क्या 118 की इन अनुमतियों को रद्द कर पायेगी सरकार
तीन बड़े अधिकारी प्रबोध सक्सेना, सुतनु बेहुरिया और देवेश कुमार भी है
लाभार्थियों में शामिल
शिमला/शैल। कोई भी गैर कृषक गैर हिमाचली प्रदेश में सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकता है। प्रदेश के राजस्व और भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत यह बंदिश लगाई गयी है। लेकिन जब से प्रदेश की उद्योग नीति में बदलाव करके औद्योगिक निवेश को आमंत्रित किया जाने लगा है तभी से धारा 118 के प्रावधानो की उल्लंघना के मामले चर्चित होने लगे हैं। इन्ही प्रावधानों के कारण बेनामी खरीद तक का सहारा लिया गया। इस तरह की खरीद 1990 के शान्ता शासन में होने के आरोप लगे और वीरभद्र ने इस पर एस एस सिद्धु की अध्यक्षता मे जांच बैठायी।
इसके बाद भाजपा शासन में आर एस ठाकुर और फिर जस्टिस डी पी सूद की अध्यक्षता मे जांच बिठाई गयी। वीरभद्र के 2003 से 2007 के शासन के दौरान हुई खरीद पर यहां तक आरोप लगे कि चुनाव आचार सहिंता लगने के बाद भी धारा 118 की अनुमतियां दी गई और चुनाव परिणाम आने के बाद तक भी यह अनुमतियां दी गई जब सरकार हार गई हुई थी। इस राजनैतिक नैतिकता से हटकर इन अनुमतियों पर धारा 118 के प्रावधानों की गंभीर उल्लंघना के आरोप लगे हैं। यहां तक की तीन वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी प्रबोध सक्सेना, सुतनु बेहुरिया और देवेश कुमार के खिलाफ भी आरोप लगे। ऐसे कई मामले विधान सभा पटल पर उल्लंघनाओं के ब्योरे सहित रखे गये थे। लेकिन किसी भी मामले में केवल प्रियंका गांधी वाड्रा को छोड कर कोई कारवाई नही हुई है। अब जब जयराम सरकार 92 हजार करोड़ के निवेश को अमली शक्ल देने का प्रयास करेगी तब उस पर ऐसे आरोप लगेंगे यह तय है। ऐसे में सरकार को इस संबंध में विपक्ष के साथ बैठ कर एक स्थायी नीति बनानी चाहिये ताकि भविष्य मे ऐसे मामलों पर विराम लग सके। क्योंकि आज स्थिति यह है कि भू- सुधार अधिनियम की धारा 118 की उल्लघंना दण्डनीय अपराध है। और विधान सभा पटल पर सारा खुलासा आने से बड़ा कोई साक्ष्य नही हो सकता। इस परिदृश्य में यह 97 मामले सरकार के लिये एक कड़ी परीक्षा सिद्ध होंगे यह तय है।