शिमला/शैल। कसौली गोली कांड में घायल हुए गुलाब सिंह की भी मौत हो गयी है। मौत पर भी सरकार ने मृतक के परिवार को पांच लाख की सहायता राशी तथा मृतक के शेष बचे सेवाकाल तक परिवार को उसका पूरा वेतन देने की घोषणा की है। इससे पूर्व इसी गोली कांड में मौके पर ही दम तोड़ गयी टीपीसी की अधिकारी शैल बाला के परिवार को भी सरकार ने पांच लाख की सहायता राशी दी थी जो उस परिवार ने वापिस मुख्यमन्त्री राहत कोश में दे दी है। इस परिवार ने इस गोली कांड के दोषीयों को शीघ्र और कड़ी सजा़ दिये जाने की मांग की है। गोली चलाने वाले होटल मालिक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस गिरफ्तारी के बाद पुलिस कब इस मामले का चालान तैयार करके मुकद्दमा अदालत में डालती है और कब अदालत उस पर फैसला सुनाती है इसका पता तो आने वाले समय में लगेगा। लेकिन यह गोली कांड जो सवाल खड़े कर गया है उनका जवाब कौन और कब देगा? या यह जवाब कभी नहीं आयेंगे यह बड़ा सवाल इस समय हर जुबान की चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह गोली कांड सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना करवाने के जवाब में हुआ। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने इन अवैध निर्माणों को गिराने का फैसला दे रखा था और 15 दिन के भीतर इस पर अमल की रिपोर्ट तलब की थी। इन अवैध निर्माणों को गिराने का फैसला एनजीटी ने मूलतः दिया था। जिन लोगों ने एनजीटी का फैसला पढ़ा है वह आश्वस्तः थे कि इसमें सर्वोच्च न्यायालय से कोई राहत नही मिलेगी। लेकिन फिर भी इस फैसले की अपील की गयी और एनजीटी का फैसला ही बहाल रहा। एनजीटी ने न केवल अवैध निर्माणों को गिराने का ही आदेश दिया बल्कि उसने उन कुछ अधिकारियों को भी चिन्हित किया है जो इसके लिये जिम्मेदार रहे हैं। यही नही जो अधिकारी/ कर्मचारी सेवानिवृत भी हो चुके हैं उनको भी चिन्हित करके उनके खिलाफ भी कारवाई करने के आदेश दिये हैं। लेकिन इन आदेशों पर अभी तक कोई अमल नही हो पाया है क्योंकि शायद शीर्ष प्रशासन से लेकर शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को भी यह उम्मीद थी कि सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिल ही जायेगी। सरकार इसका कोई न कोई हल निकाल ही लेगी। शायद इस तरह के आश्वासन भी इन अवैध निर्माणों के दोषीयों को दिये गये थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अपील-दलील के सारे दरवाजे बन्द हो गये हैं। सरकार ने टीसीपी अधिनियम में भी जो संशोधन किया है वह एक तो अभी तक कानून नही बन पाया है और साथ ही यह सवाल खड़ा हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पहले आ गया है जिसे अब संशोधन से बदला नही जा सकेगा।
इस वस्तुस्थिति में यह और सवाल उछल रहा है कि सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ क्यों कारवाई नही कर पा रही है जिन्हें अदालत चिन्हित तक कर चुकी है। यह कारवाई मुख्य सविच को करनी है लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ भी नही किया गया है। जबकि कसौली गोली कांड में हुई हत्याओें का सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए स्पष्ट कहा है कि यह अवैध निर्माण एक दिन में खड़े नही हुए हंै। सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे प्रदेश भर की रिपोर्ट सरकार से तलब की है। क्योंकि एनजीटी के संज्ञान में 35000 अवैध निर्माण आये हुए है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी इन अवैध निर्माणों का कड़ा संज्ञान लेते हुए इनके बिजली, पानीे काटने के आदेश दिये थे। उच्च न्यायालय के इन आदेशों की पालना करते हुए सैंकड़ो के बिजली, पानी काटे थे। इनमंे परवाणु, कसौली, शिमला, सोलन, कुल्लू, मनाली, कसोल, पालमपुर, धर्मशाला, मकलोड़गंज को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी रिपोर्ट तलब की है। सोलन में 150 से अधिक को इस बारे में नोटिस गये थे। धर्मशाला में 128 के बिजली पानी कटे थे। कुल्लू -मनाली में यह आंकड़ा दो सौ से अधिक का रहा है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश के हर हिस्से में अवैध निर्माण हुए हैं और यह अवैध निर्माण संवद्ध प्रशासन के संज्ञान में रहे हैं।
मई 2014 में निर्माणों पर पहली बार रोक लगा दी गयी थी। एनजीटी ने स्पष्ट कहा था कि किसी भी निर्माण में 35 डिग्री से अधिक की कटिंग नही होगी और कोई भी निर्माण अढ़ाई मंजिल से अधिक का नही होगा। यह आदेश सरकारी और निजि सब निर्माणों पर एक बराबर लागू हैं लेकिन इसके वाबजूद आज भी पांच-पांच मंजिलों के निर्माण चालू हैं जिनमें 90 डिग्री तक कटिंग की गयी है। राजधानी शिमला में भी ऐसे निर्माण हो रहे हैं। जिन पर प्रशासन की नज़र नही जा रही है। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने तो कुल्लू-मनाली के होटलों की एक सूची भी तैयार की है। इस सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह अवैध निर्माण सरकार के संज्ञान में हैं लेकिन इन पर कोई कारवाई नही की जा रही है। सरकार उन अधिकारियों/ कर्मचारियों को क्यों चिन्हित नही कर रही है जिनके सामने यह अवैध निर्माण हुए है।
शिमला में हो रहे इस तरह के निर्माण कितने सुरक्षित होंगे