Friday, 19 September 2025
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घातक होगा भ्रष्टाचार के मामलों में दोहरे मापदण्ड अपनाना तीनों अधिकारियों के मामलों में बेचने वाले भूमि हीन हो गये हैं भूमिहीन होने के कारण ही अनुराग- अरूण मामले में विजिलैन्स की कैन्सेलेशन रिपोर्ट अस्वीकार हो चुकी हैं

शिमला/शैल। जयराम मन्त्रीमण्डल के दो मन्त्रीयों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप इन दिनों जन चर्चा का विषय बन गये हैं। कांगड़ा से आने वाली मन्त्री सरवीण चौधरी के खिलाफ उनके राजनीतिक विरोधी पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया ने प्रधानमन्त्री से लेकर मुख्यमन्त्री तक को एक पत्र लिखकर आरोप लगाये हैं। लेकिन उन्होंने पत्र में और उसके बाद आयोजित की गयी पत्रकार वार्ता में सीधे मन्त्री का नाम नही लिया। परन्तु इसके बाद जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आयीं उनसे सरवीण चौधरी इंगित में आ गयीं। सरवीण ने स्वयं एक वार्ता में यह कहा कि उनकी ज़मीनें तो सबको दिख गयीं लेकिन जिसने मकान को एक मंजिल से चार मंजिला कर लिया वह नहीं दिखा। इसके बाद सरवीण दिल्ली चली गयीं और फिर वहां जो कुछ घटा उसमें मन्त्री महेन्द्र सिंह को दिल्ली तलब कर लिया गया। महेन्द्र सिंह की दिल्ली तल्लबी इसलिये चर्चा में आ गयी क्योंकि उन्हें शिमला के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द करके जाना पड़ा। इस जाने से महेन्द्र सिंह भी इसी कड़ी की चर्चा में आ गये क्योंकि उनके होटल का मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है।
जब यह सब चर्चा में चल रहा था तभी सरवीण के मामले में विजिलैन्स की सक्रियता भी सामने आ गयी। शायद मुख्यमन्त्री ने विजिलैन्स से इस बारे में रिपोर्ट मांगी थी। अब विजिलैन्स की यह कथित रिपोर्ट भी चर्चा में आ गयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक साढ़े पांच करोड़ की ज़मीन 95 लाख में खरीदी गयी है और इसमें सरकार को भी स्टांप शुल्क के रूप में राजस्व का नुकसान हुआ है। इसी के साथ यह भी चर्चा है कि इस सौदे में बहुत सारा भुगतान नकद हुआ है। यदि इस कथित रिपोर्ट के यह तथ्य सही हैं तो सबसे पहले यह सामने आता है कि कांगड़ा का सारा राजस्व प्रशासन पटवारी से लेकर जिलाधीश तक इस मन्त्री के साथ मिला हुआ था और उनकी मदद कर रहा था। क्योंकि जमीन की कोई भी रजिस्ट्री सर्कल रेट से कम के स्टांप शुल्क पर नहीं होती है। सर्किल रेट जिलाधीश नोटिफाई करता है। रजिस्ट्री पंजीकरण की सारी प्रक्रिया कंम्प्यूटर के माध्यम से होती है और इसमें यदि कोई कमी हो तो वह तुरन्त सामने आ जाती है। फिर तहसीलदार पैसों के नकद लेन-देन को सामान्यतः स्वीकार ही नही करता है। इस तरह पंजीकरण की प्रक्रिया में ही हर कमी उजागर हो जाती है। ऐसे में विजिलैन्स की रिपोर्ट के मुताबिक यदि स्टांप शुल्क के राजस्व का सरकार को नुकसान पहुंचाया गया है तो उसमें क्रेता -विक्रेता से पहले संबंधित राजस्व अधिकारियों के खिलाफ मामला बनता है क्योंकि उनकी मिली भगत के बिना यह संभव हो ही नही सकता।
अब यह मामला सार्वजनिक होकर सबके संज्ञान में आ चुका है। विजिलैन्स की कथित रिपोर्ट आ चुकी है। विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास अवश्य करेगा। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि क्या मुख्यमन्त्री सत्र से पहले ही इस दिशा में कोई कारवाई करते हैं या नहीं और क्या मन्त्री को हटाने के अतिरिक्त कोई दूसरी कारवाई संभव है।
दूसरी ओर 118 की जिन अनुमतियों में कमीयों के मामले विधानसभा पटल तक चर्चित हो चुके हैं उनमें आज तक कोई कारवाई न होना भ्रष्टाचार को लेकर दोहरे मापदण्ड अपनाना होगा। फिर 118 के यह मामले तो जस्टिस डीपी सूद जांच आयोग द्वारा सामने लाये गये हैं। सरकार के अपने तीन बड़े अधिकारियों के मामले इनमें शामिल हैं। तीनों अधिकारियों प्रबोध सक्सेना, देवेश कुमार और सुतनु बेहुरिया के मामलों में जमीन बेचने वाले यह जमीन बेचने के बाद भूमिहीन हो जाते हैं। अनुराग ठाकुर और अरूण धूमल के खिलाफ धर्मशाला में विजिलैन्स ने प्रेमु की जमीन खरीदने पर यही मामला बनाया है। प्रेमु यह जमीन बेचकर भूमिहीन हो गया है। अब जब विजिलैन्स ने इस मामलें में कैन्सेलेशन रिपोर्ट अदालत में दायर की थी तो अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया है। अनुराग और अरूण के खिलाफ यह मामला बनता है तो फिर इन अधिकारियों के खिलाफ क्यों नहीं बनता।
इसी तरह राजकुमार राजेन्द्र सिंह, बनाम एसजेवीएनएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे फ्राड कहा है। 12% ब्याज सहित सारे धन की तीन माह में रिकवरी करने के आदेश है। जयराम सरकार के कार्यकाल में 2018 सितम्बर में यह फैसला आया है लेकिन आज तक इस फैसले पर पूरा अमल नही हो पाया है। फ्राड के खिलाफ कोई मामला दर्ज नही किया गया है। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में दोहरे मापदण्ड अपनाये जा रहे हैं। लेकिन इस बार इन दोहरे मापदण्डों के कारण भाजपा के अपने ही बड़े नेता शिकार हो रहे हैं। जिस मुद्दे पर डा. बिन्दल की छुट्टी की गयी थी। उसमें अब उन्हें क्लीनचिट मिल गयी है। सरवीण चौधरी के मामले में विजिलैन्स ने जो कमीयां उजागर की हैं उससे ज्यादा गंभीर कमीयां अधिकारियों के मामलें में रिकार्ड पर हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार के मामले में दोहरे मापदण्ड अपनाना सरकार के लिये अन्ततः घातक सिद्ध होगा यह तय है।

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