लोकसभा सचिवालय के संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण ब्यूरो द्वारा संसदीय प्रक्रिया और कार्य विधि पर पत्रकारों के लिये आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के अवसर पर विशेषाधिकारियों के मुद्दे पर अपने चिन्तन और चिन्ताओं को सांझा करते हुए भाजपा संसाद मीनाक्षी लेखी ने जो सवाल राष्ट्रीय बहस के लिये उछाले हैं उस पर व्यापक चर्चा होना अनिवार्य है। आज संसद से लेकर सड़क तक हर व्यक्ति अपने विशेषाधिकारियों को लेकर न केवल सजग है बल्कि उनके जरा से भी हनन पर अक्रोशित हो उठता है। इस परिदृश्य में मीनाक्षी लेखी ने जो स्वयं संसद की विशेषाधिकार समिति की अध्यक्ष भी हैं सांसद निधि को लेकर जो सवाल उछाला है उससे पूरी प्रशासनिक व्यवस्था सवालों के कटघरे में खड़ी हो जाती है। आज हमारे सांसदों और विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र के विकास के लिये सरकार के बजट से हटकर एक विकास निधि मिलती है।
इस विकास निधि को यह संासद और विधायक अपने क्षेत्र में किसी भी विकास कार्य पर स्वेच्छा से खर्च कर सकते हैं लेकिन इस विकास निधि को जिला प्रशासन के माध्यम से ही खर्च किया जाता है जिस भी कार्य पर इसे खर्च किया जाना होता है उसका पूरा प्रारूप जिला प्रशासन द्वारा ही तैयार किया जाता है और उसके संचालन की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन के हाथ में रहती है। इसमें सांसद/ विधायक की भूमिका मात्र इतनी ही रहती है कि वह स्वयं या अपने क्षेत्र विशेष के लोगों के आग्रह पर ऐसे विकास कार्य को चिन्हित करके अपनी विकास निधि से धन की उपलब्धता सुनिश्चित करता हैं । लेकिन उस चिन्हित कार्य के लिये वह धन कितना पर्याप्त है? उसमें और कितना धन वांच्छित होगा या आवंटित धन में से कितना शेष बच जायेगा। इस सबकी जानकारी प्रशासन सबंधित सांसद /विधायक को समय पर उपलब्ध नहीं करवाता है। आज कई सांसद ऐसे है जिनकी सांसद निधि पूरी खर्च हो नही पाती है। फिर यदि सांसद/ विधायक राज्य सरकार के सत्तापक्ष से भिन्न दल के हों तो स्थिति और भी विकट हो जाती है। मीनाक्षी लेखी प्रशासन की ऐसी वस्तुस्थिति की स्वयं भुक्त भोगी है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब एक सांसद/विधायक को उसके क्षेत्र के विकास के लिये बजट से इत्तर विकास निधि का प्रावधान किया गया है। तो वहां के लोगों की अपने सांसद/विधायक से अगल से कुछ अपेक्षाएं रहेगी ही। इन्ही अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये इस धन का आवंटन किया जाता है। विकास निधि पाना और उसका खर्च करना सांसद का विशेषाधिकार है। हर वर्ष हर सांसद को पांच करोड को विकास निधि मिलती है और इसे एक वर्ष के भीतर खर्च किया जाना होता है लेकिन यह तभी संभव हो सकता हैै जब जिला प्रशासन इसमें पूरा सहयोग करे। इसके लिये यह व्यवस्था रहनी चाहिये की इस निधि का अवांटन भी एक तय समय सीमा को भीतर हो जाना चाहिये। सांसद /विधायक को भीे ऐसे कार्यो का चयन एक तय समय सीमा में कर लेना चाहिये। चयनित कार्य का प्रारूप तैयार करने के लिये भी समय सीमा तय होनी चाहिये और चयनित रूप देने से पहले सांसद/विधायक द्वारा भी उसका अनुमोदन होना चाहिये। इस तरह जब कार्य शुरू हो जाये तो उसकी प्रगति की रिपोर्ट भी समय समय पर सांसद /विधायक को दी जानी चाहिये। जब तक सांसद/विधायक विकास निधि के खर्च के लिये यह अनिवार्यताएं प्रशासन के लिये नही रखी जायेंगी तब तक प्रशासन का सहयोग सुनिश्चित करना कठिन हो जायेगा। जब यह सच अनिवार्य और समयबद्ध कर दिया जायेगा तभी प्रशासन के स्तर पर की जाने वाली हर कोताही को विशेषाधिकार के हनन के दायरे में लाया जा सकेगा आज सांसद के लिये आर्दश ग्राम येाजना भी शुरू की गयी है लेकिन इस योजना का कार्यन्वयन भी इसी प्रशासन के माध्यम से किया जाना है क्योंकि सांसद के पास इसके लिये अलग से तो कोई व्यवस्था है नही। जन सुविधा के नाम पर किये जाने वाले यह सारे प्रयास प्रशासन की प्रतिबद्धता के बिना पूरे करना कठिन है इसके लिये प्रावधानों को नजर अन्दाज करके आयी हुई विकास निधि को लैप्स होनेे देना तो निश्चित तौर पर संबधित प्रशासन विशेषाधिकार के हनन का दोषी माना जायेगा। क्योंकि विकास पाना जनता का विशेषाधिकार और विकास निधि के माध्यम से करवाना सांसद/ विधायक का विशेषाधिकार है। इस संद्धर्भ में श्रीमति मीनाक्षी लेखी की चिन्ता और चिन्तन को हमारा पूरा समर्थन है।