क्या 35 किलो का त्रिशूल भेंट करने और क्या काशी विश्वनाथ में की पूजा का आपस में संबंध है
लेकिन पंडित ने इसका ध्यान न रखकर प्रधानमंत्री से यह पूजा करवा दी। इस अनाधिकारिक प्रयास की शिकायत काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व न्यासी प्रदीप कुमार बजाज ने पी.एम.ओ. और हिमाचल यूके एक न्यूज़ पोर्टल से की है। शिकायत में यह कहा गया है कि ऐसी ही गलती पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी से कमलापति त्रिपाठी ने करवायी थी। इस शिकायत पर भी पी.एम.आ.े द्वारा शायद जांच भी आदेशित हो चुकी है। ऐसे में ज्योतिष और तंत्र के ज्ञाता जब इन दोनों प्रसंगों को एक साथ जोड़ कर देख रहे हैं। तो उनकी प्रतिक्रियाएं सब इस संदर्भ में काफी गंभीर हो रही हैं। यह एक संयोग घटा है कि हिमाचल के मण्डी आयोजन से पहले काशी विश्वनाथ का प्रसंग घट गया और मण्डी में 35 किलो के वजन का त्रिशूल हाथ से नहीं उठाया गया। अब इस सबका प्रदेश और जयराम सरकार पर भी कोई प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है या नहीं यह एक अलग चर्चा का विषय बना हुआ है। हिमाचल को प्रधानमंत्री अपनी यात्रा में कुछ देकर नहीं गये हैं यह सामने है। इसी के साथ यह भी सामने है कि उपचुनावों में हुई शर्मनाक हार के बावजूद सरकार और संगठन में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। प्रधानमंत्री के मण्डी आगमन से पहले मुख्यमंत्री ने एक साक्षात्कार में यह दावा किया था कि सरकार और संगठन में कुछ बदलाव होना अवश्य हो गये हैं और इस संबंध में हाईकमान से बात कर ली गयी है। लेकिन मुख्यमन्त्री के इस दावे के बावजूद अभी तक कोई बदलाव हो नहीं पाया है।
इसी पूरी वस्तुस्थिति पर नजर रख रहे विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री और हाईकमान का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केंद्रित होने के कारण किसी भी प्रदेश के बारे में कोई कार्रवाई नहीं की जा पा रही है। इसलिए हिमाचल को लेकर जो भी फैसला लिया जायेगा वह उत्तर प्रदेश की स्थिति के साथ ही जुड़ा होगा। इस समय दिल्ली, हरियाणा पंजाब, उत्तराखंड आदि प्रदेशों में भाजपा की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। हिमाचल में भी उप चुनाव के परिणामों में भाजपा के लिए खतरे के संकेत स्पष्ट दे दिये हैं। उधर आर.एस.एस. ने भी अपना पूरा ध्यान हिमाचल पर केंद्रित कर रखा है। प्रदेश की हर पंचायत में शाखा स्थापित करने के निर्देश जारी कर दिये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संघ के लिये हिमाचल कितना महत्वपूर्ण है और संघ का भाजपा में क्या स्थान है। प्रदेश में संघ और जयराम सरकार के रिश्तों को लेकर पिछले दिनों कई सवाल भी उठते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि उपचुनाव के परिणामों के बाद संघ और हाईकमान दोनों ही कोई भी कड़ा फैसला लेने से कोई गुरेज नहीं करेगा। क्योंकि जहां हिमाचल आर्थिक कठिनाइयों से गुजर रहा है वहीं पर केंद्र द्वारा अब तक प्रदेश को करीब तीन लाख करोड़ दिये जाने के दावां का कोई खंडन तक जारी नहीं किया है। फिर इसी के साथ सीएजी की यह रिपोर्ट सामने आना की जयराम सरकार ने 96 योजनाओं पर एक भी पैसा तक खर्च नहीं किया है। इससे सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर कई गंभीर सवाल उठ खड़े हुये हैं। इस सब को एक साथ मिलाकर देखने से राज्य सरकार के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है।