Friday, 19 September 2025
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क्या GeM के जवाब के बाद निदेशक के खिलाफ कारवाई की जा सकेगी

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार के स्वास्थ्य विभाग और आयुर्वेद विभाग में पिछले दिनों कुछ खरीदारीयों को लेकर सवाल उठे थे। इसमें स्वास्थ्य विभाग द्वारा बायोमिट्रिक मशीनों की खरीद पर और आयुर्वेद में कुछ उपकरणों की खरीद में घपला होने का आरोप लगा था। आरोप था कि स्वास्थ्य विभाग ने 15000 की बायोमिट्रिक मशीन 42000 में और आयुर्वेद ने 1555 का उपकरण 4200 में खरीदा है। इन आरोपों के बाद आयुर्वेद विभाग के अतिरिक्त निदेशक को जांच का जिम्मा दिया गया। इस जांच रिपोर्ट के बाद आयुर्वेद विभाग की परचेज़ कमेटी के तीनों सदस्यों को निलंबित कर दिया गया और निदेशक को बदल दिया गया। निदेशक आई ए एस अधिकारी थे इसलिये उनके खिलाफ कारवाई के लिये कार्मिक विभाग को अधिकृत कर दिया गया।  कार्मिक विभाग अब निदेशक के खिलाफ कारवाई की तैयारी में हैं। स्वास्थ्य विभाग में बायोमिट्रिक मशीन खरीद प्रकरण की जांच विशेष सचिव को दी गयी। अब विशेष सचिव की जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन सी एम ओ कांगड़ा जो अब सेवा निवृत हो चुके हैं को चार्जशीट किया जा रहा है। स्मरणीय है कि इन दोनों विभागों के मंत्री एक ही हैं।
अब जब सरकार दोनों विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने जा रही है तब इस पूरे खरीद प्रकरण और सरकार की कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सूत्रों के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के सी एम ओ ने यह खरीद सीधे अपने स्तर पर न करके हैण्डीक्राफ्ट हैण्डलूम कारपोरेशन के माध्यम से की है क्योंकि विभाग ने इस कारपोरेशन को अपनी खरीद ऐजैन्सी नामज़द किया हुआ है। प्रदेश के करीब हर सी एम ओ ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की हुई है। स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त सरकार के और भी कई विभागों ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की हुई है और आज भी कर रहे हैं। जबकि सरकार ने जनवरी 2017 में ही इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद का कड़ा संज्ञान लेते हुए इस प्रक्रिया को बन्द करने के निर्देश दे रखे हैं। लेकिन इन निर्देशों पर आज तक शायद अमल नही हुआ है। ऐसे में यदि बायोमिट्रिक मशीने खरीदने मे कोई घोटाला हुआ है तो उसमें सबसे पहले इस कारपोरेशन की संलिप्तता होना आवश्यक है और सी एम ओ के खिलाफ कारवाई के साथ ही कारपोरेशन के खिलाफ कारवाई पहले बनती है। कारपोरेशन के बिना सी एम ओ के खिलाफ कारवाई कानून की नज़र में टिक पाना संभव नही होगा। अब सरकार का जनवरी 2017 का फैसला और इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद सबकुछ मुख्यमन्त्री के संज्ञान में भी आ चुका है और मुख्यमन्त्री ने इस सबकी जांच करने के निर्देश भी कर दिये हैं। फिर स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि हैण्डीक्राफ्ट, हैण्डलूम कारपोरेशन ने प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी कर रखी है। इस रिपोर्ट के बाद सी एम ओ के खिलाफ कारवाई करना अपने में ही कठिन हो जाता है।
इसी तरह जहां स्वास्थ्य विभाग ने इस कारपोरेशन के माध्यम से खरीद की है वहीं पर आयुर्वेद विभाग ने भारत सरकार द्वारा लांच किये गये GeM पोर्टल के माध्यम से खरीद की है। भारत सरकार ने यह पोर्टल 2017 में तैयार किया और प्रदेश सरकार ने 26-12-2017 को इसके साथ एमओयू साईन किया। एमओयू होने के बाद सारे प्रशासनिक सचिवों और विभागाध्यक्षों को निर्देश जारी करके भविष्य में खरीद इस पोर्टल के माध्यम से करना अनिवार्य करार दिया। सरकार के इन निर्देशों की अनुपालना करते हुए इस पोर्टल के माध्यम से यह खरीद की गयी। GeM के माध्यम से खरीद करते हुए यह GeM की ओर से दावा है कि हर चीज पर एमआरपी से कम से कम 10% डिस्काऊंट खरीदने वाले को मिलेगा। ऐसे में जब आयुर्वेद में 1599 का उपकरण 4200 में खरीदने का आरोप सामने आया तब विभाग ने GeM से इस बारे में विस्तृत जानकारी मांगी। सूत्रों के मुताबिक GeM की ओर से विभाग को भेजे गये जवाब में स्पष्ट किया गया है कि जो उपकरण 1599 का 4200 में खरीदने का आरोप है वह पूरी तरह गलत है। क्योंकि विभाग को जो उपकरण 4200 में दिया गया है उसका एमआरपी 5500 रूपये है। और इसमें करीब 24% का डिस्काऊंट विभाग को दिया गया है। GeM के इस जवाब के बाद यह आरोप स्वतः ही समाप्त हो जाता है कि 1599 का उपकरण 4200 में खरीदा गया बल्कि सही स्थिति यह सामने आयी कि 5500 का उपकरण  4200 में खरीदा गया।
इस परिदृश्य में विभाग के अधिकारियों पर अधिक दरों पर सामान खरीदने का आरोप अपने में ही खारिज हो जाता है और इस आरोप के आधार पर निदेशक के खिलाफ कारवाई करना तथा पहले निलंबित किये अधिकारियों का निलंबन तुरन्त प्रभाव से रद्द न करना एक नाजायज़ कारवाई हो जायेगा। वैसे सुत्रों के मुताबिक एक बड़ा वर्ग हैण्डीक्राफ्ट, हैण्डलूम कारपोरेशन के खिलाफ मुख्यमन्त्री द्वारा आदेशित कारवाई को टालना चाहता है क्योंकि इसमें कई चेहरों के बेनकाब होने की संभावना है क्योंकि चर्चाओं के मुताबिक इस कारपोरेशन के माध्यम से की जा रही खरीद में करोड़ों का घपला हो रहा है और इसका प्रमाण विशेष सचिव की रिपोर्ट से भी मिल जाता है। शायद विशेष सचिव की रिपोर्ट को मुख्यमन्त्री के संज्ञान मे न लाने के प्रयास शुरू हो गये हैं।

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