Thursday, 18 September 2025
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छात्रवृति घाटोले की जांच में सीबीआई की कार्यशैली भी सवालो में

इसकी मानिटरिंग की जिम्मेदारी शिक्षा और सामजिक न्याय दोनो विभागो पर बराबर थी।
सामाजिक न्याय विभाग की भूमिका की जांच क्यों नही?
जब आधार न. अनिवार्य था तो विभाग के पास इसकी सूचना क्यो नहीं थी
जब निलिट भारत सरकार का उपक्रम है तो फिर चम्बा, कांगड़ा, ऊना और नाहन केन्द्रों के खिलाफ कारवाई क्यो नहीं?
इतनी बड़ी योजना का शीर्ष प्रशासनिक स्तर पर रिव्यू क्यों नही हुआ
भारत सरकार में मानिटरिंग रिपोर्टों के बिना पैसे कैसे रिलिज़ होते रहे
शिमला/शैल। प्रदेश का बहुचर्चित छात्रवृति घोटाला करीब दो साल से जांच के लिये सीबीआई के पास है। इसमें सीबीआई ने 28.8.2019 को निदेशक उच्च शिक्षा को सूचित किया है कि वह इसमें वर्ष 2017-18 की जांच नही कर रही है। इसलिये विभाग अपने स्तर पर ही कारवाई कर सकता है और यह फैसला कर सकता है कि उसे छात्रवृति जारी कर देनी चाहिये या नही। इसी पत्र में यह भी सूचित किया है कि निलिट के चम्बा, कांगड़ा, ऊना और नाहन के केन्द्रों को निलिट मुख्यालय दिल्ली से कोई संवद्धता प्राप्त नही है। लेकिन इसके साथ यह नही कहा गया है कि विभाग को इन केन्द्रों के खिलाफ कोई कारवाई करनी चाहिये या नहीं। यह विभाग के अपने विवेक पर छोड़ दिया गया है। निलिट भारत सरकार का एक उपक्रम है और प्रदेशों में इससे संवद्धता लेकर कई केन्द्र शिक्षण/प्रशिक्षण का कार्य कर रहे हैं। हिमाचल में निलिट का एक केन्द्र शिमला में भी कार्यरत है और वाकायदा संवद्धता प्राप्त है। ऐसे में जब चम्बा,  कांगड़ा, ऊना और नाहन के केन्द्र सीबीआई के मुताबिक संवद्धता प्राप्त नहीं है तो इसका अर्थ है कि वह निलिट के नाम पर गैर कानूनी तरीके से आॅपरेेट कर रहे हैं। निलिट भारत सरकार का उपक्रम है इस नाते इसमें सीबीआई कारवाई करने के लिये स्वयं अधिकृत है परन्तु उसने न तो अपने स्तर पर कोई कारवाई की है और न ही इस बारे में निलिट मुख्यालय को सूचित किया है। केवल प्रदेश के उच्च शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी और आगे उच्च शिक्षा निदेशक ने भी कुछ नही किया है क्योंकि सीबीआई का ऐसा कोई निर्देश पत्र में नही है। ऐसा क्यों हुआ है यह एक बड़ा सवाल है जिससे सीबीआई की कार्यशैली पर भी प्रश्न उठ रहे हैं।
 इस परिदृश्य में छात्रवृति की पूरी योजना को समझना आवश्यक हो जाता है। यह योजना अनुसूचित जाति के गरीब बच्चो को मैट्रिक के बाद शिक्षा प्राप्त करने में सहायता देने के लिये शुरू की गयी है। यह भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता मन्त्रालय के संयुक्त सचिव द्वारा प्रदेश के सचिव सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता को 5 जुलाई 2016 को लिखे पत्र से स्पष्ट हो जाता है। पत्र में यह कहा गया है कि इस योजना की मांग बढ़ रही है और इसके पीछे प्राईवेट शिक्षण संस्थानों का दबाव है लेकिन इन संस्थानों की मानिटरिंग सही ढंग से नही हो पा रही है जिसके कारण अनुसूचित जाति के छात्रों को पूरा लाभ नही मिल रहा है जो कि योजना का मुख्य उद्देश्य है। इस पत्र में यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि प्रत्येक छात्र की आधार नम्बर से लिंक आईडी हो इसमें राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिये गये हैं कि उन्हे योजना की सावधिक मानिटरिंग रिपोर्ट भेजना अनिवार्य होगा और इस रिपोर्ट के बिना उन्हे पैसे रिलिज़ नही किये जायेंगे। इस योजना के तहत कैसे छोत्रों को छात्रवृति बांटी जानी है इसके लिये जून 2016 में विस्तृत निर्देश जारी किये गये हैं।
इन निर्देशों में साफ कहा गया है कि इसके आवेदनों की आनलाईन प्रौसैसिंग होगी और प्रत्येक छात्र का अपना आधार आईडी होगा। यह निर्देश था कि All States/ UTs avalling of central assistance from Government of india under Post-mart Scholarship schemes will migrate to online processing of disbursal of scholarships within is months from the issue of this circular, if not already having such portal. The scholarsh portal  should mandatority have the following features. इससे स्पष्ट जाता है कि आधार लिंक अनिवार्य था और इसके लिये आनलाईन पोर्टल का प्रयोग किया जाना भी अनिवार्य था यह भी निर्देश था कि जिला कल्याण अधिकारी भी इस छात्रवृति के बारे में नियमित रिपोर्ट भेजेंगे।Concerned District Welfare Office (DWO) of the state shall furnish  monthly quarts financial and physical progress  reports to the state Government for    onward submission this     Ministry भारत सरकार से आये इन निर्देशों की कितनी अनुपालना हुई? इनके अनुसार मानिटरिंग रिपोर्ट कितनी नियमित गयी? जिस योजना में 250 करोड़ का घपला होने का आरोप है निश्चित तौर पर यह एक बड़ी योजना थी। शिक्षा विभाग के साथ ही सामाजिक न्याय और अधिकारिकता विभाग की भी बराबर की जिम्मेदारी थी। जब इस संबंध में नूरपुर के छात्र सतीश कुमार की शिकायत आयी और इस पर परियोजना अधिकारी को प्रारम्भिक जांच सौंपी गयी तब भी इन पक्षों पर कोई विचार नही किया गया। राज्य सरकार ने इसके लिये आंध्र प्रदेश सरकार के सूचना प्रौद्यौगिक विभाग की पंजीकृत सोसायटी से 90 लाख खर्च करके एक पोर्टल बनवाया लेकिन इसमें गंभीर कमीयां पायी गयी थीं। इसी दौरान भारत सरकार ने भी एक आनलाईन पोर्टल तैयार करवाया था और राज्य सरकारों को इसके माध्यम से छात्रवृति वितरण के निर्देश दिये थे। बाद में यह निर्देश वापिस ले लिये गये लेकिन विभाग में इन दोनो  पोर्टल के माध्यम से यह छात्रवृति वितरण जारी रहा। स्वभाविक है कि जिस पोर्टल में कमीयां पायी गयी थी जब उसी के माध्यम से छात्रवृति वितरण किया गया होगा तो अवश्य ही उसमें कहीं कोई गलती भी हो गयी होगी। फिर यह छात्रवृति सरकारी और प्राईवेट दोनो ही संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलनी थी। प्रदेश के 2772 सरकारी और 266 प्राईवेट स्कूलों के छात्रों को यह लाभ मिला है। प्राईवेट स्कूल सही में किसी सक्षम अधिकृत अथारिटी की अनुमति से ही खुले हैं या नही यह भी इन स्कूलों के आवदेनों के समय देखा जाना चाहिये था। निलिट संस्थानों का  जब पहली बार ऐसा आवदेन आया होगा तब यह देखा जाना चाहिये था कि इनकी संवद्धता सही है या नही।
 यह योजना 2013-14 से चल रही है। सरकारी और प्राईवेट स्कूलों के छात्र एक बराबर इसके पात्र थे। सही लाभार्थीओं को इसका लाभ मिल रहा है या नहीं। इसकी मानिटरिंग की त्रैमासिक रिपोर्ट शिक्षा और सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिकता विभागों द्वारा केन्द्रिय मन्त्रालय को सौंपी जानी अनिवार्य थी। इन रिपोर्टों के बिना वहां से पैसा नही मिलना था। अगर समय समय पर यह मानटिरिंग/रिव्यू होता रहता तो इसमें कभी घपला नही हो सकता था। लेकिन सरकार में न तो शिक्षा विभाग ने ही और न ही सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिकता विभागो में शीर्ष स्तर पर कोई रिव्यू ही किया गया। योजना के निर्देशों में स्पष्ट है कि आधार अनिवार्य था लेकिन जब इस बारे में विभाग से एक आरटीआई के माध्यम से यह पूछा गया था कि छात्रवृति प्राप्त करने के लिये आधार न. होना अनिवार्य है इसका जवाब  5-10-2018 को आया और कहा गया कि सूचना उपलब्ध नही है। यह जवाब संयुक्त निदेशक हस्ताक्षरों से आया है। जबकि इस योजना के बारे में दोनों विभागों  के सचिवों और निदेशकों को इसकी पूरी जानकारी थी लेकिन यह जानकारी होने के बावजूद किसी भी विभाग के सचिव और निदेशक के स्तर पर कभी कोई रिव्यू नही किया गया। यदि भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार सचिव और निदेशक के स्तर पर समय -समय पर मानिटरिंग होती रहती हो निश्चित रूप से इतना बड़ा घपला न होता। इन अधिकारियों द्वारा इतनी बड़ी योजना पर ध्यान न देने से अपरोक्ष में यही इंगित होता है कि शायद इन लोगों ने जानबूझ कर इस ओर ध्यान नही दिया। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि सीबीआई इसमें तब तक सही निष्कर्ष पर नही पहुंच सकती है जब तक की  2013-14 से लेकर 2016-17 तक इस स्तर के सारे अधिकारियों को जांच के दायरे में नही लाया जाता है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ऐसा नही कर रही है। इसीलिये उसकी कार्यशैली पर सवाल उठने लग पड़े हैं। क्योंकि भारत सरकार में भी मानिटरिंग रिपोर्ट न आने के बावजूद भी पैसे रिलिज होते रहे। यदि भारत सरकार में इन रिपोर्टों के बिना पैसे रिलीज़ किये जाते तो पहले ही दौर मे यह घपला होने से रूक जाता।

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