Friday, 19 September 2025
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भविष्य की आस में वर्तमान को गिरवी रखने का प्रयास

 

यदि ग्लोबल मन्दी है तो फिर यहां निवेशक क्यों आयेगा
क्या इस निवेश के बहाने प्रदेश में जमीन लेने पर है निवेशकों की नज़र
क्या यह निवेशक आधारभूत ढांचा खड़ा करने में भी निवेश करेंगे
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार नवम्बर सात और आठ को धर्मशाला में इन्वैस्टर मीट करने जा रही है। राईजिंग हिमाचल के नाम से आयोजित की जा रही इस मीट में देश-विदेश के बड़े कारपोरेटस को हिमाचल में निवेश करने का न्योता दिया है। Agribusiness food Processing hydro Power से लेकर tourism civil aviation pharmaceuticals, health care, Ayush manufacturing, Education, IT electronics, Housing और transport आदि तक का हर क्षेत्र इनके लिये खोल दिया गया है। इस मीट से पहले मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर अपनी टीम के साथ नीदरलैण्ड, जर्मनी आदि कई देशों का दौरा इस उद्देश्य से कर आये हैं सरकार निवेश जुटाने के लिये इस वर्ष के शुरू से ही प्रयास करती आ रही है और अब तक 45000 करोड़ से अधिक के एमओयू साईन कर चुकी है। सरकार का लक्ष्य 85000 करोड़ का निवेश जुटाने का है इस मीट का उद्घाटन करने के लिये प्रधानमन्त्री आ रहे हैं। सरकार ने इस निवेश लक्ष्य को पूरा करने के लिये छः करोड़ पर एक मीडिया पार्टनर तक की सेवाएं ले रखी हैं। इस मीट के प्रचार-प्रसार के लिये लोक संपर्क विभाग ने करोड़ों के विज्ञापन प्रदेश से बाहर की मीडिया को जारी किये हैं और मुख्यमन्त्री के साक्षात्कार तक करवाये हैं। आने वाले उद्योगपतियों को लुभाने  SGST reimburse करने और कम मूल्य पर ज़मीन उपलब्ध करवाने तक के कई वायदे सरकार ने कर रखे हैं। इन वायदों को पूरा करने के लिये भूसुधार अधिनियम की धारा 118 के नियमों में एक बार फिर संशोधन अधिसूचित कर दिये गये है। पूरा सरकारी तन्त्र एक वर्ष से इस निवेश अभियान को सफल बनाने के प्रयासों में लगा हुआ है। इसके लिये 728 एकड़ का लैण्ड बैंक आवंटन के लिये तैयार है और 887 एकड़ और जुटाने का दावा किया जा रहा है। इस लगभग एक लाख करोड़ के निवेश से एक लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध होने का भी दावा किया जा रहा है।
सरकार के यह प्रयास कब और कितने सफल होते हैं। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा । लेकिन यह सवाल उठना तो स्वभाविक है कि जब देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और सरकार को कारपोरेट जगत के 1.45 लाख करोड़ की राहत देने तथा करीब दो लाख करोड़ आरबीआई से लेकर बाज़ार में डालने के बावजूद भी बाज़ार की हालत नहीं सुधरी है तो फिर हिमाचल में उद्योगपति निवेश का जोखिम क्यों उठायेंगे। सरकार राहत के बावजूद आटो मोबाईल क्षेत्र मे वाहनों की बिक्री नही बढ़ी है। हाऊसिंग में मकान बड़े स्तर पर बिकने शुरू नहीं हुए हैं। कपड़ा उद्योग में निर्यात में 35% की कमी अभी तक सुधरी नहीं है। जीएसटी संग्रह में हर बार कमी तर्ज की जा रही है। जीएसटी संग्रह में कमी एक तरह से पूरे व्यापार जगत का आईना है। हाईड्रो पावर सैक्टर मेे तो हिमाचल स्वयं भुक्त भोगी है क्योंकि पिछले सात वर्षों में कोई निवेशक प्रदेश में नहीं आया है। बल्कि अब सरकार की अपनी ही कंपनीयों को इसमें आगे आना पड़ा है। एसजेवीएनएल में तो हिमाचल सरकार स्वयं एक हिस्सेदार है। जबकि अन्य कंपनीयां भारत सरकार के उपक्रम हैं। यह सरकारी कंपनीयां भी कर्ज लेकर कितना निवेश कर पाती हैं यह भी सवालों में है। क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश को दिये 69 राष्ट्रीय राज मार्गों का काम अभी सैद्धान्तिक स्वीकृति से आगे नहीं बढ़ पाया है और न ही इसकी निकट भविष्य में कोई उम्मीद है।
हिमाचल सरकार की अपनी आर्थिक स्थिति यह है कि अभी वैट में बढ़ौत्तरी कर पैट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने अब सरकार ने रसोई गैस सिलैण्डर के दाम में 77 रूपये बढ़ा दिये हैं। जो राहतें लोकसभा चुनावों को सामने रखकर एक समय दी गयी थी अब उन्हें न केवल वापिस ही लिया गया है बल्कि इनमें दाम और बढ़ा दिये हैं। यदि यह बढ़ौत्तरी विधानसभा उपचुनावों से पहले हो जाती तो शायद चुनाव परिणाम सरकार के पक्ष में न जा पाते। सरकार को अपने खर्च चलाने के लिये हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे परिदृश्य में निवेशक मीट के परिणामों पर हर आम आदमी का ध्यान जाना स्वभाविक है क्योंकि जिस बड़े स्तर पर यह निवेश का सपना देखा जा रहा है उसमें 70% हिमाचलीयों को रोज़गार देने की शर्त कितनी मानी जायेगी यह कहना अभी आसान नहीं होगा। क्योंकि हिमाचलीयों का रोज़गार इस पर निर्भर करेगा कि किस तरह के कौन से उद्योग यहां आते हैं और प्रदेश में उनकी अपेक्षानुसार श्रमिक उपलब्ध हो पाते हैं या नही।
इसी के साथ यह पक्ष भी महत्वपूर्ण रहेगा कि इन उद्योगों को धरातल पर शक्ल लेने में एक दशक के आस-पास का समय लग जायेगा। क्योंकि उसके लिये आधारभूत ढांचा पहले तैयार करना होगा। जिस स्थान पर उद्योग स्थापित होना है वहां पर बिजली, पानी और सड़क की बुनियादी सुविधा पहले चाहिये। इसी के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता होगी। यह आधारभूत संरचना खड़ी करने में जो निवेश आवश्यक होगा क्या प्रदेश सरकार इसे अपने स्तर पर कर पायेगी यह सवाल सरकार की वर्तमान स्थिति को सामने रखते हुए महत्वर्पूण होगा क्योंकि यदि आजतक के प्रदेश के औद्यौगिक विकास पर नजर दौड़ाई जाये तो कोई उत्साहवर्धक तस्वीर सामने नही आती है। उद्योगों को सहायता देने के लिये वित्त निगम की स्थापना की गयी थी और यह निगम इस सरकार के समय में बन्द करना पड़ गया है। राज्य खादी बोर्ड भी उद्योगों की सहायता के लिये ही था और इसकी स्थिति भी बन्द होने जैसी ही है। हैण्डीक्राफ्ट और हैण्डलूम कारपोरेशन को जिन्दा रहने के लिये दलाली का काम करना पड़ रहा है। राज्य के सहकारी बैंकों ने जब से उद्योगों को फाईनैंस करने का काम शुरू किया है उसका परिणाम इन बैंकों का एनपीए 980 करोड़ के रूप में सामने है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक उद्योगों को अब तक सरकार अपने कर्ज से कहीं अधिक आर्थिक सहायता दे चुकी है। कुल मिलाकर स्थिति यह रही है कि जब तक उद्योगों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी सहायता उपलब्ध रही है तभी तक उद्योग प्रदेश में बने रहे हैं। सरकारी सहायता बन्द होने के साथ ही अधिकांश उद्योग बन्द हो गये हैं। इस सरकार के दौरान भी उद्योगों का पलायन जारी है और इसकी चर्चा विधानसभा सदन तक में हो चुकी  है। आज प्रदेश में सबसे अधिक संभावना केवल पर्यटन की ही रह जाती है। लेकिन इसमें भी पिछले दिनों जब मुख्यमन्त्री ने एक पत्रकार वार्ता में यह कहा कि प्रदेश के होटलों में 35% से अधिक आक्यूपैन्सी नही हो पायी है इससे इस उद्योग को लेकर भी प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गये हैं। फिर जब से एनजीटी ने प्रदेश के पूरे प्लानिंग क्षेत्रों में अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा रखा है तब से यह एक अलग समस्या खड़ी हो गयी है। इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय तक से कोई राहत नहीं मिल पायी है और संभावना भी कम ही नजर आ रही है। सरकार ने जो लैण्ड बैंक बना रखा है उस पर वन और पर्यावरण मन्त्रालय की स्वीकृति उपलब्ध है या नहीं इस पर भी स्थिति कोई साफ नही है। इस तरह एनजीटी और वन एवम् पर्यावरण के प्रतिबन्धो के चलते अलग प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं।
ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि जब सरकार को रसोई गैस और पैट्रोल तथा डीजल के दाम बढ़ाने पड़े हैं और हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है तब क्या इस समय ऐसा प्रयास करने की कोई व्यवहारिक आवश्यकता थी। क्योंकि इस प्रयास पर धन और समय दोनों का ही निवेश तो हुआ ही है। जबकि इस समय सरकार को अपने संसाधन सुधारने की आवश्यकता थी लेकिन इस दिशा में अफसरशाही के प्रयास कोई सन्तोषजनक नही रहे हैं बल्कि अब तो भाजपा के ही मेहश्वर सिंह जैसे नेताओं ने सरकार पर अफसरशाही के हावी होने के आरोप लगाने शुरू कर दिये हैं। इसका अर्थ यह तो खुले रूप से वीरभद्र से सहयोग ओर सुझाव मांगे हैं। शान्ता कुमार ने तो खुले रूप ये वीरभद्र से सहयोग और सुझाव मांगे हैं। इसका अर्थ यह है कि यह बड़े नेता भी आज की तारीख मे जयराम सरकार की नीतियों और कार्यशैली से पूरी तरह से सन्तुष्ट नही है।

 

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