मोदी सरकार के आर्थिक फैसलों को लेकर छिड़ी बहस का जवाब देते हुए प्रधानमन्त्री ने इन फैसलो के आलोचकों पर नकारात्मकता फैलाने को आरोप लगाया है। लेकिन इसी के साथ यह भी स्वीकारा है कि आर्थिक विकास दर में कमी आयी है। प्रधानमन्त्री ने यह स्वीकारते हुए यह भी दावा किया है कि जल्द ही विकास दर में तेजी आयेगी। इसके लिये उन्होने उनकी सरकार और स्वयं उन पर भरोसा रखने को कहा है। मोदी जी और उनकी सरकार पर 2019 के चुनावों तक आम आदमी के पास उन पर भरोसा रखने के अलावा और कोई विकल्प भी नही है। इस हकीकत को मोदी और आम आदमी दोनो ही समझते हैं। उत्तर प्रदेश पंजाब और उत्तराखण्ड राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों क बाद देश पर जीएसटी का फैसला आया है। इस फैसले से देश का हर व्यक्ति/परिवार प्रत्यक्षतः उसी तरह प्रभावित हुआ है जिस तरह आपातकाल के दौरान नसबंदी से लोग प्रभावित हुए थे। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि जीएसटी का प्रभाव नसबंदी से कई गुणा बड़ा है और इसका परिणाम भी उससे बड़ा ही होगा। इन राज्यों के चुनावों से पहले जो नोटबंदी का फैसला आया था उसकी पूरी समझ तो शायद अब तक भी नही आई है। क्योंकि आरबीआई को ही नोटबंदी से जुड़े आंकड़ो को देश के सामने रखने में करीब एक वर्ष का समय लग गया है। यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी जैसे पूर्व मन्त्री भी नोटबंदी के प्रभावों और परिणामों पर अब मुखर हो पाये हैं।
लेकिन जीएसटी के बाद पैट्रोल, डीजल और रसोई गैस सिलेण्डर की कीमतों के बढ़ने से हर आदमी इस पर अब रोष में है। ऊपर से केन्द्र के एक मन्त्री का यह ब्यान आना कि मोटर साईकिल और कार चलाने वाला इससे मर नही जायेगा यह दर्शाता है कि मोदी की सरकार और उसके मन्त्री कितने संवेदनशील है क्योंकि इस ब्यान की प्रधानमन्त्री या पार्टी अध्यक्ष अमितशाह किसी एक ने भी इसकी निन्दा नही की है। कड़वा सच यह है कि मोदी सरकार आने के बाद खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ौत्तरी ही देखने को मिली है। ऐसे में अब यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण यह कीमतें बढ़ी है। क्योंकि पिछले चार वर्षों में ऐसी कोई प्राकृतिक आपदा देश पर नही आयी है जिसके कारण सारे संसाधन नष्ट हो गये हो। उत्पादन बन्द हो गया, सरकार को अपने कोष के दरवाजे आम आदमी को राहत देने के लिये खोलने पड़े हों। इसलिये जब वित्त मन्त्री अरूण जेटली ने यह कहा कि जब सरकारी कोष में पर्याप्त राजस्व आ जायेगा तो उसके बाद जीएसटी की दरों में कमी दी जायेगी। आज केन्द्र राज्यों को पैट्रोल, डीजल पर अपना वैट कम करने के लिये कह रहा है। यदि राज्य सरकारें ऐसा नही करेगी तो फिर इस मंहगाई के लिये राज्यों को जिम्मेदार ठहरा दिया जायेगा। जबकि पैट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाकर इसका हल निकाला जा सकता था। लेकिन केन्द्र ऐसा नही कर रहा है। न ही वित्त मन्त्री ने देश को यह बताया है कि सरकार को कितना राजस्व चाहिए और राजस्व की कमी के लिये कौन जिम्मेदार है क्योंकि सरकारी बैंकोे के कर्मचारियों और अधिकारियों की यूनियनों ने जब केन्द्र के बैंक सुधारों को जन विरोधी करार दिया तब उन्होने यह सामने लाया कि जब इस सरकार नेे सत्ता संभाली थी तब बैंकों का एनपीए 60 हजार करोड़ था जो अब बढ़ कर 6 लाख करोड़ पहुंच गया है
स्वभाविक है कि सरकारी बैंकों के इस बढ़तेे एनपीए के कारण नये निवेश के लिये पर्याप्त धन नही है। फिर नोटबंदी से जो लाभ अपेक्षित थे वह मिलने की बजाये उससे केवल नुकसान ही हुआ है। आरबीआई ने देश को यह तो बता दिया कि उसके पास 99% पुराने नोट वापिस आ गये हैं। लेकिन यह अभी तक नही बताया जा रहा है कि कालाधन कितना पकड़ा गया और ऐसे धन के कितने धारकों का कितना नुकसान हुआ है। बल्कि आज अरूण शौरी जैसे पूर्व मन्त्री ने नोटबंदी को सबसे बड़ा मनीलाॅंडरिंग स्कैम करार दिया है। क्योंकि नोटबंदी से पहले तक स्वामी रामदेव जैसे लोग जो लाखों करोड़ के कालेधन के आंकड़े आयेे दिन देश को परोस रहे थेे वह सब लोग नोटबंदी के बाद इस विषय पर एकदम मौन हो गये है। बल्कि नोटबंदी के माध्यम से आम आदमी की बचत का सारा पैसा बैंको के पास आ गया है। बैंको के पास इस तरह से ज्यादा पैसा आ जाने से बचत पर ब्याज दरों में कटौती कर दी गयी। ऐसे में नोटबंदी से लेकर जनधन खाता योजना और जीएसटी तक के सारे फैसलों से मंहगाई में तो कोई कमी नही आई है। क्योंकि आम आदमी के आंकलन का सबसे सुलभ पैमाना तो मंहगाई ही है। हो सकता है कि इस मंहगाई से सरकारी और नीजि क्षेत्र का कर्मचारी तथा छोटा-बड़ा उद्योगपति, शहर से लेकर गांव तक फैला दुकानदार इतना प्रभावित न हो जितना की आम आदमी। लेकिन इन लोगों का कुल प्रतिशत आय के मुकाबले में अभी तक 25% भी नही है। आज भी देश का 75% आदमी इस मंहगाई और बेरोजगारी से बुरी तरह त्रस्त है। इसलिये आज यह 75% आम आदमी सरकार के आर्थिक फैसलों के गुण दोष परखने लग पड़ा है। वह उसके अनदेखे भविष्य की आस में अपनेे वर्तमान को बली चढ़ाने के लिये तैयार नही है। उसे बुलेट ट्रेन के फैसले से प्रलोभित कर पाना संभव नही होगा। उसे अपने खेत की उपज का वाजिब दाम और उसे बाज़ार तक लेकर जाने का साधन चाहिये जिसकी उसे दूर- दूर तक आस नही दिख रही है। इसलिये मोदी सरकार के आर्थिक फैसलों पर उठने वाले सवालों को नकारात्मकता का आरोप लगाकर दबाना संभव नही होगा।