आज कहां खड़ी वीरभद्र सरकार

Created on Tuesday, 03 January 2017 11:21
Written by Shail Samachar

 शिमला/बलदेव शर्मा

 वीरभद्र सरकार के सत्ता में चार वर्ष पूरे हो गये हैं। अगला वर्ष चुनावों का वर्ष है। इस समय प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दो ही प्रमुख राजनीतिक दल हैं जिसमें अब तक सत्ता की भागीदारी रहती है। प्रदेश में इन दोनों का राजनीतिक विकल्प अब तक नही बना पाया है। इसलिये आज भी प्रदेश की राजनीति का आकलन इन्ही के गिर्द केन्द्रित रहेगा यह एक व्यवहारिक सच्चाई है जिसे स्वीकार करना ही होगा। इस परिदृश्य में बीते चार वर्षों का राजनीतिक आकलन एक तरह से इन्ही का राजनीतिक आकलन रहेगा। वीरभद्र और कांग्रेस का दावा है कि प्रदेश में सातवीं बार वीरभद्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनेगी। दूसरी ओर भाजपा का संकल्प है
कि देश को केन्द्र से लेकर राज्यों तक कांग्रेस से मुक्त करना है। केन्द्र में पहली बार भाजपा के नेतृत्व में ऐसी सरकार बनी है जिसमें भाजपा ने गठबन्धन का धर्म निभाते हुए अपने सहयोगी दलों को सरकार में भागीदार बनाया है। अन्यथा भाजपा का अपना ही इतना प्रचण्ड बहुमत है जिसमें उसे किसी अन्य की संख्याबल के लिये आवश्यकता नहीं है। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 1977 के बाद दूसरी बार ऐसी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है।
इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि 1977 से लेकर अब तक इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याओं के परिदृश्य में हुए चुनावों को छोड़कर शेष सारे चुनावों में भ्रष्टाचार ही केन्द्रित मुद्दा रहा है। हिमाचल में भी पिछले तीन दशकों से हर चुनाव में भ्रष्टाचार ही प्रमुख मुद्दा रहा है और यह भ्रष्टाचार के मुद्दा बनने का ही परिणाम है कि कोई भी दल लगातार दो बार सत्ता में नही रह पाया हैं। ऐसे में इस बार कांग्रेस का दावा पूरा होता है या भाजपा का संकल्प फली भूत होता है यह देखना रोचक होगा। लेकिन इसके लिये बीते चार वर्षो में सरकार की कारगुजारीयां और भाजपा की भूमिका दोनों को ही देखना आवश्यक होगा। सरकार के नाते वीरभद्र के नेतृत्व में अन्य मन्त्रीयों और संगठन की भूमिका केवल नाम मात्र की ही रह जाती है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि वीरभद्र के आगे कांग्रेस हाईकमान भी हर बार बौना ही साबित हुई है। वीरभद्र हर बार आंखे दिखाकर सत्ता पर काबिज हुए है । इस बार तो वीरभद्र के बेटे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने भी अभी से ही बाप नक्शे कदम चलना शुरू कर दिया है। चुनावी टिकटों के आवंटन में हाईकमान की भूमिका को लेकर जिस तरह ब्यान वह देते रहे है उससे यह कार्यशैली स्पष्ट हो जाती है। इसलिये प्रदेश में चुनावी परिणाम जो भीे रहेंगे वह केवल वीरभद्र केन्द्रित ही होगें।
2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान यदि धूमल शासन के खिलाफ हिमाचल को बेचने के आरोप न लगते तो तय था कि धूमल पुनः सत्ता पर काबिज हो जाते। केवल इस एक आरोप के प्रचार ने भाजपा और धूमल को सत्ता से बाहर कर दिया था। जबकि इस बहुप्रचारित आरोप की दिशा में वीरभद्र सरकार एक भी मामला सामने नही ला पायी है। बल्कि वीरभद्र सरकार ने जो भी मामले धूमल शासन को लेकर उठाये हैं वह सारे एचपीसीए के गिर्द ही केन्द्रित हैं और उनमें भी किसी मामले में अभी तक सफलता नहीं मिली है। एचपीसीए से हटकर ए एन शर्मा का मामला बनाया गया था और उसमें सरकार की भारी फजीहत हुई है। इसी तरह धूमल की संपत्तियों को लेकर जो भी दावे वीरभद्र करते रहे हैं वह सब अन्त में केवल राजनीतिक ब्यान मात्रा ही होकर रह गये हैं। ऐसे में आज भाजपा या धूमल के खिलाफ चुनावों में उछालने लायक एक भी मुद्दा वीरभद्र या कांग्रेस के पास नही है।
दूसरी ओर आज सरकार के चार वर्ष पूरे होनेे के बाद सरकार के खिलाफ भाजपा का एक ऐसा आरोप पत्र खड़ा हो गया जिसमें वीरभद्र और उनका करीब पूरा मन्त्रीमण्डल गंभीर आरोपों के साये में आ गया है। इस आरोप पत्र को लेकर कांग्रेस के नेता चाहेे कोई भी प्रतिक्रिया देते रहें लेकिन इसकी छाया संबधित प्रशासन पर साफ देखी जा सकती है। बल्कि आज सीबीआई और ईडी में जो मामले चल रहे हैं उनको लेकर वीरभद्र जिस ढंग से जेटली, धूमल और अनुराग को कोसते आये हैं उससे यह झलकता है कि वीरभद्र को राजनीतिक तौर पर केवल धूमल से ही खतरा है। अब तो आयकर के अपील ट्रिब्यूनल और उसके बाद हिमाचल उच्च न्यायालय के फैसलों ने सीबीआई और ईडी के आधार को और पुख्ता कर दिया है। ऐसे में यह फैसले भाजपा के हाथ में एक ऐसा हथियार बन जायेंगे जिस की काट से वीरभद्र और कांग्रेस को बचना आसान नहीं होगा।