शिमला/शैल। क्या कर्ज लेने वाले की संपत्ति को अटैच करने के बावजूद उसकी नीलामी से पहले कर्जदार की गारंटी देने वाले की संपत्ति को नीलाम किया जाना चाहिये? यह सवाल राज्य सहकारी बैंक की चम्बा शाखा में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बैंक से एक व्यक्ति प्रदीप, सुपुत्र प्यारे लाल ने एससीएसटी कारपोरेशन के माध्य से वर्ष में का ट्टण लिया। इस ऋण के लिये उसकी गारंटी भी उसके ससुर ने ही दी। लेकिन ससुर उत्तम चन्द ने इसकी जानकारी अपने परिवार तक को नही दी। दुर्भाग्यवश ऋण लेकर जो ट्रक टाटा 709 खरीदा था उसका छः माह बाद ऐक्सीडैण्ट हो गया और इस दुर्घटना में ट्रक का पूरा नुकसान हो गया। इस नुकसान के कारण कर्ज की किश्तों की अदायगी नही हो पायी। दुर्घटना के बाद इन्शोयरैन्स से क्लेम मिलने में भी कुछ समय लग गया। बैंक ने ऋण वसूली के लिये कर्जदार और गांरटी देने वाले दोनो के खिलाफ कारवाई शुरू की। यह कारवाई शुरू होने पर कर्जदार ने अदालत से लिखित में आग्रह किया कि जब तक क्लेम नही मिल जाता है इस कारवाई को रोक दिया जाये। यह भी आग्रह किया कि कर्ज वसूली के लिये उसकी गारंटी देने वाले के खिलाफ कारवाई न की जाये क्योंकि उसके अपने पास कर्ज चुकता करने के लिये पर्याप्त संपत्ति है।
इस पर कुछ समय के लिये वसूली की कारवाई स्थगित कर दी गयी। फिर इन्श्योरैन्स से 3.50 लाख क्लेम भी मिल गया जो सीधा बैंक को अदा कर दिया गया लेकिन इससे पूरा कर्ज चुकता नही हो पाया। संयोगवश इसके बाद गारंटी देने वाले की मौत हो गयी। उसकी मौत के बाद उसकी संपत्ति उसके बच्चों के नाम आ गयी। लेकिन तब तक भी परिवार को यह जानकारी नही हो पायी कि इस संपत्ति की गारंटी देकर प्रदीप कुमार ने बैंक से ऋण लिया है और उसकी अदायगी नही हुई है। यह जानकारी इसलिये बाहर नही आ पायी क्योंकि ऋण लेने वाला चम्बा की जिला अदालत में पैटीशन राईटर है और अपने प्रभाव के कारण किसी को भी यह जानकारी नही होने दी। क्योकि गारंटी देने वाला भी पढ़ा लिखा नही था केवल उर्दु में दस्तखत करने जानता था। अब जब बच्चों की संपत्ति की इस कर्ज गांरटी के कारण नीलामी की नौबत आ गयी तब परिवार को पूरे मामले का पता चला। परिवार ने अपने नाबालिग बच्चों के माध्यम से संपत्ति की नीलामी पर रोक लगवायी है। इस रोक के बाद कर्जदार की संपत्ति के बारे में जानकारी हासिल करके उसे बैंक और अदालत के संज्ञान में लायी है। इस संज्ञान के बाद कर्जदार की संपत्ति भी अटैच हो गयी है। यह संपति चम्बा शहर मे ही स्थित है और इसको नीलाम करके सारा ऋण चुकता हो जाता है लेकिन यह संपत्ति 16.2.2010 को अटैच हो गयी है।
लेकिन यह हो जाने के बावजूद भी बैंक ऋण धारक की संपत्ति को नीलाम करवाने के लिये आवश्यक कदम उठाने की बजाये गारंटी रखी हुई संपत्ति को ही नीलाम करवाने के कदम उठा रहा है। बैंक की इस बेइन्साफी के बारे में बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष हर्ष महाजन से भी इन लोगों ने लिखित में शिकायत की थी जिस पर आश्वासन के अतिरिक्त और कुछ हासिल नही हुआ है। एससीएसटी कारपोरेशन से भी इस बारे शिकायत की गयी लेकिन वहां भी कोई कारवाई नही हुई। बैंक के इस व्यवहार के कारण परिवार तनाव में चलन रहा है। परिवार बैंक से यह निवेदन बार बार कर चुका है कि यदि कर्जदार की अटैच की हुई संपत्ति की नीलामी कर्ज की पूरी अदायगी नही हो पाती है तो वह शेष बचे कर्ज को भरने के लिये तैयार हैं। लेकिन उनके इस आग्रह को बैंक स्वीकार नही कर रहा है। ऋण नियम साफ है कि यदि कर्जधारक की संपत्ति से कर्ज की पूरी वसूली नही हो पाती है तब गारंटी देने वाले की संपत्ति की नालीमी की नौबत आती है। बैंक स्थापित नियम और मानवीय दृष्टिकोण को नज़रअंदाज करके इस परिवार को क्यों कोई आत्मघाती कदम उठाने पर बाध्य कर रहा है यह एक चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या बैंक जंगल राज की ओर बढ़ रहा है?