Friday, 19 September 2025
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छात्रवृति घोटाले की प्रारम्भिक जांच पर उठे सवाल

क्या छात्रवृति घोटाले की जांच कुछ संस्थानों की साख पर प्रश्नचिन्ह लगाने की नीयत से है
जांचकर्ता पर उठे सवालों से उभरी आशंका
सीबीआई को सभी 266 संस्थानों की जांच करना हो जायेगी बाध्यता

शिमला/शैल। छात्रवृति घोटाले की जांच अब सीबीआई कर रही है। सीबीआई को यह जांच शिक्षा विभाग द्वारा दी गयी प्रारम्भिक जांच के आधार पर सौंपी गयी है। क्योंकि इसी जांच रिपोर्ट पर विभाग ने छोटा शिमला थाना में एफआईआर दर्ज करवायी थी। लेकिन प्रारम्भिक जांच कर्ता शक्ति भूषण ने जिस छात्र सतीश कुमार की शिकायत के आधार पर यह जांच शुरू की और आगे बढ़ाई उसी छात्र का एक शपथपत्र आया है। इस शपथपत्र में छात्र सतीश कुमार ने जांच अधिकारी शक्तिभूषण के खिलाफ आरोप लगाये हैं। आरोप है कि शक्तिभूषण ने डर और लालच देकर यह शिकायत हालिस की है। इसी शपथपत्र के साथ सिरमौर के साईवाला के एक भानू प्रताप को आरटीआई के तहत मिली सूचना भी सामने आयी है। इस सूचना में विभाग से यह पूछा गया था कि क्या छात्रवृति प्राप्त करने के लिये आधार नम्बर का होना अनिवार्य है? तो अधिसूचना की कापी उपलब्ध करवायी जाये। इस पर विभाग ने जवाब दिया है कि सूचना उपलब्ध नही है। आरटीआई में यह जानकारी भी मांगी गयी थी कि क्या छात्रवृति लेने के लिये मोबाईल नम्बर होना आश्वयक है। इसके जवाब में भी विभाग ने सूचना उपलब्ध नही है का ही जवाब दिया है। आरटीआई में यह सूचना 5 अक्तूबर 2018 को आयी है। विभाग के जवाब से साफ हो जाता है कि या तो आधार और मोबाईल नम्बर होने अनिवार्य नही हैं या फिर विभाग को ही छात्रवृति योजना के नियमों की पूरी जानकारी नही है। ऐसे में जांचकर्ता द्वारा इसमें घोटाला होने का आरोप तब तक लगा पाना संभव नही हो सकता जब तक कि कुछ संवद्ध संस्थानों से इस बारे में जानकारी हालिस न कर ली जाती। इस संबंध में कुछ संस्थानों द्वारा विभाग को दिया गया एक ज्ञापन भी सामने आया है। इस ज्ञापन में यह शिकायत की गयी है कि इस कथित घोटाले के बारे में जांचकर्ता ने एक बार भी उनसे जानकारी हालिस करने का प्रयास नही किया है।
छात्रवृति योजना से 238089 छात्र लाभार्थी कहे जा रहे हैं। यह छात्र सभी 2772 संस्थानों से हैं। इनमें 2506 सरकारी और 266 प्राईवेट संस्थान हैं। 2506 सरकारी संस्थानों को 2013-14 से 2016-17 56,34,35168 और 266 प्राईवेट संस्थानों को 210,04,33703 रूपये छात्रवृति के आंवटित किये गये हैं। इस आंवटन से यह आभास करवाया जा रहा है कि छात्रवृति की 80% राशि प्राईवेट संस्थानों को ही आवंटित कर दी गयी और इसके पीछे घोटाले की मंशा रही है। इस पर प्राईवेट संस्थानों ने सरकार को सौंपे ज्ञापन में यह खुलासा किया है कि सरकारी संस्थानों में छात्रां से 3000 से 6000 तक फीस ली जाती है जबकि प्राईवेट संस्थानों द्वारा यही फीस 50,000 से 90,000 तक ली जाती है। स्वभाविक है कि जब सरकारी और प्राईवेट संस्थानों में फीस का इतना अन्तर है तो निश्चित रूप से फीस के अनुपात में प्राईवेट संस्थानों के लिये यह आवंटन ज्यादा रहेगा ही।
इस कथित घोटाले में यह सामने है कि इस छात्रवृति योजना के तहत सभी सरकारी और प्राईवेट संस्थानों को इस छात्रवृति का आवंटन हुआ है। जांच रिपोर्ट में यह आरोप नही है कि जिन दो दर्जन प्राईवेट संस्थानों की जांच की जा रही उन्हे इसके आवंटन के लिये कोई अपने ही अलग नियम बना लिये थे यदि सभी संस्थानों में एक जैसे ही नियमों और प्रक्रिया से छात्रवृति का आंवटन हुआ है तो फिर सभी संस्थानों की जांच क्यों नही। इस बहुचर्चित घोटाले में यह आरोप है कि कई कई छात्रों के लिये एक ही आधार और मोबाईल नम्बर का प्रयोग किया गया है। जब आरटीआई में दी गयी सूचना में यह कहा गया है कि आधार नम्बर और मोबाईल नम्बर अनिवार्य होने की कोई अधिसूचना ही नही है तब यह घोटाला होने का आधार कैसे बन गया? इसमें घोटाला तो तब बनेगा जब रिकार्ड पर दिखाया गया लाभार्थी यह कहे कि उसे छात्रवृति मिली ही नही है या फिर रिकार्ड पर दिखाया गया लाभार्थी फर्जी निकले। लेकिन ऐसा कोई आरोप जांच रिपोर्ट में नही लगाया गया है। ऐसे में यह सवाल और शंकाएं उठना स्वभाविक है कि क्या इन दो दर्जन संस्थानों को किसी तय योजना के तहत बदनाम करवाया जा रहा है। क्योंकि जिस भी प्राईवेट संस्थान पर किसी तरह के घपले का आरोप लगेगा वहां नये छात्रों द्वारा दाखिला लेने पर कई प्रश्न उठेंगे और संस्थान की साख प्रभावित होगी।





























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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