शिमला/शैल। पिछले दिनों जब भ्रष्टाचार के आरोप लगाता हुआ एक पत्र वायरल हुआ था तब उस पत्र में लगे आरोपों की कोई विधिवत जांच करवाने और उस जांच के परिणामों को पारदर्शी तरीके से सार्वजनिक रूप जनता के सामने रखने की बजाये सरकार ने उस पत्र को वायरल करने वालों के खिलाफ जांच शुरू कर दी। इसमें एक शिकायत आयी (या ली गयी) पर एफआईआर दर्ज हुई और जांच भाजपा के ही पूर्व मन्त्री रविन्द्र रवि तक जा पहुंची। उनका मोबाईल फोन कब्जे में लिया गया उसकी फाॅरैन्सिक जांच की और उस जांच में प्रमाणित हो गया कि इस पत्र को वायरल करने में उनकी भूमिका रही है। यह खुलासा सामने आते ही ब्यानों की बौछारें शुरू हो गयी। पत्र वायरल करने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग आयी। इस पत्र की जांच चम्बा पुलिस तक ने भी की। शैल से भी इस पर जानकारी मांगी गयी। रविन्द्र रवि ने सारी जांच को राजनीति से प्रेरित और प्रभावित करार देते हुए इसमें सीबीआई जांच की मांग की है जिस पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है।
अभी यह प्रकरण चल ही रहा है कि इसी दौरान एक और पत्र सामने आ गया है। पहला पत्र तो शान्ता कुमार को लिखा गया था क्योंकि भ्रष्टाचार का कड़वा सच लिखने के बाद उनकी छवि भ्रष्टाचार के धुर विरोधी की बन गयी थी जिसका प्रमाण तत्कालीन धूमल सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोलकर उन्होंने दिया था। लेकिन शान्ता की इस पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नही आयी उल्टे उनके शुभचिन्तकों ने इसे शान्ता के खिलाफ कीचड़ उछालने की संज्ञा दे दी। लेकिन अब जो पत्र आया है वह सीधे प्रदेश्वासियों को संबाधित किया गया है। इस पत्र का सबसे ठोस पक्ष यह है कि यह पत्र एक मीडिया घराने बालाजी कम्यूनिकेशन द्वारा कुछ लोगों को डाक से भेजा गया है। इस मीडिया घराने की एक न्यूज साईट भी है। यह पत्र इस घराने द्वारा भेजे जाने का अर्थ है कि इन्होंने इस पत्र में लगाये गये आरोपों की अपने तौर पर कुछ पुष्टि की होगी और उसके बाद ही इसे अपनी स्टोरी के साथ आगे प्रचारित-प्रसारित किया होगा। शैल ने भी इस पर मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनके मोबाईल फोन पर संपर्क किया था लेकिन कोई उत्तर नही मिला। डाक से एक मीडिया घराने के नाम से यह पत्र भेजे जाने का अर्थ है कि अब ऐसे पत्रों में लग रहे आरोपों का अन्जाम किसी निष्कर्ष पर अवश्य ही पहंुचेगा।
यह पत्र लिखने वाले ने दावा किया है कि उसके पास सारे आरोपों के दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध हैं। उसने दावा किया है कि सरकार इस पर औपचारिक जांच शुरू करे तो वह तुरन्त सारे प्रमाण जांच ऐजैन्सी को उपलब्ध करवा देगा। अब इस पत्र पर सरकार जांच का जोखिम उठाती है या चुप्पी साध जाती है जैसा कि कुल्लु वाले प्रकरण में रहा है क्योंकि उसमें भी पुलिस द्वारा गिरफ्तारियों के बाद आगे क्या हुआ है जांच किस स्टेज पर है और कब तक चालान दायर हो जायेगा इस बारे में कुछ भी सामने नही आया है। वैसे इसमें अब पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इस पत्र मे जो आरोप लगाये गये हैं उनमें कुछ मामलों में सीधे भारत सरकार का पैसा लगा हुआ है। नियमों के मुताबिक जहां भारत सरकार के पैसे का संबंध होता है वहां सीबीआई अपने तौर पर ही जांच शुरू कर देती है। स्वास्थ्य विभाग में बहुत सारी योजनाओं के लिये भारत सरकार पैसा दे रही है। पत्र में लैब का जो प्रंसग उठाया गया है उसमें सीबीआई अपने तौर पर दखल दे सकती है। यही स्थिति हाइड्रो काॅलिज की है उसमें पूरा सौ करोड़ भारत सरकार दे रही है। पर्यटन में तो एडीवी का लोन ही भारत सरकार के माध्यम से है और उसमें शिमला के चर्चों की रिपेयर के लिये तय किये गये करीब 21 करोड़ रूपये कहां खर्च हो गये हैं इस पर विभाग एकदम चुप है। ऐसे में यदि भारत सरकार अपने पैसों के खर्च की जांच के लिये सीबीआई को कह देती है तो फिर सीबीआई को यह काम करना ही पड़ेगा। वैसे भी पिछले दिनों से सीबीआई ने इस बारे में एक मुहिम छेड़ भी रखी है।