हिमाचल में आप शिक्षा को केंद्रीय मुद्दा बनाने की रणनीति पर चल रही है। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा पर शिमला में जो संवाद शुरू किया था उसके चक्रव्यूह में प्रदेश सरकार फस गई है। उसे जवाब देने पर आना पड़ा है अब हमीरपुर में भी केजरीवाल ने उसी संवाद को आंकड़ों सहित आगे बढ़ाया। इसका जवाब सरकार से आता है या नहीं यह तो आगे पता चलेगा। लेकिन हमीरपुर में जिस तरह से भगवंत मान ने हिमाचल के मिंजर को लेकर अपना ज्ञान लोगों के सामने रखा है उस पर सोशल मीडिया में आ रही प्रतिक्रियाओं ने आप की गंभीरता पर स्वतः ही कई प्रश्न खड़े कर दिये है।ं यही नहीं इसी अवसर पर प्रदेश के नवनियुक्त अध्यक्ष ने जब यह कहा कि पिछले 75 वर्षों से हिमाचल को मुद्दे ही मिल रहे हैं तो उससे भी यही संदेश गया है कि आप का नेतृत्व अभी तक प्रदेश को गंभीरता से नहीं ले रहा है। क्योंकि अभी देश को आजाद हुये ही इतने वर्ष हुये हैं और आप के प्रदेश अध्यक्ष ने एक तरह से भाजपा के ही आरोप को आगे बढ़ाया है कि अब तक देश से लेकर प्रदेश तक जो भी नेतृत्व रहा उसने कुछ नहीं किया है चाहे वह केंद्र में नेहरू काल रहा हो या प्रदेश में डॉक्टर परमार का।
आप हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प होने का दावा कर रहा है इसलिये उसके नेतृत्व द्वारा कहे गये एक-एक शब्द का आकलन किया जायेगा। उससे प्रदेश को लेकर पूरी जानकारी और समझ होने की अपेक्षा की जायेगी। राष्ट्रीय नेतृत्व से एक सूत्र तो मिलेगा लेकिन उस पर पूरी इमारत खड़ी करना प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी होगी। दिल्ली मॉडल तो सही है लेकिन उसको प्रदेश में व्यवहारिक शक्ल देना यहां बैठे आदमी का काम होगा। फिर दिल्ली की जो स्थिति है वह देश के अन्य किसी राज्य की नहीं है। दिल्ली जितना कर राजस्व किसी अन्य राज्य का नहीं है। हिमाचल के संसाधनों और उनके दोहन तथा उपयोग को लेकर एक ठोस समझ बनानी आवश्यक होगी। यहां पर पिछले कुछ वर्षों में रही सरकारों ने प्रदेश के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और इसका परिणाम है प्रदेश का कर्जभार 70000 करोड़ के पार हो जाना। आज जयराम सरकार पर सबसे बड़ा आरोप ही यह है कि उसके शासनकाल में कर्ज और बेरोजगारी दोनों इतने बड़े हैं कि शायद यह अपने इतिहास हो जाये। क्योंकि यह दोनों एक साथ तब बढ़ते हैं जब भ्रष्टाचार का आकार इससे भी बड़ा हो जाये। आज हिमाचल में राजनीतिक विकल्प बनने के लिये प्रदेश की इन समस्याओं की प्रमाणिक जानकारी होना और उसे जनता तक ले जाकर जनता को विकल्प की मांग करने तक लाना होगा। लेकिन अभी तक आप से जुड़े किसी भी नेता से यह उम्मीद नहीं बंधी है कि वह भाजपा और कांग्रेस से बेहतर कर पायेगा। यदि आने वाले दिनों में भी आप की गंभीरता इस संदर्भ में सामने नहीं आती है तो उसके लिये अभी दिल्ली दूर है कि कहावत चरितार्थ हो जायेगी।