Friday, 19 September 2025
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क्या सरकार की प्रस्तावित प्लानिंग पॉलिसी एन.जी.टी. के मानकों के अनुरूप है

नगर निगम चुनावों के आईने में कुछ सवाल

क्या नगर निगम का क्षेत्र विस्तार किया जाना चाहिये
प्रदेश में पिछले 30 दिनों में भूकंप के 32 छटके आ चुके हैं
पिछले एक वर्ष में 250 से ज्यादा भूकंप प्रदेश में आये हैं
क्या इस पर चिंता की जानी चाहिये
क्या नगर निगम चुनाव से पूर्व इन मुद्दों पर राजनीतिक दलों से सवाल नहीं पूछे जाने चाहिये

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनाव मई में होने जा रहे हैं इन चुनावों के लिये कांग्रेस और भाजपा दोनों बड़े राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी चुनाव टीमों की घोषणा कर दी है। वर्तमान में इस नगर निगम पर भाजपा का कब्जा है। इससे पहले महापौर और उपमहापौर दोनों पदों पर सीधे चुनाव में सी.पी.एम. का कब्जा रहा है। उससे पहले लंबे समय तक नगर निगम पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। इस नाते नगर की जनता के सामने तीनों के शासनकाल का तुलनात्मक आकलन करने का पर्याप्त अवसर है। कुछ सोशल मीडिया की पोस्टों के माध्यम से यह भी सामने आ रहा है कि आम आदमी पार्टी भी इस चुनाव में उतरने जा रही है। लेकिन उसकी नीयत और गंभीरता का पता इसी से चल जाता है कि जब उसके नेता जनता से आप या भाजपा दोनों में से एक को चुनने की अपील करते हैं। इस अपील का अर्थ है कि यदि आप को नहीं चाहते हो तो भाजपा को समर्थन दे दो। राजनीतिक दलों के इस आपसी तालमेल के बीच शिमला की मुख्य समस्याओं पर चर्चा उठाना महत्वपूर्ण और आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इस समय प्रदेश में भी भाजपा की सरकार और नगर निगम पर भी उसी का कब्जा है। इन चुनावों से पहले नगर निगम का क्षेत्र विस्तार किया जा रहा है। शिमला से लगते कुछ पंचायतांे के गांव को इसमें मिलाकर 44 वार्ड बनाये जा रहे हैं। इस प्रस्तावित विस्तार के खिलाफ शहर के विभिन्न भागों से आपत्तियां आयी हैं। जिनमें कैथू, भराड़ी और समरहिल प्रमुख हैं। यह आपत्तियां इस कारण आयी कि निगम प्रशासन वर्तमान क्षेत्र में ही सुविधाओं की आपूर्ति उचित रूप से नहीं कर पा रहा है तो क्षेत्र विस्तार के बाद और कठिन हो जायेगा। जबकि निगम ने अधिकांश कार्य प्राइवेट सैक्टर के हवाले कर रखे हैं। नगर निगम के पास अपनी आय के साधन इतने नहीं हैं जिनसे उसके खर्चे निकल सकें। क्योंकि वन आदि संपत्तियां सरकार ने पहले ही निगम से अपने पास ले ली हैं। ऐसे में खर्चे निकालने के लिए सेवायें महंगी करने और लोगों पर करों का बोझ बढ़ाने के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं रह जाता है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कौन सा राजनीतिक दल चुनाव में इस पर बात करेगा।
इससे हटकर इस समय शिमला भवन निर्माणों की सबसे बड़ी समस्या से जूझ रहा है। क्योंकि 1977 में जनता पार्टी के शासन में तब की शांता कुमार सरकार ने प्रदेश को टी.सी.पी. विभाग तो बना कर दे दिया लेकिन इसके लिए कोई स्थाई प्लानिंग पॉलिसी नहीं दे पाये। यह विभाग भी तब इसलिये बनाना पड़ा था कि प्रदेश उससे पहले किन्नौर भूकंप की त्रासदी झेल चुका था और शिमला नगर का भी एक बहुत बड़ा भाग इसकी चपेट में आ गया था। उस समय शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान को जो नुकसान पहुंचा था उसकी भरपाई आज तक सैकड़ों करोड़ खर्च करके नहीं हो पायी है। उस कारण प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये एक निश्चित नियोजन नीति लाने का दबाव आया था। लेकिन तब से लेकर आज तक आयी सरकारें यह पॉलिसी नहीं ला पायी। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि शिमला नगर पालिका से नगर निगम बन गया और भवन निर्माणों को नियोजित करने के लिये इसके पास अपने जो नियम कानून थे उन्हें भी सरकारों ने रिटेंशन पॉलिसीयां लाकर स्वाह कर दिया। अवैध निर्माणों को इन पॉलिसियों के सहारे बढ़ावा दिया जाता रहा। प्रदेश में इस दौरान कांग्रेस और भाजपा की ही सरकारी रही हैं। दोनों सरकारों के समय में रिटेंशन पॉलिसीयां लायी गयी। नौ बार यह पॉलिसी लाकर अवैधताओं को प्रोत्साहित किया गया। इन अवैधताओं का संज्ञान लेकर जब-जब प्रदेश उच्च न्यायालय ने इन्हें रोकने का प्रयास किया तभी दोनों दलों ने अपरोक्ष में हाथ मिलाकर राजभवन को भी प्रभावित किया है। राष्ट्रीय स्तर पर इसको लेकर कई बार चिंतायें व्यक्त की गयी और इन्हीं चिंताओं का परिणाम था कि सरकार को अधिकारियों के स्तर पर कमेटी का गठन करना पड़ा। पहली कमेटी आर.डी.धीमान की अध्यक्षता में बनी और दूसरी तरूण कपूर की अध्यक्षता में। इन कमेटियों की सिफारिशों के आधार पर ही नवम्बर 2017 का एन.जी.टी. का फैसला आया है। इसी फैसले में एनजीटी ने स्थाई प्लानिंग पॉलिसी लाने के निर्देश दिये हैं एन.जी.टी. ने शिमला में नये निर्माणों पर प्रतिबंध लगा रखा है। जिसमें कोर एरिया में तो कड़ा प्रतिबंध है। एन.जी.टी. के फैसले की अनुपालना की जिम्मेदारी स्वभाविक रूप से जयराम सरकार पर आयी। लेकिन भाजपा तो अवैधताओं को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभा चुकी है। इसलिये एन.जी.टी. के फैसले के खिलाफ प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर हो गयी।
इसी बीच सरकार ने सचिवालय में स्व.नरेंद्र बरागटा ने एन.जी.टी. से कुछ निर्माणों की अनुमति मांगी जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी अपने पुराने भवन को गिराकर नया निर्माण करने की अनुमति मांगी। लेकिन उच्च न्यायालय को भी यह अनुमति नहीं दी गयी। इस फैसले में भी एन.जी.टी. ने प्लानिंग पॉलिसी लाने में हो रही देरी के लिये सरकार की निंदा की गयी है। इसमें फिर दोहराया गया है कि शिमला को बचाने के लिये यहां से कार्यालयों को प्रदेश के दूसरे भागों में ले जाया जाये। लेकिन सरकार जो अब करीब तीन सौ पन्नों की शिमला के लिये योजना लेकर आयी है वह एन.जी.टी. और सरकार की अपनी कमेटियों की सिफारिशों से एकदम उलट है। सरकार की पॉलिसी को लेकर आये त्रिलोक जमवाल के ब्यान के मुताबिक सरकार कोर एरिया में भी दो मंजिलें, पार्किंग और एटिक के निर्माण की अनुमति होगी। नॉन कोर एरिया में रिहायशी भवनों के अतिरिक्त दुकानों व्यवसायिक परिसर और होटल आदि के निर्माण की भी सुविधा होगी। भवन निर्माण में तीन मंजिल प्लस पार्किंग और एटिक की अनुमति होगी।
इस परिपेक्ष में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि आखिर एन.जी.टी. निर्माणों पर प्रतिबंध की सिफारिश क्यों कर रहा है। स्मरणीय है कि हिमाचल भूकंप जोन में आता है। शिमला नगर का भी बहुत बड़ा भाग स्लाइडिंग जोन में आता है और सरकार इसे मानती है। उच्च न्यायालय का अपना भवन इसी जोन में है। रिज के धंसने की समस्या लगातार जारी है। पिछले वर्ष कच्ची घाटी में एक आठ मंजिला भवन गिर चुका है। इससे पहले फिंगास्क स्टेट में भी ऐसा हादसा हो चुका है। सरकार के अपने अध्ययन के मुताबिक शिमला में भूकंप आने पर करीब चालीस हजार लोगों की जान जा सकती है। 70% से अधिक निर्माण प्रभावित हो सकते हैं। इस समय ही अदालत में आयी जानकारी के मुताबिक तीस हजार भवनों के नक्शे तक पास नहीं हैं। ऐसी स्थिति में यदि प्रदेश में आ रहे भूकंपों की बात की जाये तो एन.जी.टी. की चिंता को समझा जा सकता है। 4 अप्रैल 1905 को जो कांगड़ा में भूकंप आया था उससे 28000 लोगों की मौत हो गई थी। 1906 में कुल्लू और 1930 में सुल्तानपुर में भूकंप आ चुके हैं। पिछले कुछ अरसे से भूकंप लगातार बढ़ते जा रहे हैं। मेटीरियोलॉजिक सैन्टर के मुताबिक पिछले 30 दिनों में 28-02-2022 तक 4.8 की तीव्रता के 32 झटके प्रदेश में आ चुके हैं। पिछले एक वर्ष में प्रदेश 250 से ज्यादा भूकंप झेल चुका है और हर जिले में भूकंप आ रहे हैं। विभाग के अध्ययन 2018 से बड़े भूकंप की चेतावनी लगातार देते आ रहे हैं। इसका बड़ा कारण पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जाना माना जा रहा है। इस परिदृश्य में यह सरकार की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह राजनीतिक पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर इन अध्ययनों के अनुसार फैसले ले और भविष्य में होने वाले संभावित नुकसान से बचने के कदम उठाये। सरकार जो योजना लेकर आयी है उसका आकलन इन व्यवहारिक पक्षों के आईने में किया जाना चाहिये। यह सही है कि इस पॉलिसी पर एन.जी.टी. भी विचार करेगा। लेकिन सरकारें जिस तरह से पूर्व में अदालत और अपनी ही सिफारिशों को नजरअंदाज करती रही है उसको सामने रखकर इन चुनावों में इस पर एक विस्तृत बहस उठाया जाना आवश्यक हो जाता है।

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