शिमला/शैल।जयराम सरकार ने अभी विभिन्न उद्योगपत्तियों के साथ 159 एमओयू साईन करके प्रदेश में 17356 करोड़ का निवेश आने और 40,000 लोगों को रोजगार मिलने का एक बड़ा सपना प्रदेश की जनता करो परोसा है। यह सपना ज़मीन पर आकार ले पायेगा या जुमला होकर ही रह जायेगा। यह सवाल अभी से उठने लग पड़ा है। यह सवाल उद्योग विभाग के उस पत्र से उठा है जो विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा सारे प्रशासकीय सचिवों को सात फरवरी को लिखा गया है। इस पत्र में सचिवों से कहा गया है
"You are, therefore, requested to take up with and invite the investors of projects which are in pipeline and/or in which EC or permission under section-118 of H.P. Tenancy and Land Reform Act stand signed/issued and request them to participate in the aforesaid 'MOU signing ceremony'. A copy of the suggested MoU is enclosed for your reference.
You are also requested to inform the number and details of MoUs proposed to be signed in the by your department/organization, to this Office within a week.
This Memorandum of Understanding is made to facilitate M/s. for establishment of the aforesaid project in Himachal Pradesh in a time bound manner.
This MOU indicates the intention of the investor in brief about the proposed industry and the possible facilitation to be extended by the state Government and shall remain valid for a maximum period of 12 (twelve) months from the date of entering into MOU unless otherwise extended by second party. No separate notice will be required to be issued for this."
इस पत्र में सरकार द्वारा संभावित निवेशकों को उद्योग स्थापित करने के लिये यथा संभव सहायता का आश्वासन दिया गया है। लेकिन इस निवेशक मीट को जिस तरह से प्रचारित किया गया है उससे यह संदेश दिया गया है कि इतना निवेश प्रदेश को मिल गया है और 40000 लोगों को रोजगार मिलने ही वाला है। इस निवेशक मीट पर सरकार का खर्च हुआ है। आगे जो ऐसी ही मीट प्रस्तावित है उस पर भी खर्च होगा। प्रदेश में 1977 से औद्यौगिक क्षेत्र चिन्हित होते आये हैं। इन क्षेत्रों में उद्योग भी स्थापित हुए हैं। इन उद्योगों को हर तरह का सहयोग दिया गया है। प्रदेश का वित्त निगम, एसआईडीसी, जी आईसी और खादी एवम् ग्रामीण उद्योग बोर्ड, यह सारे अदारे इन उद्योगों को सहायता देते रहे हैं। लेकिन आज इन सारे अदारों की अपनी सेहत भी नाजुक होने के कगार पर पंहुच गयी है। बल्कि कुछ तो कभी भी बन्द होने की हालत तक पंहुच चुके हैं। लेकिन इस सबके बावजूद आज यदि यह आंकलन किया जाये कि कब कितने उद्योग स्थापित हुए और उनमें से अब कितने यहां चल रहे हैं तो शायद यह आंकड़े चैंकाने वाले होंगे।
हिमाचल में निवेशकों के आकर्षण का सबसे बड़ा कारण था यहां पर सस्ती और निर्बाध बिजली। क्योंकि आद्यौगिक क्षेत्र में हिमाचल की पहचान बिजली उत्पादक राज्य के रूप में देशभर में प्रचारित और प्रसारित थी। लेकिन इस निवेशक मीट के बाद प्रदेश में जिस तरह से बिजली के रेट बढ़ाये गये हैं। उनको लेकर बिजली बोर्ड के कर्मचारी संगठनों से लेकर आम आदमी तक इस पर रोष प्रकट कर रहा है और हो सकता है कि इसके लिये आन्दोलन की नौबत आ जाये। ऐसे में यह सीधा सवाल उठता है कि क्या इन बढ़ी हुई बिजली दरों का सामने रखकर निवेशक हिमाचल आने का रूख करेंगे। क्योंकि किसी भी उद्योग के लिये यह आवश्यक होता है कि जहां वह स्थापित हो रहा है वहां क्या उसके उत्पाद का पर्याप्त उपभोक्ता है। यदि उपभोक्ता नही है तो क्या उत्पादन के लिये सस्ते संसाधन हैं। क्या उद्योग विभाग ने इन बुनियादी आवश्यकताओं का कोई आंकलन करवाया है? शायद नहीं।
जो एम ओ यू साईन हुए हैं उनमें सिरमौर में प्रस्तावित सीमेन्ट उद्योग को लेकर भी एक है। जबकि प्रदेश सरकार ने जुलाई 2006 में चैपाल के गुम्मा - रोहाना में एक प्राईवेट कंपनी के साथ दो मिलियन टन क्लींकर और एक मिलियन टन सीमेन्ट के लिये एम ओ यू साईन किया था। इस एमओयू के मुताबिक कंपनी को माईनिंग लीज, फोरेस्ट क्लीयरैन्स, पर्यावरण क्लीयरैन्स आदि सबकुछ अपने खर्चे से हासिल करना था। उद्योग विभाग के जियोलोजिक विंग को संभावित लाईम स्टोन के रिर्जव आदि का आंकलन कंपनी के आग्रह और खर्च पर करना था। इसी तरह का एक एमओयू सितम्बर 2009 में सुन्दर नगर के लिये साईन हुआ था। दोनो जगह विभाग ने लाईम स्टोन के भण्डार का आंकलन करने के लिये अपनी मशीनरी और कर्मचारी लगा दिये थे। इस काम पर विभाग का करीब 2.77 करोड़ रूपया खर्च हुआ है। जबकि दोनो कंपनियों से विभाग को केवल 89 लाख ही मिल पाये हैं। इन कंपनीयों को फोरेस्ट आदि की क्लीयरैन्स नही मिल पायी है और इस कारण से अगस्त 2017 से इन्होंने काम बन्द कर दिया है। जिस समय इन कंपनीयों के साथ एमओयू साईन हुए थे तब भी इसी तरह के बड़े निवेश और रोजगार का सपना देखा गया था लेकिन इस सपने का परिणाम आज यह है कि आज उद्योग विभाग का अपना करीब दो करोड़ रूपया इसमें डूब गया है। क्या 2006 और 2009 में साईन हुए इन एमओयू की जानकारी मुख्यमन्त्री और उद्योग मन्त्री को दी गयी है? यदि यह जानकारी मुख्यमन्त्री को है तो फिर यह जो निवेश सरकार का अपना डूब गया है उसकी भरपायी कैसे की जायेगी? भविष्य में निवेशकों के साथ इसी तरह का अनुभव न घटे इसको कैसे सुनिश्चित किया जायेगा। जिस तन्त्र के कारण इन कंपनीयों को वाच्छित क्लीयरैन्स नही मिल पाये हैं उसके खिलाफ क्या कारवाई की गयी है। औद्यौगिक निवेश से पहले सरकार को इन पक्षों पर गंभीरता से विचार करना होगा।