Friday, 19 September 2025
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क्या केन्द्र के निर्देशों की उल्लंघना पर राज्य सरकारों को दंडित किया जायेगा

शिमला/शैल। क्या राज्य सरकार ने कोरोना को लेकर केन्द्र द्वारा 29 जुलाई को जारी दिशा निर्देशों की उल्लघंना की है। यह सवाल केन्द्र सरकार के गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा जारी 22 अगस्त के पत्र से उठा है। इस पत्र में कहा गया है कि कहीं भी आने जाने पर कोई प्रतिबन्ध नही है और इसके लिये ई पास आदि की कोई आवश्यकता नही है। पत्र में  कहा गया है कि केन्द्र ने 29 जुलाई को ही आवाजाही को लेकर सारे प्रतिबन्ध हटा दिये थे और कुछ राज्य से बाहर दूसरे राज्यों मे जाने के लिये 48 घन्टे के अन्दर ही वापिस आने की शर्त पर ही अुनमति मिलती थी। 48 घन्टे से अधिक का समय लगने पर संगरोध में जाने का नियम था। इन प्रतिबन्धों के कारण बहुत लोगों को परेशानी और नुकसान उठाना पड़ा है।
केन्द्र के पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि इस संबंध में उसका या तो राज्य सरकार के साथ तालमेल का अभाव रहा है या फिर असुविधाओं की जिम्मेदारी राज्यों पर डालने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि पहले राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को यह कहा गया कि वह केन्द्र के निर्देशों को  अपने स्तर पर लचीला नहीं कर सकते बल्कि अपनी आवश्यकता के अनुसार और कढ़ा कर सकते हैं। राज्य सरकारों ने इसी कारण से इन प्रतिबन्धों को जारी रखा था जिन्हेें अब हटाने की बात की गयी है। वैसे केन्द्र के इस पत्र के बाद ऐसे कई संशोधित निर्देश राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये हैं और न ही केन्द्र के इस पत्र का कोई खण्डन किया गया है।
कोरोना को लेकर स्थिति पहले से बहुत गंभीर है और हर दिन केस बढ़ रहे हैं। आज हिमाचल में ही मामलों का आंकड़ा पांच हजार से पार जा चुका है जबकि अप्रैल में प्रदेश कोरोना मुक्त होने के कगार पर पहुंच गया था। कोरोना का कोई भी ईलाज अभी तक सामने नही आ पाया है यह एक कड़वा सच है। सरकार इसकी गंभीरता का कोई सही आकलन अभी तक नही कर पायी है यह गृह सचिव के पत्र से स्पष्ट हो जाता है। लाकडाऊन से लेकर आज अनलाक तीन तक इस संबंध में कोई नयी स्वास्थ्य सुविधायें अभी तक नही जुटाई जा सकी है। आज भी अस्पतालों में एक डर का मौहाल स्पष्ट देखा जा सकता है। इस डर के कारण मरीजों को पहले जैसा ईलाज नही मिल पा रहा है क्योंकि हर मरीज को पहले कोरोना की नजर से देखा जा रहा है। बिमारी में भी अस्पताल न जाने की सलाह दी जा रही है।
इस समय कोरोना का डर ही सबसे बड़ा आतंक बन चुका है और इस आतंक से आम आदमी को बाहर निकालने  के कदम उठाने की बजाये डर को और पुख्ता किया जा रहा है। आज भी शैक्षणिक संस्थान और धार्मिक स्थल बन्द चल रहे हैं। अभिभावक बच्चों को स्कूलों में भेजने का साहस नही जुटा पा रहे हैं क्योंकि हर रोज़ बिमारी के आंकड़े बढ़ रहे हैं। क्योंकि व्यवहारिक पक्ष यही है कि बिमारी अभी बढ़ ही रही है और इसका ईलाज कोई है नही। इसी डर के कारण बाज़ार अभी तक 50% पर भी नही पहुंच पाया है। लेकिन इसी सबके बीच जब राजनीतिक गतिविधियां अपने स्तर पर यथास्थिति चल रही हैं तब सरकार की नीयत और नीति दोनों एक साथ शक के दायरे में आ खड़े होते हैं। ऐसे में अब हालात इस मोड़ पर पहुंच चुके हैं कि यदि सही में कोरोना है तो सबसे पहले राजनीतिक गतिविधियों पर पूरा विराम लगाना होगा अन्यथा किसी भी चीज पर किसी भी तरह का कोई प्रतिबन्ध नही रहना चाहिये। आज केन्द्र के पत्र ने राज्य सरकारों पर उनके निर्देशों की उल्लंघना करने का सीधा आरोप लगाया है। क्या इस उल्लघंना के लिये आम आदमी की तर्ज पर राज्य सरकारों/जिला प्रशासन को दण्डित किया जायेगा।




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