Friday, 19 September 2025
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उपचुनाव किसके काम की परीक्षा होंगे-मोदी या जयराम बढ़त का अनुपात बनाये रखना होगी कसौटी

 

शिमला/शैल। प्रदेश के दो विधानसभा क्षेत्रों धर्मशाला और पच्छाद में उपचुनाव होने हैं क्योंकि यहां के विधानसभा सांसद बनकर जा चुके हैं। इसके बाद मन्त्रीमण्डल में भी दो मंत्री बनाये जाने हैं। क्योंकि किश्न कपूर और अनिल शर्मा द्वारा खाली किये गये पद अभी तक भरे नही गये हैं। जयराम सरकार बनने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब जनता में वोट मांगने जाना पड़ेगा। पहला मौका था लोकसभा के चुनाव और उनमें केन्द्र और राज्य सरकार दोनों की प्रतिष्ठा दाव लगी हुई थी। बल्कि मुख्यमन्त्री ने मन्त्रीयों के खाली पदों को भरने के लिये लोकसभा चुनावों मे परफारमैन्स का पैमाना लगा दिया था। लेकिन लोकसभा में जिस अप्रत्याशित बढ़त के साथ भाजपा ने प्रदेश की चारों सीटों पर जीत हासिल की है उससे परफारमैन्स की शर्तें एकदम हाशिये पर चली गयी है। ऐसे में यह उपचुनाव ही सही मायनों में परीक्षा होंगे और इसमें लोकसभा वाली बढ़त का अनुपात बनाये रखना ही कसौटी होगा। क्योंकि अभी जिस तरह वातावरण बना हुआ है उसमे हार या कड़ी टक्कर जैसी कोई संभावना दूर- दूर तक नही है। बल्कि ऐसा तभी संभव होगा जब अपने ही कार्यकर्ता और नेता सरकार को आईना दिखाने की रणनीति पर न आ जायें।
‘‘ यह आईना दिखाने ’’ जैसा सन्देह क्यों है इसके संकेत इन उपचुनावों में टिकटार्थीयों की लंबी होती सूची और कांग्रेस के घर में सेंध लगाकर कुछ छोटे बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करने से उभरे हैं। धर्मशाला से सुधीर शर्मा और फिर मुनीष शर्मा के नामों की चर्चा आना इसके प्रमाण हैं। इन नामों से हटकर पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को उम्मीदवार बनाये जाने की मांग नगरोटा और ज्वालामुखी मण्डलों के प्रस्तावों से आना एक बड़ी राजनीतिक हलचल थी। क्योंकि धूमल का नाम आते ही धर्मशाला के कुछ गैर राजनीतिक मंचों द्वारा यह प्रतिक्रिया देना की धर्मशाला को राजनीतिक धर्मशाला नही बनने देंगे एक बड़ी ही सुनियोजित राजनीतिक रणनीति थी। लेकिन जिन मंचों से यह प्रतिक्रिया आयी बाद में उन्ही से जुड़े कुछ लोगों ने प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अपनी ही दावेदारी आगे करने का कदम उठा लिया। क्योंकि इनमें से कई लोग जो जनसंघ के जमाने से संगठन से जुड़े हुए हैं यही नहीं कर्मचारियों के डा. अरविन्द कन्दौरिया और सेवा निवृत अधिकारी डा. रोकश कपूर तक के नाम धर्मशाला के गलियारों में चर्चा में चल रहे हैं। इस चर्चा के लिये इन लोगों के आरएसएस से संबंध सबसे बड़ा तर्क बने हुए हैं स्मरणीय है कि जब 2017 मे पालमपुर में भाजपा का बुद्धिजीवि सम्मेलन हुआ था जिसे अमितशाह ने संबोधित किया था उसमें डा. राकेश कपूर ही अकेले कार्यरत अधिकारी थे जिन्हें उसमें विशेषरूप से बुलाया गया था। ऐसे कई प्रसंग चर्चा में हैं।
लेकिन इसी के साथ यह भी सत्य है कि लोकसभा चुनावों में जब किश्न कपूर को लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया था तब उनके बेटे को विधानसभा का टिकट देने की बात की गयी थी। इसी तरह पिछले दिनों जिस तरह से त्रिलोक कपूर की प्रधानमंत्री से मुलाकात करना चर्चा में आया है उससे उनकी उम्मीदवारी का दावा भी गणना में आ गया है। इस तरह करीब आधा दर्जन नाम उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल हैं। लेकिन इन सारी चर्चाओं के साथ एक बड़ा सवाल यह उछल रहा है कि धर्मशाला की प्रशासनिक सेहत कैसी है क्योंकि पिछले दिनों जब नगर निगम का एक जेई एक लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार हुआ है उसके बाद किश्न कपूर तक को यह कहना पड़ा कि धर्मशाला में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है। प्रशासनिक सेहत के साथ ही धर्मशाला से जुड़े कुछ विकास के सवाल भी चर्चित होने लग पड़े हैं। सवाल उठ रहा है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय दस वर्ष बाद भी केवल शिलान्यास तक ही क्यों पहुंचा है। हाईकोर्ट की सर्किट बैंच की मांग लम्बे अरसे से लटकी पड़ी है। बल्कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को भंग करने से यह सवाल और भी बड़ा बन गया है। इस तरह के कई और मुद्दे पार्किंग, बस अड्डे की दुर्दशा और पर्यटन विकास के लिये आधारभूत ढांचा विकसित करने के नाम पर कोई बड़ा काम न होना इस उपचुनाव के महत्वपूर्ण स्थानीय सवाल होंगे।
परन्तु इन सारे सवालों से भी भारी पिछले दिनों शान्ता कुमार के नाम लिखा गया एक कार्यकर्ता गुमनाम पत्र है। इस पत्र में कुछ गंभीर मुद्दे उठाये गये हैं एक तरह से भ्रष्टाचार की ओर ध्यान खींचा गया है। इस पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि लिखने वाले के पास काफी अन्दर तक की जानकारीयां हैं। सोशल मीडिया में इस पत्र के चर्चा में आने के बाद ही मुख्यमन्त्री और शान्ता कुमार में बन्द कमरे मे बैठक हुई और उस बैठक में स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार को शामिल नही किया गया जबकि वह धर्मशाला से पालमपुर मुख्यमन्त्री के साथ गये थे और बैठक के दौरान भी होटल यामिनी में ही मौजूद थे। जयराम-शान्ता की इस मुलाकात के बाद शान्ता कुमार की ओर से एक प्रतिक्रिया भी आयी है। शान्ता कुमार के नाम एक गुमनाम कार्यकर्ता का पत्र और मुख्यमन्त्री से मुलाकात के बाद आयी प्रतिक्रिया यथास्थिति पाठकों के सामने रखी जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि यह सब इन उपचुनावों में चर्चा के विषय रहेंगे और बहुत संभव है कि कुछ और भी समाने आये।
                                                शान्ता के नाम एक कार्यकर्ता का पत्र

आदरणीय शांत कुमार जी,
प्रणाम,
"हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और"  इस कहावत का असली मतलब तब समझ आया जब मैंने आपकी लिखित पुस्तक  "भ्रष्टाचार का कड़वा सच" को पढ़ा। 
क्या वह किताब केवल गत भाजपा सरकार को रिपीट न होने देने के उद्देश्य से लिखी गयी थी या फिर आप सच मे ही देश और प्रदेश की जनता को सरकारों में पनपते भ्र्ष्टाचार के प्रति जागरूक करना चाहते थे ? अगर आप वास्तव में ही भ्र्ष्टाचार के खिलाफ थे और  आज भी हैं तो आज जो आपके नाक के तले हो रहा है उसके प्रति आप चुप क्यों हो ?   क्यों जानबूझ कर गांधारी की तरह आंखों में पट्टी बांध रखी है ? क्या आप भ्र्ष्टाचार के  हो रहे नंगे खेल से अवगत नही हैं ? या फिर जानबूझ कर केवल मात्र
 इसलिए अनजान  बने हुए हैं कि इस बार  भ्र्ष्टाचार करने वाले कोई और नहीं बल्कि आपके अपने हैं 
इसमें कोई दो राय नही कि प्रदेश की जनता में आपकी छवि एक ईमानदार  नेता की रही है पर आज ये तथाकथित ईमानदार आवाज  ने अपने मुंह को क्यों सिल लिया है।
शांता जी,  आपने जेनेरिक दवाईयों के नाम पर लंबी लड़ाई लड़ी । जनता जानना चाहती है क्या  वह लड़ाई  मात्र इसलिए थी कि सत्ता में आने आपका प्रिय शिष्य स्वास्थ्य मंत्री बनते ही अपने मित्रों को सरकारी अस्पतालों में  उन दवाईयों की सप्लाई का आर्डर दे। और उनके  प्रिय मित्र दवाईयों के नाम पर जो "भस्म भबूत" मैडीकल कॉलेज सहित अन्य सरकारी अस्पतालों में सप्लाई कर रहे हैं उससे गरीबों की जो हाय लगेगी उससे तो शायद ही भगवान उनको बचाएगा। पर आपकी शाख को लगा बट्टा शायद ही मिट पायेगा।  अगर आपको विश्वाश नही है तो अपने सामने पड़े फ़ोन से प्रदेश के किसी भी प्रसिद्ध डॉक्टर को  वर्तमान में सप्लाई हो रही तथाकथित जेनेरिक दवाईयों की क्वालिटी के बारे में पूछें ?
  क्या यह भ्र्ष्टाचार नही की  स्वास्थ्यमंत्री और मुख्यमंत्री का एक करीबी सरकार बनने के बाद 35 करोड़ की दवाइयां सप्लाई कर चुका है और स्वास्थ्य विभाग की एक गाड़ी  हमेशा उसके घर के बाहर खड़ी मिलती है। और  विभिन्न सी एम ओ  को बाकायदा फोन करके उनसे दवाईयां खरीदने का दबाब डाला जाता है।
प्रिय शांता जी,
आयुर्वेद विभाग  में मंहगी खरीद  में आईएएस भटनागर को दोषी मानकर उस पर दिखावे के लिए छोटी सी  कार्यवाही करके जनता की आंखों में झूल तो झोंक दी परन्तु जिस विपिन परमार के आदेश पर यह खरीद हुई  उनके खिलाफ कोन कार्यवाही करेगा? क्या इस पर भी आपको भ्र्ष्टाचार नही दिखाई देता है?
पिछले डेढ़ वर्षों में कई दवाईयों के सैंपल फेल हुए पर आज तक कोई कंपनी ब्लैक लिस्ट नही हुई ? आखिर क्यों ? और आप इसलिए चुप है क्योंकि विपन परमार आपके खर्चे उठाते हैं ?
मन्डी में एक डॉक्टर ने अपने ही बेटे  से 2 रुपये की दवाई 16 रुपये में खरीद ली। पर अब आप क्यों बोलेंगे?
हर दूसरे दिन अखबारों में छपा मिलता है कि सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक दवाईयां महंगी खरीदी जा रही है और ओपन मार्किट में सस्ती मिल रही है इसका जिम्मेदार कौन है  कभी सोचा आपने?
 चंद मित्रों ने सिविल सप्लाई की दुकानों से सीधे सीधे कमीशन वसूल रहे है आप सब जानते हुए भी चुप हैं।आप सिर्फ इतना पता कर लीजिए कि पालमपुर हॉस्पिटल की सिविल सप्लाई की दुकान किसके फोन से आवंटित हुई है?
पंजाब में 290 रुपये में बिकने वाला सीमेंट हिमाचल में 390 रुपये में बिक रहा है और सबको मालूम है कि पिछले डेढ़ वर्षों में इसकी कीमत 90 से 100 रुपये बढ़ी है और कीमतों में वृद्धि का कारण मुख्यमंत्री और उद्योग मंत्री की सीमेन्ट कंपनियों के साथ सांठगांठ है। फिर भी आज आपको भ्र्ष्टाचार नही दिखाई देता।
 धारा 118 के तहत कांग्रेस के 1081  स्वीकृतियों के मुकाबले हमने 1 वर्ष में ही  590 दे दी और इसी  रफ्तार से चले रहे तो पांच वर्षों में आधा हिमाचल बिक जाएगा। पर आप क्यों बोलेंगे। क्योंकि अब आपके शिष्य सत्ता में हैं।  अब आपको भ्रष्टाचार नही सुशासन दिखाई दे रहा है।
 प्रदेश में सबको मालूम है कि पिछले एक वर्ष से पर्यटन विभाग के होटलों को लीज पर देने के लिए सरकार तैयारी कर रही थी और इसके बावत कई बार अखबारों में ख़बरें भी छपी। और अब  जब इन प्रोपर्टी को सेल पर लगाने की आलोचना हुई तो सरकार ने एक निर्दोष अधिकारी को ही दांव पर लगा दिया अपनी खाल बचाने के लिए। जिस हिमाचल को आप स्विट्जरलैंड बनाने की बात करते थे वो आज बिकाऊ हो गया है।जिन सम्पतियों को हिमाचलियों ने अपने खून पसीने से सींचा था उन्हें आज लूटने की कोशिश की जा रही है।
शांता जी हर दूसरे महीने 500 करोड़ रुपये का कर्जा लिया जा रहा है।और उनमें से पैसा सिर्फ सराज विधानसभा को सजाने संवारने में लगाया जा रहा है बाकी हिमाचल के तो जैसे वो मुख्यमंत्री ही नही है। कभी आपने पूछा कि कांगड़ा और चम्बा  के विकास के लिए पिछले डेढ़ साल में क्या किया? कब तक आप  आँखें बंद रखेंगे? कर्जे की यही हालत रही तो हिमाचल के वजूद पर ही संकट आ जायेगा। 
शांता जी,
अपनी पीढ़ी के आप और वीरभद्र मात्र दो नेता बचे हैं वीरभद्र अपने केसों से बचने के लिए सरकार के साथ खड़े हो गए हैं परन्तु आप ने जो अपने जीवन भर की कमाई की है वह इन डेढ़ वर्षों में गवाने के कगार पर आ  चुके हैं 
आज कोई मुंह से न कहे पर प्रदेश का प्रत्येक कार्यकर्ता कह रहा है कि यह सरकार  भाजपा की नही केवल चंद मित्रों की सरकार बन कर रह  गयी है। उन मित्रों को  यह लगता है कि पता नही किस्मत से मिला यह मौका दूसरी बार आएगा कि नही। इसलिये  जितना हो सके दोनों हाथों से लूट लो।  आज कांग्रेस कमजोर है इसलिये वो चुप है पर जनता सब देख रही है।कार्यकर्ताओं ने भी खुल कर कहना शुरू कर दिया है  की अफसरों पर पकड़ नही कुछ अधिकारी सरकार चला रहे हैं और आप इसलिए चुप हैं कि आपका  लूट के माल का एक हिस्सा आप तक भी  पहुंचता है इसलिए आप ने भी  आंखों पर पट्टी बांध ली है। 
इएलिये आपसे विनम्र आग्रह है कि कृप्या आगे से ऐसी कोई किताब न लिखे जिसकी वजह से आपको शर्मिन्दगी उठानी पड़े। केवल वही लिखें जो वास्तव में आप हो।
जो " अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और था"
एक कार्यकर्ता 
जो आपको आदर्श मानता था।
                            शान्ता-जयराम बैठक के बाद शान्ता की प्रतिक्रिया
 भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व सांसद शांता कुमार ने कहा कि वह सोशल मीडिया में बहुत कम कभी-कभी कुछ लिखते है।  इस बार 12 सितम्बर जन्मदिन से कुछ पूर्व उन्होने अपने मन की बात कहीं।  उन्हें  दुख है कि उनके शब्दों से कहीं-कहीं कुछ गलत अर्थ निकाला गया है।  उन्होने उसे स्पष्ट करना चाहा है। 
शांता कुमार का यह बयान उनके सोशल मीडिया पर बुधवार को आए एक बयान के बाद आया है। इस बयान के बाद मीडिया में उनके नाराज होने के कयास लगाए जा रहे हैं।
वीरवार को भाजपा के वरिष्ठ ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा कि वह कई बार कह चुके है कि भारत के राजनैतिक नेताओं में सबसे अधिक सन्तुष्ट और प्रसन्न यदि कोई है तो निश्चित रूप से वह शान्ता कुमार हैं। उन्हें प्रभु ने और पार्टी ने क्या नहीं दिया और उन्होने भी जी भर कर देश और प्रदेश की सेवा की।  उन्होने मीडिया से विशेष आग्रह किया है कि उन्हें किसी भी प्रकार से असन्तुष्ट कह कर उनके साथ अन्याय न करें।
उन्होने कहा कि अब चुनाव नहीं लडूंगा और वैसे भी इस आयु में जवानी की तरह की सक्रियता नहीं रह सकती और उन्होने विवेकानन्द ट्रस्ट में और अधिक काम करने का निर्णय किया है।  उन्होने कहीं से किनारा नहीं किया न ही कभी करेंगे। 
शांता कुमार ने कहा कि धर्मशाला उप-चुनाव जीतना हम सब की जिम्मेदारी है। पिछले लोक सभा चुनाव में वह उम्मीदवार नहीं थे परन्तु पहले से भी अधिक उन्होने चुनाव में काम किया  और जनता ने भी समर्थन का नया रिकार्ड बनाया। कांगड़ा-चम्बा लोक सभा देश में प्रथम रही।  धर्मशाला उप-चुनाव ही नही, पार्टी के किसी भी ऐसे काम में उन्हें सबसे आगे पाओंगे।
उन्होने कहा कि चुनाव के लिए हमारा सुझाव होता हैं। हमारा कोई उम्मीदवार नहीं होता। उम्मीदवार तो पार्टी का होता है।  पार्टी जो भी निर्णय करेगी वहीं उनका भी निर्णय होगा।
शान्ता कुमार ने कहा है कि मंत्रियों के काम-काज के संबंध में विचार और निर्णय लेना केवल मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है फिर भी यह सही है कि मंत्री हमारे है तो उन्हें उनके संबंध में सब प्रकार की चिन्ता भी रहती हैं। वे अपने मन्त्रियों से मिलते भी रहते हैं, बात भी होती रहती है।
उन्होने कहा की भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिन पर बड़े स्तर पर सेवा सप्ताह मना रही है।  उन्होने उससे पहले ही अपने जन्म दिन पर विवेकानन्द सेवा केन्द्र में सेवा करने का सकंल्प किया है।  सभी मित्रों को इस बात की विषेश प्रसन्नता होनी चाहिए।


 

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