सरकार का सत्ता में एक माह

Created on Monday, 29 January 2018 11:45
Written by Shail Samachar

जयराम सरकार को सत्ता में आये एक माह हो गया है और इसी माह में प्रदेश का पूर्ण राज्यत्व दिवस समारोह भी संपन्न हुआ है। पूर्ण राज्यत्व के दिवस पर मुख्यमन्त्री ने अपनी सरकार के कुछ संकल्प दोहराये हैं इन संकल्पों पर सरकार कितना खरा उत्तर पाती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इसी अवसर पर सरकार ने पिछली वीरभद्र सरकार पर वित्तिय कुप्रबन्धन का गंभीर आरोप भी लगाया है। इसी कुप्रबन्धन के परिणाम स्वरूप वर्तमान सरकार को 46500 करोड़ का कर्ज भी विरासत में मिला है यह आक्षेप भी मुख्यमन्त्री ने अपने संबोधन में लगाया है। इस कठिन वित्तिय स्थिति से बाहर निकलने के लिये प्रधानमन्त्री मोदी से प्रदेश को विशेष आर्थिक पैकेज देने की भी मांग की है। यह जानकारी भी मुख्यमन्त्री ने अपने राज्यत्व दिवस के संबोधन पर प्रदेश की जनता को दी है। मुख्यमन्त्री की यह मांग भी कितनी पूरी हो पाती है यह भी आने वाले समय में ही पता चलेगा।
इसी परिदृश्य में यदि सरकार के एक माह के कार्यकाल का आंकलन किया जाये तो जो महत्वपूर्ण बिन्दु उभर कर सामने आते हैं उनपर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। इसमें सबसे पहला और सबसे प्रमुख बिन्दु वित्तिय स्थिति का ही आ जाता है। मुख्यमन्त्री ने स्वयं पिछली सरकार पर वित्तिय कुप्रबन्धन का आरोप लगाया है। यह आरोप वेबुिनयादी भी नही है क्योंकि भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वारा तो मार्च 2016 में ही प्रदेश सरकार को एक कड़ा पत्र लिखकर यह बता दिया गया था कि राज्य सरकार की कर्ज लेने की अधिकतम सीमा क्या है और इसके उल्लंघन के परिणाम क्या हो सकते है। प्रदेश की वित्तिय स्थिति एफआरबीएम के तहत संचालित होती है और इसके अनुसार जीडीपी का कुल 3% ही कर्ज लिया जा सकता है। लेकिन राज्य सरकार जीडीपी का 42% कर्ज ले चुकी है और यह कर्ज सरकार की कुल राजस्व आय से 214% अधिक हो चुका है। यह खुलासा है सदन में रखी जा चुकी कैग रिपोर्ट का। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के वित्त प्रबन्धन पर कुप्रबन्धन का आरोप लगना जायज ही है। लेकिन सवाल उठता है कि इस कुप्रबन्धन के लिये आखिर जिम्मेदार कौन है? क्या इसकी जिम्मेदारी केवल राजनीतिक नेतृत्व पर ही डालना जायज होगा?
क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व को सही स्थिति से अवगत करवाना तो संबधित अधिकारियों की जिम्मेदारी है। क्या वित्त सचिव के परामर्श को नज़रअन्दाज किया जा सकता है शायद नहीं। कुप्रबन्धन के आरोप से क्या सचिव वित्त बन सकते हैं शायद नहीं। ऐसे में जब स्वयं मुख्यमन्त्री वित्त के कुप्रबन्धन का आरोप लगा रहे हैं और फिर उसी अधिकारी को विभाग की जिम्मेदारी दिये हुए हैं तो यह दोनो बातें अन्ततः विरोधी हो जाती है और इस अन्तः विरोध का अर्थ या तो यह है कि कुप्रबन्धन का आरोप ही सिरे से गलत है या फिर अधिकारियों पर उसी कुप्रबन्धन को जारी रखने का दबाव हो जाता है। आज जितना कर्जभार प्रदेश का है यदि उसको लेकर यह सवाल उठाया जाये कि आखिर इतना बड़ा कर्ज लेकर किया क्या गया है। क्या इस कर्ज से ऐसे कोई संसाधन खड़े किये गये हैं जिनसे प्रदेश के लिये एक स्थायी आय के साधन बन पाये हैं जिससे इस कर्जभार से मुक्त हुआ जा सकेगा तो शायद इसका उत्तर नही में होगा। क्योंकि मूलतः यह कर्जभार तब बढ़ता है जब वोट की राजनीति के चलते चुनाव घोषणा पत्रों में ऐसे लोकलुभावन अव्यवहारिक वायदे कर दिये जाते हैं जिन्हें पूरा करने के लिये कर्ज लेना ही एक मात्र उपाय रह जाता है।
आज जब मुख्यमन्त्री राज्यत्व दिवस के अवसर पर प्रदेश के नाम अपने पहले संबोधन वित्तिय कुप्रबन्धन को स्वीकार कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर इस कुप्रबन्धन को सुधारने के कदम भी उन्हें ही उठाने होंगे। इस कुप्रबन्धन के लिये किसी को तो जिम्मेदार ठहराना होगा। लेकिन अभी इस एक माह के समय में ऐसा कोई प्रयास मुख्यमन्त्री या उनकी सरकार की ओर से सामने नही आया है। सरकार ने पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को अपना कार्यदृष्टि पत्र करार दे दिया है। लेकिन इस घोषणा पत्र को अमली जामा पहनाने के लिये कितने वित्तिय संसाधनों की आवश्यकता होगी इसकी कोई जानकारी प्रदेश की जनता को नहीं दी गयी है जबकि यह बहुत आवश्यक है कि प्रदेश की जनता को इसकी यह भी जानकारी दी जाये कि इन चुनावी वायदों को पूरा करने के लिये प्रदेश की जनता पर परोक्ष/अपरोक्ष रूप से कोई कर्जभार नही डाला जायेगा। अभी एक माह के समय में जितने फैसलें लिये गये हैं उनसे वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकारों की कार्यशैली में कोई भिन्नता देखने को नही मिल रही है। प्रशासनिक स्तर पर यह सरकार अभी तक तबादलों के चक्रव्यूह से ही बाहर नही निकल पायी है। अवैध कटान और अवैध खनन के जो मामले सामने आये हैं उनसे ही कई गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। उद्योग विभाग ने खनन के तथ्यों को नकार दिया है जबकि मीडिया रिपोर्ट ने सबकुछ सामने दिखाया है। अवैध कटान का जो वीडियो सामने आया है उसमें वन विभाग का कर्मचारी बडे़ अधिकारियों पर सीधे अनदेखी का आरोप लगा रहा है लेकिन सरकार की ओर से कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक सामने नही आयी है। ऐसे में पहले एक माह के कार्यकलाप से यह सरकार अभी तक कोई बड़ा प्रभाव नही बना पायी है बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि यदि समय रहते सुधार न हुए तो आने वाले समय में कठिनाईयां बढ़ जायेंगी यह तय है।