शिमला/शैल। जयराम सरकार को सत्ता में आये पांच महीने हो गये हैं। इस सरकार में मुख्यमन्त्री सहित कुल बारह मन्त्री हैं जिनमें से छः लोग पहली बार मन्त्री बने हैं और छः लोग पहले भी मन्त्री रह चुके हैं। मुख्यमन्त्री जयराम स्वयं पहले भी मन्त्री रह चुके हैं तथा बीस वर्षों से लगातार विधानसभा में रहे हैं। यह उनकी पांचवी टर्म है। इससे यह कहा जा सकता है कि इस सरकार और मुख्यमन्त्री को अनुभवहीन कहना ज्यादा सही नही होगा। फिर मन्त्रीयों के अतिरिक्त सरकार के पास मीडिया सलाहकार, राजनीतिक सलाहकार और मुख्यमंत्री के साथ दो ओएसडी हैं। यह सब लोग राजनीति से जुड़े लोग हैं। बल्कि राजनीतिक सलाहकार तो पेशे से वकील भी रह चुके हैं लेकिन जिस तरह का प्रशासनिक फेरबदल सामने आया है उसमें एफ सी अपील का काम चार अधिकारियों को दिया गया है। ऐसा प्रयोग सरकार में पहली बार हुआ है। कभी प्रशासन में एग्रीकल्चर प्रौडक्शन कमीशनर और वित्तायुक्त अपील मुख्य सचिव के बाद दूसरे सबसे बड़े अधिकारी होते थे। वित्तायुक्त अपील तो उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष होता है क्योंकि उसका फैसला अन्तिम होता है। उसकी अपील उच्च न्यायालय में संविधान की धारा 226 के तहत ही आती है अन्यथा नहीं। बल्कि अंग्रेज शासन के दौरान तो यह दोनों पद मुख्य सचिव से भी बड़े होते थे
आज प्रदेश में सबसे ज्यादा लिटिगेशन राजस्व के मामलों की है। हजारों की संख्या में मामले वर्षों से लंबित चल रहे हैं। लोगों को इन्साफ नही मिल रहा है। इन मामलों की सुनवाई की राजस्व में दो ही अदालतें हैं। पहली है डिविजनल कमीश्नर और उसकी अपील आती है एफसी अपील के पास। प्रदेश में मण्डलायुक्त केवल तीन ही हैं जो पूर्णकालिक यही काम करते हैं। अब अपील का काम चार लोगों में बांटकर सरकार ने जो अपनी ओर से राहत देने का प्रयास किया है उससे व्यवहारिक तौर पर लोगों को राहत की बजाये पेरशानी खड़ी हो गयी है क्योंकि चार लोगों में बारह जिले बांट दिये हैं लेकिन उसमें यह किया गया है कि जिसको मण्डी का काम दिया गया है उसी को कुल्लू का नही दिया गया है। ऐसा नही हुआ है कि जिसको हमीरपुर दिया है उसी को ऊना दिया गया हो। कांगड़ा, चम्बा एक को दिया गया हो क्योंकि पेशीयां तो सबको एक बार दी गयी हैं उसके मुताबिक जब आदमी पेशी भुगतने आता है तो वहां मौके पर पता चलता है कि उसका जिला तो किसी और के पास है। सरकार ने यह प्रयोग करने से पहले केसों की जिलावर लिस्टें ही नही बनाई है और न ही लोगों को यह सूचित किया गया है कि उनके जिले में कब कौन केस सुनने आयेगा। फिर जिन लोगों को अपील का काम दिया गया है उनको साथ ही और महकमें भी दिये गये हैं। जबकि यदि सरकार सही मायनों में लोगों को शीघ्र न्याय देना चाहती है तो उसे अपील का काम पूर्णकालिक देना चाहिये था भले ही चार की जगह तीन लोगों को मण्डल वार यह काम दिया जाता। आम आदमी में इससे जनता में सरकार की अनुभवहीनता का सन्देश गया है। इस प्रयोग से तो कोई भी अधिकारी एक वर्ष में दस केस नही निपटा पायेगा।
इसी तरह का संदेश फेरबदल से गया है क्योंकि यह इस अल्प समय में ही सरकार का दूसरा बड़ा प्रशासनिक फेरबदल सामने आया है। जो प्रशासनिक फेरबदल सामने आये हैं उनसे यह स्पष्ट है कि इसमें लगभग सभी अधिकारी प्रभावित हुए हैं। निचले स्तर पर अभी फेरबदल होना बाकि है। इस फेरबदल में कई अधिकारियों को इतना काम दे दिया गया है जिसका निपटाया जाना उनसे संभव ही नही होगा। इतने अधिक काम में कहीं न कहीं ऐसी चूक हो जाना संभव है जो पूरी सरकार पर भारी पड़ सकती है। दूसरी ओर से कई अधिकारियों को लगभग खाली बिठा दिया गया है जिनके पास दिन में दस फाईलें नही आयेंगी। इस तरह के फेरबदल से फिर सरकार को लेकर कोई सकारात्मक संदेश नही गया है। सरकार के कई नीतिगत ऐसे फैसले हैं जिनमें व्यवहारिक विसंगतियां हैं जिनका प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के वीरभद्र शासन पर जो रिटायरड और टायरड का आरोप लगाया जाता था आज अभी चार माह में ही इस सरकार पर भी वही आरोप लगना शुरू हो गया है। अवैध निर्माणों और अवैध कब्जों के आरोप पर सर्वोच्च न्यायालय से लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय तक सभी जगह सरकार से उन अधिकारियों की सूची मांगी गयी है जो इस सबके लिये जिम्मेदार रहे हैं। जिनको न्यायालय चिन्हित करके उन पर कारवाई के निर्देश दे चुका है उनके खिलाफ अभी तक कोई कारवाई नही हो पायी है। इससे भी यही संदेश जा रहा है कि मुख्यमन्त्री और सरकार ही उनको संरक्षण दे रहे हैं।
इसमें मुख्य सचिव पर भी यह सवाल उठ रहा है कि इन्होनें तो स्वयं वीरभद्र के शासनकाल में अनदेखी और असन्तुलन का दंश झेला है। इन्साफ के लिये कैट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। संजीव चतुर्वेदी के मामले में मीडिया में बहुत कुछ सामने आ चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे मामले का जिस जरह से संज्ञान लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय को एक तरह से निर्देशित किया है उससे पूरे प्रकरण की गंभीरता और बढ़ गयी है। इस तरह की स्थितियों का जिस मुख्य सचिव ने सामना किया हो उसके समय में भी यदि प्रशासनिक असन्तुलन और विसंगति सामने आयेगी तो इसका संदेश फिर सरकार को लेकर नकारात्मक ही जायेगा। इन बहुत सारे मामलों पर मुख्यमन्त्री और सरकार को समय रहते विचार करना होगा। आज चार माह में ही यह चर्चा चल निकलना ही सरकार का सन्देश जनता में सकारात्मक नही जा रहा है यह सलाहकारों और शुभचिन्तकों के लिये बड़ा सवाल बनने जा रहा है। क्योंकि इतने अल्प समय में इस तरह के फेरबदलों से प्रशासनिक पकड़ बनने की धारणा ही आधारहीन है। क्योंकि हर अधिकारी को जनता के पैसे से भारी पगार मिलती है और उसके अनुरूप व उनसे बराबर का काम लेना सरकार और मुख्यमन्त्री की वैधानिक जिम्मेदारी है।