को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार को भेज दिया है। इस नये प्रस्तावित डेªस कोड पर सरकार क्या फैसला लेती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन राज्यपाल की यही पहल स्वागत योग्य है और इसे पूरा समर्थन मिलना चाहिये। अब तक चला आ रहा ड्रेस कोड निश्चित रूप से हमारी संस्कृति का प्रतीक नही है। ऐसे बदलाव ऐसे ही शैक्षणिक स्तरांे पर आने चाहिये। बल्कि ऐसा ही कोई डेªस कोड न्यायपालिका के लिये भी सुझाया जाना चाहिये। राज्यपाल की इस पहल का समर्थन देते हुए विश्वहिन्दु परिषद ने एक कदम आगे जाते हुए प्रदेश के कई नगरां के नाम बदलने का भी सुझाव दिया हें परिषद का सुझाव हे कि ब्रिटिश शासन का याद दिलाने वाले सभी प्रतीकों को बदल दिया जाना चाहिये।
विश्वहिन्दु परिषद का यह सुझाव स्वागत योग्य हैे लेकिन इस सुझाव के साथ ही एक सवाल भी खड़ा होता हैं आज हेरिटेज के नाम पर अंग्रेजी शासन की पहचान इन चुके बहुत सारे पुराने भवनों और अन्य समारकों को हैरिटेज के नाम पर संरक्षित रखने के प्रयास किये जा रहे हैं। बल्कि हैरिटेज के नाम पर मिल रहे धन के लालच में ज्यादा भवनों के संरक्षण का काम चल रहा है। संरक्षण के इस काम में भारत सरकार एशियन विकास बैंक से ऋण लेकर राज्य सरकार को धन उपलब्ध करवा रही है। इस परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि एक ओर हम अंग्रेजी शासन के दिये हुए नामों को बदलने का प्रयास कर रहें हैं और इस प्रयास में हम अपनी सस्कृति के नाम पर किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। लेकिन दूसरी ओर अंग्रेजी शासन का प्रतीक बन चुकी पुरानी इमारतों को कर्ज लेकर संरक्षित करने में लगे हुए हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? क्या यह हमारी सोच खोखले पन को नही उजागर करना है। यदि हम सही मायनों में आने वाली पीढ़ीयों को अंगे्रजी शासन के प्रतीकों से मुक्त रखना चाहतें हैं तो उसके लिये नाम बदलने से पहले कर्ज लेकर गुलामी के प्रतीकों को सहजने और संरक्षित रखने के कदमों पर विचार करना होगा।