शिमला/शैल। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें वीरभद्र से छीन कर ले गयी थी बल्कि अपने संसदीय हल्के मण्डी से मुख्यमन्त्री होते हुए अपनी पत्नी की सीट तक वीरभद्र नही बचा पाये थे। 2014 की इस हार को मोदी लहर का परिणाम करार दिया गया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में भी वीरभद्र कांग्रेस को पुनः सत्ता में नही ला पाये यह एक कड़वा राजनीतिक सच है। लेकिन आज राजनीतिक परिदृश्य फिर बदला हुआ है। 2014 की हार के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर गुजरात और कर्नाटक में अपना प्रदर्शन सुधारने के बाद मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें बना ली हैं। अब भाजपा मोदी के पक्ष में 2014 जैसा वातावरण नही है। इसलिये प्रदेश के संद्धर्भ में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वीरभद्र की कांग्रेस प्रदेश में 2014 की हार का बदला ले पायेगी? आज प्रदेश की कांग्रेस को वीरभद्र की कांग्रेस कहा जा रहा है क्योंकि सुक्खु को हरवाना वीरभद्र के लिये एक मुद्दे की शक्ल ले चुका था। इसी परिदृश्य में जब वीरभद्र, आनन्द शर्मा, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री ने हाथ मिलाया और राठौर के नाम पर लिखित में सहमति जताई तब यह बदलाव हुआ।
अब राठौर ने जिस तरह से प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया है उसमें भी इन्ही चारों नेताओं का पूरा-पूरा दखल माना जा रहा है। राठौर ने अब तक की सबसे बड़ी लम्बी कार्यकारिणी का गठन किया है। थोक में उपाध्यक्षों महासचिवों और सचिवों के पद बांटे गये हैं लेकिन इतनी बड़ी कार्यकारिणी पर इन बड़े नेताओं का कोई विरोध सामने नही आया है जबकि कुछ पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने वाकायदा इतने ज्यादा पदाधिकारियों पर हैरत जताई है। यही नही प्रदेश कार्यकारिणी की तर्ज पर ही अब जिला और ब्लाॅक ईकाईयों के गठन में भी उसी तर्ज पर पद बांटे जा रहे हैं। जबकि एक समय ऐसे बनाये गये पदाधिकारियों की पात्रता पर वीरभद्र ने यहां तक कह दिया था कि जो लोग पंचायत स्तर पंच का चुनाव नही जीत सकते उन्हें प्रदेश की जिम्मेदारीयां दे दी गयी हैं। इसलिये आज जब वीरभद्र सहित सारे बड़े नेता इस सब पर चुप हैं तो स्वभाविक रूप से आज की प्रदेश कांग्रेस को राठौर की बजाये वीरभद्र की कांग्रेस कहना असंगत नही होगा। क्योंकि राठौर ने उस समय जिम्मेदारी संभाली है जब मार्च के प्रथम सप्ताह में तो लोस चुनावों के लिये आचार संहिता लग जायेगी। इतने समय में तो शायद पूरे प्रदेश में जिला और ब्लाॅक स्तर पर ईकाईयों का भी गठन न हो पाये। लोस चुनावों के लिये ईच्छुक उम्मीदवारों के आवदेन आने के बाद उनके नाम आगे भी प्रस्तावित कर दिये गये हैं। इनके बाद और नामों की भी सूची मांग ली गयी है और हाईकमान अपने ही सर्वे के आधार पर उम्मीदवारों का ऐलान करेगी यह माना जा रहा है। सूत्रों की माने तो हाईकमान की भेजी हुई दो टीमों ने प्रदेश का सर्वे किया है और इस सर्वे के आधार पर उम्मीदवारों का चयन होगा यह माना जा रहा है। सूत्रों की माने तो सुक्खु को भी इसी सर्वे के आधार पर हटाया गया था। क्योंकि सर्वे में यह कहा गया था कि सुक्खु की अध्यक्षता में वीरभद्र और उसका पूरा खेमा चुनावों में काम नही करेगा। वीरभद्र ने जिस तरह से हमीरपुर से राजेन्द्र राणा के बेटे और कांगड़ा से सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान किया था। उस पर प्रदेश की प्रभारी रजनी पाटिल ने कड़ी प्रतिक्रिया जारी की थी। उसके बाद वीरभद्र ने मण्डी से अपनी उम्मीदवारी को लेकर यह ब्यान दिया था कि यदि हाईकमान आदेश करेगा तो वह चुनाव लड़ लेंगे। वीरभद्र के ब्यानों का हाईकमान द्वारा संज्ञान लेने के बाद सुक्खु को अभी बदलने का फैसला हुआ था। इस फैसले को अमली जामा पहनाने के लिये हाईकमान ने आनन्द शर्मा की जिम्मेदारी लगायी और फिर आनन्द शर्मा ने इन अन्य नेताओं को विश्वास में लेकर इस बदलाव को अजांम दिया।
इस बदलाव के बाद जब राठौर राहुल गांधी से मिलने गये थे तब उन्हें चुनावों के मद्देनजर संगठन में इन नेताओं के सारे विश्वस्तों को स्थान देते हुए पुराने लोगों को भी यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश दिये थे। इन्ही निर्देशों के कारण सुक्खु काल के लोगों को हटाया नही गया है। इस वस्तु स्थिति में यह माना जा रहा है कि लोस चुनावों की पूरी जिम्मेदारी वीरभद्र और मुकेश अग्निहोत्री पर आने वाली है। क्योंकि हाईकमान इस बार एक-एक सीट को लेकर गंभीर है। सर्वे के आंकलन को माने तो उसमें यह सुझाया गया है कि यदि वीरभद्र जैसे बड़े नेताओं को चुनाव में उतारा जायेगा तो वह ईमानदारी से सरकार के प्रति आक्रमकता निभायेंगे और उसी के साथ सारी खेमे बाजी भी अपने आप खत्म हो जायेगी। क्योंकि जब बड़े नेताओं के सिर पर सीधे जिम्मेदारी आ जाती है तब वह अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं।
सूत्रों की माने तो हाईकमान ने वीरभद्र के बेटे की शादी में व्यवस्तता के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया है यह संकेत दे दिया गया है कि मण्डी से वीरभद्र परिवार के ही किसी सदस्य को चुनाव में उतरना होगा। हिमाचल का चुनाव मई के अन्तिम फेज में होगा और वीरभद्र शादी की व्यवस्तता से मार्च में ही फ्री हो जायेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि हमीरपुर से मुकेश अग्निहोत्री और सुखविन्दर सिंह सुक्खु में से कोई उम्मीदवार होगा। इसी तहर कांगड़ा से सुधीर, जी एस बाली, आशा कुमारी और विजय सिंह मनकोटिया में से कोई उम्मीदवार होगा। शिमला से धनी राम शांडिल, विनोद सुल्तान पुरी और सोहन लाल के नाम सर्वे में सुझाये गये हैं। माना जा रहा है कि इन बड़े नेताओं को भी इसके संकेत दे दिये गये हैं। इस परिदृश्य में राठौर के लिये एक बड़ा काम पूराने नेताओं की पार्टी में वापसी करवाना है और वह इस काम में लग भी गये हैं। माना जा रहा है कि लोस चुनावों की गभीरता को देखते हुए पार्टी से बाहर निकाले गये सारे नेताओं को देर सवेर वापिस लिया जा रहा है और लोस चुनावों के बाद संगठन के आकार-प्रकार पर नये सिरे से विचार विमर्श किया जायेगा। अभी लोस चुनावों से पूर्व पार्टी में प्रवक्ताओं की जिम्मेदारी किसे दी जाती है इस पर मन्थन चल रहा है क्योंकि इन चुनावों में प्रवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी इसलिये अभी तक राठौर की कार्यकारिणी में प्रवक्ता का पद खाली रखा गया है।