शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री नामित होने के बाद अपनी पहली पत्रकार वार्ता में जयराम ठाकुर ने प्रदेश की वित्तिय स्थिति को लेकर पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में यह कहा था कि उनकी सरकार वीरभद्र सरकार के अन्तिम तीन माह में लिये गये फैसलों पर पुनर्विचार करेगी लेकिन शपथ ग्रहण के बाद हुई मन्त्री परिषद् की पहली ही बैठक में यह अवधि तीन माह से बढ़कर छः माह कर दी गयी है। अब पिछले माह में लिये गये फैसलों पर फिर से विचार किया जायेगा। स्वभाविक है कि जब औपचारिक तौर पर सरकार की जिम्मेदारी संभाली गयी तब जो जो फीडबैक उन्हे प्रशासन की ओर से मिला होगा उस पर विचार करने के बाद ही छः माह के भीतर लिये गये फैसलों पर फिर से विचार की बात आयी होगी। प्रदेश की वित्तिय स्थिति बड़ी गंभीर है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो माह में कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिये भी कर्ज लेना पड़ा है। मैडिकल काॅलेज मण्डी में तैनात नर्सों को समय पर अपने वेत्तन का भुगतान करवाने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय से आदेश करवाने पड़े है। सामाजिक सुरक्षा पैंन्शन का भुगतान भी समय पर करने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय को निर्देश जारी करने पड़े हैं।
भारत सरकार के वित्त विभाग ने 27 मार्च 2017 को प्रदेश के वित्त सचिव के नाम भेजे पत्र में स्पष्ट कहा था कि राज्य सरकार वर्ष 2016-17 में केवल 3540 करोड़ का ही ट्टण ले सकती है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक 31 मार्च 2015 को कुल कर्जभार 35151.50 करोड़ था और उसके बाद 2015-16, 2016-17 और 2017-2018 में बजट आंकड़ो के मुताबिक यह कर्ज पन्द्रह हजार करोड़ के करीब लिया गया और 31 मार्च 2018 को निश्चित रूप से यह आंकड़ा 50 हजार करोड़ से ऊपर हो जायेगा। जबकि दूसरी ओर से प्रतिवर्ष सरकार की टैक्स और गैर टैक्स आय में कमी होती जा रही है। वर्ष 2012-13 में प्रदेश की गैर कर आय कुल राजस्व का 46.28% थी जो कि 2016-17 में घटकर 41.95% रह गयी है। इसी तरह से 2012-13 में करों से आये कुल राजस्व का 5.68% थी जो कि 2016- 17 में घटकर 4.59% रह गयी है। यह सारे आंकड़े विधानसभा मेें प्रस्तुत बजट दस्तावेजों में दर्ज है। शायद इन बजट दस्तावेजों को हमारी माननीय इतनी गंभीरता से ना तो पढ़ते है और न ही समझने का प्रयास करते है। लेकिन अब जब सरकार चलने की जिम्मेदारी आयी है तब इन दस्तावेजों और उनमें दर्ज आंकड़ो का पढ़ना और समझना आवश्यक हो जायेगा। क्योंकि इनको विस्तार और गंभीरता से समझे बिना यह पता लगाना कठिन होगा कि संकट पूर्ण होती जा रही वित्तिय स्थिति को नियन्त्रण में कैसे किया जाये।
इस लेख में मैं इन आंकड़ो और दस्तावेजो का संद्धर्भ इसलिये उठा रहा हूं कि यह सरकार पिछली सरकार के अन्तिम छः माह में लिये गये फैसलों पर फिर से विचार करने जा रही है। बहुत संभव है कि इस पुनर्विचार में बहुत से फैसलों को रद्द कर दिया जाये। लेकिन क्या महज रद्द कर देने से ही यह प्रवृति रूक जायेगी? यदि ऐसा होता तो शायद आज प्रदेश कर्ज के चक्रव्यूह में न दबा होता। आज जो स्थिति बन गयी है उससे केवल सरकार के फैसले ही जिम्मेदार हैं क्योंकि गलत फैसलें लेने के लिये न तो कभी संबधित राजनीतिक नेतृत्व को और न ही प्रशासनिक तन्त्र को जिम्मेदार ठहराया गया। मेरा स्पष्ट मानना है कि जब तक किसी को सीधे दोषी नही ठहराया जायेगा तब तक यह स्थिति नही सुधरेगी। आज जब पिछलेे फैसलों पर फिर से विचार किया जायेगा तब इसके लिये किसी को देाषी ठहराने की भी बात हो सकती है। इसके लिये यह समझना आवश्यक है कि जब विकास और सुविधा देने के नाम पर कोई फैसला लिया जाता है तब सबसे पहले उसकी प्रासंगिकता की प्रशासनिक रिपोर्ट तैयार की जाती है फिर उसे वित्त विभाग की अनुमति के लिये भेजा जाता है। आज जब कोई फैसला रद्द किया जायेगा। तब उसके लिये यही दो आधार बनाये जायेंगे। जहां यह दोनों आधार सही रहे होंगे वहां उन फैसलों का बदलना केवल राजनीतिक दुर्भावना मानी जायेगी। लेकिन जहां इन आधारों को नज़र अन्दाज करके कोई फैसला लिया गया होगा वहां उसकी किसी पर जिम्मेदारी डालना भी अपेक्षित रहेगा। लेकिन यदि ऐसी जिम्मेदारी नही डाली जाती है तो यह सारी कवायद ही बेमानी होकर रह जायेगी। यह सरकार के लिये एक बहुत बड़ी परीक्षा भी होगी।
अभी सरकार को अवैध निर्माणों और वनभूमि पर हुए अतिक्रमणों के मामले में आये उच्च न्यायालय और एनजीटी के फैसलों पर अमल करना एक बड़ी चुनौती होगा। इसी चुनौती के साथ सरकार को सांसदों /विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के निपटारों के लिये पहली मार्च से विशेष अदालतें गठित करने के फैसले पर अमल करना होगा। इस कड़ी में भाजपा के राजीव बिन्दल और कांग्रेस की आशा कुमारी के मामले सरकार के लिये पहला टैस्ट साबित होंगे। क्योंकि राजीव बिन्दल का नाम तो अगले विधानसभा अध्यक्ष के लिये भी प्रस्तावित है। ऐसे में यह बड़ा सवाल खड़ा होगा जय राम ठाकुर के लिये। क्योंकि राजीव बिन्दल और वीरभद्र के मामले एक ही धरातल पर है ऐसे में जब भाजपा वीरभद्र से पद त्यागने की मांग करती आयी है तो क्या अब उसी आधार और भाषा में बिन्दल को विधानसभा अध्यक्ष बनाना राजनीतिक नैतिकता का सवाल नही बन जायेगा। इन संद्धर्भो में खरा उत्तरना जय राम सरकार के लिये एक कड़ी परीक्षा होगा।