शिमला/शैल। क्या कांग्रेस के नव नियुक्त अध्यक्ष कुलदीप राठौर पार्टी को लोकसभा चुनावों में पूरी एकजुटता के साथ उतार पायेंगे? क्या कांग्रेस इन चुनावों में 2014 के मुकाबले अपना प्रदर्शन सुधार पायेगी? यह सवाल कांग्रेस के भीतर एक बार फिर उभरते नजर आ रहे हैं क्योंकि वीरभद्र सिंह ने अब प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वीरभद्र सिंह ने मनजीत ठाकुर के अध्यक्ष होने पर यह कहकर सवाल उठाया है कि उसने विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया है जिसके कारण वहां हार मिली। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष को पद संभाले काफी अरसा हो गया है और विधानसभा चुनाव भी 2017 में हुए थे। ऐसे में आज वीरभद्र सिंह द्वारा यह मुद्दा सार्वजनिक तौर पर उस समय उठाया जाना जब पार्टी के नये अध्यक्ष राठौर ने भी संगठन के
वीरभद्र का यह एतराज उस समय सामने आया है जब युवा कांग्रेस ने अभिषेक राणा के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करते हुए उनसे युवा कांग्रेस की जिम्मेदारीयां छीन ली हैं। अभिषेक राणा सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा के बेटे हैं और वीरभद्र सिंह अभिषेक राणा को हमीरपुर से लोकसभा के लिये भावी प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं। जब अभिषेक ने लोस टिकट के लिये आवदेन किया था तब वह इसके लिये वीरभद्र सिंह का आर्शीवाद लेने विशेष रूप से गये थे। ऐसे में जिस व्यक्ति के खिलाफ उसका संगठन एक ओर अनुशासन की कारवाई कर रहा हो और दूसरी ओर पार्टी का वरिष्ठतम नेता छः बार मुख्यमन्त्री रह चुका व्यक्ति ऐसे व्यक्ति की उम्मीदवारी का सार्वजनिक ऐलान करे तो निश्चित रूप से यह सोचना ही पड़ेगा कि क्या यही पार्टी की एक जुटता और अनुशासन है। यहां यह उल्लेख करना भी संगत हो जाता है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चण्डीगढ़ के ईडी कार्यालय मे मनीलाॅड्रिंग की शिकायत करने वाले भी राजेन्द्र राणा ही थे। बाद में राजेन्द्र राणा ने इस शिकायत को यह कहकर वापिस लिया था कि ‘‘किसी ने उनके नाम से यह शिकायत कर दी थी’’। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि राजेन्द्र राणा और वीरभद्र के सियासी रिश्तो की गहनता कुछ अलग ही है।
लेकिन इस समय पार्टी को लोकसभा चुनाव को सामना करना है। वीरभद्र एक लम्बे समय से सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे थे। इस मांग के समर्थन में जब आनन्द शर्मा ‘‘वीरभद्र सिंह, मुकेश अग्निहोत्री और आशा कुमारी जैसे सारे वरिष्ठ नेताओं ने इकट्ठे होकर प्रयास किया सुक्खु हट गये और राठौर को कमान संभाल दी गयी। राठौर के पदग्रहण करते समय जो कुछ घटा वह सबके सामने है। उस पर जांच बिठाई गयी थी जिसकी रिपोर्ट आ गयी है अब यह सामने आना है कि इस पर क्या कारवाई होती है। जबकि चर्चा यहां तक है कि जो लोग इस घटना की पृष्टभूमि मे थे उनमें से किसी को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तक भी मिल सकती है। राठौर ने यह तो कहा ही है कि जिन कार्यकर्ताओं के साथ पूर्व में न्याय नही हुआ है उनके साथ न्याय किया जायेगा और संगठन मे कुछ नये लोगों को जिम्मेदारीयां दी जायेंगी। तय है कि यह सबकुछ यदि लोस चुनावों से पहले होता है तो इसका संगठन पर प्रभाव बहुत ज्यादा सकारात्मक नही रहेगा।
इस समय लोकसभा चुनावों में संगठन की परीक्षा सीटें जीतने के रूप में होगी। यह सीटें जीतने के लिये पार्टीे को पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव में आना होगा और आक्रमकता मुद्दों पर निर्भर करेगी। अबतक कांग्रेस की जो आक्रामकता उसके आरोप पत्र के माध्यम से सामने आ चुकी है उसके आधार पर चुनावी सफलता मिल पाना सम्भव नहीं होगा। फिर वीरभद्र तो जयराम सरकार को अभी और वक्त दिये जाने की बात कह चुके है। संभवतः वीरभद्र के इसी निर्देश के कारण कांग्रेस का आरोप पत्र बहुत कमजोर दस्तावेज के रूप में सामने आया है। ऐसे में क्या पार्टी हिमाचल में केवल राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर ही चुनाव में जायेगी? यदि ऐसा होता है तो अभी तक प्रदेश का कोई भी नेता ऐसा सामने नहीं आया है जिसने राष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी गहनता और गम्भीरता से अध्ययन किया हो। इसी के साथ यह भी रहेगा कि अभी प्रदेश सरकार को चार साल सत्ता में रहना है और लोगों को इसी से अपने काम करवाने हैं। इस परिदृश्य में नये अध्यक्ष की चुनौतियां बहुत बढ़ जाती है क्योंकि इस समय वीरभद्र सिंह ने जिस तरह युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है उसका निश्चित रूप से युवा कार्यकर्ताओं पर असर पड़ेगा। इंटक में पहले से ही धढ़ेबन्दी खुलकर सामने आ चुकी है।
ऐसे में चुनावी सफलता के लिये उम्मीदवारों का चयन ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। उसमें भी वीरभद्र हमीरपुर और कांगड़ा से अभिषेक राणा और सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान कर चुके हैं। इनमें से सुधीर शर्मा ने तो टिकट के लिये आवेदन तक नही किया है। मण्डी से चुनाव लड़ने को लेकर वीरभद्र कई बार अपने ब्यान बदल चुके हैं। बल्कि सबसे पहले जब उन्होंने यह कहा था कि कोई भी मकरझण्डु चुनाव लड़ लेगा तो उसी से उनकी नीयत और नीति सामने आ गयी थी। इसी तरह जब हमीरपुर से सुक्खु की उम्मीदवारी को लेकर उनसे सवाल पूछा गया था तब उन्होने यहां तक कह दिया था कि वह नही समझते की हाईकमान में कोई इतना मूर्ख होगा। इस तरह यदि कांग्रेस के अन्दर अब तक जो कुछ घटा है और उसमें वीरभद्र सिंह की भूमिका किस तरह की रही है उसका निश्पक्ष आंकलन करने से यही सामने आता है कि यदि मण्डी से वीरभद्र स्वयं या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव में आता है तभी पूरे चुनाव में कांग्रेस की गंभीरता और ईमानदारी झलकेगी अन्यथा नही। क्योंकि इस समय वीरभद्र परिवार राजनीति की जिस ऐज और स्टेज पर आ खड़ा है वहां से वह अब कोई चुनाव हारने के लिये नही लड़ेगा। यही स्थिति हमीरपुर मे मुकेश अग्निहोत्री की है। इस तरह यदि कांग्रेस इन दोनों को चुनाव लड़ने के लिये तैयार कर पाती है तोे प्रदेश का पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल जायेगा अन्यथा कांग्रेस को कोई सफलता मिलना आसान नही होगा। कुलदीप राठौर की राजनीतिक समझ की परीक्षा भी इसी से हो जायेगी अन्यथा बाद में सारा ठीकरा उनके सिर आसानी से फोड़ दिया जायेगा।