किन मुद्दों पर लड़ा जायेगा यह चुनाव

Created on Monday, 25 September 2017 12:42
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के चुनाव नवम्बर में होने तय हैं। इस चुनाव में भी मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के बीच ही रहेगा यह भी तय है। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस को पंजाब के अतिरिक्त कोई सफलता नही मिली है। इसी सफलता का परिणाम है कि आज राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री ओर लोकसभा अध्यक्ष तक देश के चारों शीर्ष पदों पर सत्तारूढ़ भाजपा का कब्जा है। भाजपा को यह सफलता क्यों और कैसे मिली है। इस पर यहां चर्चा का कोई औचित्य नही है। लेकिन यहां यह महत्वपूर्ण है कि इस सफलता से देश को क्या है। किसी भी सरकार की कसौटी उसकी आर्थिक और सामाजिक नीतियां होती है और इन्ही नीतियों की समीक्षा किसी भी चुनाव का केन्द्रिय मुद्दा होना चाहिये। इस दृष्टि से आर्थिक नीति पटल पर नोटबंदी मोदी सरकार का एक प्रमुख फैसला रहा है। यह फैसला लेने के जो भी आधार रहे हैं और इस फैसले से जो भी उपलब्धियां अपेक्षित थी वह सब आधारहीन साबित हुई है। क्योंकि जब पुराने 99% नोट सरकार के पास रिर्जब बैंक में वापिस पहुंच गये हैं और इन्हें नये नोटों से बदलना पड़ा है तो इसमें सरकार के अतिरिक्त और किसी का भी नुकसान नहीं हुआ है। सरकार ने पहले पुराने नोट छापने और उन्हे उपभोक्ता तक पहुंचाने में निवेश किया और अब नये नोटों के लिये वही सब कुछ करना पड़ा। इस फैसले से कालेधन को लेकर भी जो धारणा-प्रचार देश में पहले चल रही थी वह भी पूरी तरह सही साबित नही हुई है। इस तरह जब यह मूल फैसला ही असफल हो गया है तो इसके बाद फैसलों के भी वांच्छित परिणाम मिलना संभव नही है और यही सब कुछ हर संपति को आधार से जो जोड़ने जी एस टी लागू करने हर काम डिजिटल प्रणाली से करने आदि के फैसलो से हुआ है। इसी सबका परिणाम है पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ना और उससे हर चीज का मंहगा होना। सरकार के इन फैसलों से जनता को असुविधा हुई है रोष भी पनप रहा है क्योंकि इन सब फैसलो का लाभार्थी नीजिक्षेत्र के कुछ अंबानी-अदानी जैसे बड़े उद्योग घराने ही हुए है।
मोदी सरकार देश के युवाओं को मेक-इन-इण्डिया का एक सूत्र दिया है लेकिन इस सूत्र की व्यवहारिकता आज पूरी तरह सवालों मंे आ खड़ी हुई है। क्योकि सरकार के इस संद्धर्भ में लिये गये फैसलो की हकीकत इसके एकदम उल्ट है। बुलेट ट्रैन के फैसले को कार्यान्वित करेगा जापान। यह कहा गया है कि इस पर होने वाला करीब 1.50 लाख करोड़ का निवेश मामूली ब्याज पर जापान भारत को देगा और इसे 50 वर्षो में जापानी मुद्रा में वापिस किया जायेगाा। उस समय रूपये की कीमत जापानी मुद्रा के मुकाबले में क्या रहेगी? क्या उस समय यही एक लाख करोड़ पचास लाख करोड़ नही बन जायेगा। क्योंकि जो ऋण भारतीय मुद्रा में लिया जाता है और उसे जब ऋण देने वाले देश की मुद्रा में वापिस किया जाता है तब सारा आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिये ऐसे बड़े फैसले वर्तमान की व्यवहारिकता को देखकर लिये जाने चाहिये। आज सरदार पटेल की मूर्ति हम चीन से बनवा रहे हैं। स्मार्ट सिटी के लिये स्वीडन और मेक-इन-इण्डिया का ‘‘लोगो’’ तक तो हम खुद न बना कर स्वीटज़रलैण्ड से बनवा रहे हैं। प्रधानमन्त्री की अपनी बुलेट प्रुफ कार ही जर्मनी की बनी हुई है। ऐसे बहुत सारे फैसले ऐसे है जहां सरकार स्वयं अपनी ही मेक-इन-इण्डिया की धारणा के खिलाफ काम कर रही है। क्योंकि अभी देश इस तरह के फैसलों के लिये पूरी तरह तैयार नही है लेकिन सरकार का पूरा जोर इन फैसलों को सही प्रचारित-प्रसारित करने का एक तरह से अभियान छेड़ा गया है। जबकि आर्थिक फैसलों की कसौटी मंहगाई और बेरोजगारी का कम होना ही होता है। माना जा सकता है कि बेरोजगारी कम होने में थोड़ा समय लग सकता है लेकिन मंहगाई तो तुरन्त प्रभाव से रूकनी चाहिये जो लगातार बढ़ती जा रही है।
इसलिये आज जब जनता के पास फिर से सरकार चुनने का अवसर है तो उसे उसके सामने आने वाले  उम्मीदवारों  से इन सवालों पर खुलकर जवाब मांगना चाहिये। जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि कैसे उसका प्रतिनिधि जनता पर बिना कोई नया टैक्स लगाये और सरकार पर कर्ज का बोझ डाले बिना कैसे मंहगाई और बेरोजगारी की समस्याओं को हल करेगा। क्योंकि आज प्रदेश पूरी तरह कर्ज के जाल में फंस चुका है। एक लम्बे अरसे से कोई बड़ा उद्योग प्रदेश में नही आया है। जिस प्रदेश को एक विद्युत राज्य के रूप में प्रचारित-प्रसारित किया गया था आज इन्ही विद्युत परियोजनाओं के कारण प्रदेश का आर्थिक सन्तुलन बुरी तरह बिगड़ गया है। क्योंकि प्रदेश में विद्युत के उत्पादन में कार्यरत नीजिक्षेत्र से सरकार को मंहगी दरों पर अनुबन्धों के कारण बिजली खरीदनी पड़ रही है लेकिन मुनाफा तो दूर उन्ही दरों पर आगे बिक नही रही है। इसी के कारण सरकार-विद्युत बोर्ड के अपने स्वामित्व वाली परियोजनाओं में हर वर्ष हजा़रों- हज़ार घन्टो का शट डाऊन चल कर इनमें उत्पादन बन्द कर रखा गया है। यह स्थिति पिछले एक दशक से अधिक समय से चली आ रही है लेकिन सरकारी तन्त्र इस संद्धर्भ में आयी शिकायतों के वाबजूद इस ओर कोई कारवाई नही कर रहा है। आज भाजपा जिस तरह से चुनावी मुद्दे लेकर आ रही है उनमें भ्रष्टाचार सबसे बड़े मुद्दे के रूप में उछाला गया है। भ्रष्टाचार सबसे बड़ा रोग है और इस पर अंकुश लगाना चाहिये इसमे कोई दो राय नही हो सकती। लेकिन यहां भाजपा को यह बताना होगा कि उसने अपने पहले के दोनो ही शासनकालों में भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या किया? क्योंकि पिछला रिकार्ड यह प्रमाणित करता है कि भाजपा ने अपने ही सौंपे आरोप पत्रों पर कोई कारवाई नही की है इसके दस्तावेजी प्रणाम आने वाले दिनों मे हम पाठकों के सामने रखेंगे। इसलिये आज प्रदेश की जनता से यह अपेक्षा है कि वह इस चुनाव में पार्टीयों के ऐजैण्डे को प्रमुखता और गंभीरता देने की बजाये उन आर्थिक सवालों पर चिन्तन करें जो हमने पाठकों के सामने रखें है और फिर अपने समर्थन का फैसला ले।