Friday, 19 September 2025
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बाॅस फार्मा उद्योग प्रकरण में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की नीयत और नीति पर उठे सवाल भारत सरकार प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग और स्वयं अपने ही अनुमति पत्रों को नही मान रहा

शिमला/शैल। बद्दी के झाड़ माज़री में वर्ष 2007 में बाॅस फार्मा के नाम से एक उद्योग की स्थापना हुई थी। 2008 में ही इस उद्योग ने आॅप्रेशन शुरू कर दिया था। स्मरणीय है कि किसी भी उद्योग को उसकी स्थापना और आॅप्रशन से पहले उद्योग विभाग ओर प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से सारी आवश्यक अनुमतियां लेना आवश्यक होता है। उद्योग विभाग और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के संवद्ध अधिकारी समय-समय पर उद्योगों का निरीक्षण करते हैं। जब कोई उद्योग अपनी ईकाई में कोई विस्तार करता है तब भी उसे इस सारी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। बाॅस फार्मा उद्योग ने वर्ष 2008 में ही प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से ड्रग लाईसैन्स लेेकर Vitamin-C, IP/BP, Victamin B-1 IP/BP, Sodium, as a Corbate Crude IP/BP and Niacin/Niacinimide IP/BP (Pharmaceutical formation) का निर्माण शुरू किया था। इसके बाद 25-4-2011 को प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को इसमें दो और ड्रग्स का निर्माण करने की अनुमति दिये जाने का आग्रह किया और इसके लिये 6100 रूपये की फीस भी जमा करवा दी। इस आग्रह में बोर्ड को यह भी सूचित कर दिया गया था कि भारत सरकार के वन एवम् पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा पत्र संख्या  F.No.3-168/2006-RO(NZ) Volume XV दिनांक 13-4-2011 के माध्यम से इस निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है। भारत सरकार ने भी यह स्वीकृति प्रदान करने से पहले इस संद्धर्भ में पूरी कर ली थी।
यह ड्रग्स निर्माण के लिये स्वास्थ्य विभाग हिमाचल प्रदेश ने 11-1-2017 को रिन्यूवल की अनुमति दी है। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने भी इसका अनुमोदन करते हुए इसे 1-4-2017 से 31-3-2022 तक वैद्य़ करार दिया है। आॅप्रेशन के रिन्यूवल का पत्रा बोर्ड से सदस्य सचिव द्वारा 24-3-2019 को जारी हुआ है और यह सब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के रिकार्ड में मौजूद है। लेकिन इसके बावजूद बोर्ड ने इस फार्मा उद्योग को प्रदूषण बोर्ड के तहत 11-6-2019 को नोटिस जारी किया कि प्रदूषण नियमों/मानकों के उल्लंघन के कारण उनकी बिजली काट दी जायेगी। उद्योग द्वारा बोर्ड के नोटिस का पूरे दस्तावेजों के साथ जवाब दिया गया है। स्थापना से लेकर अब तक कोई बीस बार बोर्ड के अधिकारी इसका निरीक्षण कर चुके हैं। कभी भी इसके सैंपल फेल नही हुए हैं। जिन ड्रग्स का यह उद्योग निर्माण कर रहा है वह कोरोना के ईलाज में प्रयोग की जाती है और उत्तरी भारत में यह शायद एक मात्र ईकाई है जो इसका निर्माण कर रही है यदि आज बोर्ड इसका निर्माण बन्द कर देता हैै तो इसका आयात चीन से करना पड़ेगा।
ऐसे में जो सवाल खड़े हो रहे है कि जब प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से लेकर केन्द्र के पर्यावरण मन्त्रालय तक से सारी अनुमतियां मिली हुई हैं तो फिर बोर्ड उन्हें मानने से इन्कार क्यो कर रहा है। जब स्वयं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड 24-3-2019 को अनुमति दे चुका है और यह अनुमति 2022 तक वैद्य है तो फिर बोर्ड अपनी ही अनुमति को क्यों नही मान रहा है? क्या मार्च 2019 के बाद प्रदूषण के नियमों और मानकों में कोई बदलाव आया है जिनकी अपुलना यह उद्योग ईकाई नही कर रही है? क्या बोर्ड में जो अधिकारी पहले तैनात थे उन्हे प्रदूषण के नियमों की पूरी जानकरी नही थी? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण हो गये हैं क्योंकि प्रदेश सरकार बड़े पैमाने पर नये उद्योगों और निवेश को आमन्त्रण दे रही है। यदि आज बोर्ड पहले से स्थापित उद्योगों के साथ इस तरह का व्यवहार कर रहा है तो नये आने वाले उद्योगों के साथ क्या होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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