शिमला/शैल। कांग्रेस प्रदेश में अगली सरकार बनाने जा रही है यह मानना है राजनीतिक विश्लेषकों का। बल्कि पत्रकारों का वह वर्ग भी ऐसा ही मान रहा है जो मतदान से पहले तक यह लिख रहा था कि भाजपा इस बार जीत का नया रिकॉर्ड स्थापित करेगी। कांग्रेस संगठन और साधनों के स्तर पर भाजपा से जिस कदर कमजोर थी प्रदेश की जनता ने उसी को सामने रखकर कांग्रेस को इतना समर्थन दिया है कि भाजपा का कोई भी प्रयास कांग्रेस को तोड़ नहीं पायेगा। विश्लेषकों की नजर में यह मतदान भाजपा के जुमलों पर उभरे जनाक्रोश पर जनता का कांग्रेस के प्रति एकतरफा समर्थन रहा है। यदि आप या निर्दलीय प्रदेश में एक दो सीट निकाल पाये तो शायद भाजपा को दहाई का आंकड़ा छूना भी कठिन हो जायेगा। लेकिन इसी सबके साथ एक कड़वा सच यह भी है कि भाजपा की केन्द्र में ही सरकार है और 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इन चुनाव में हिमाचल और गुजरात दोनों जगह भाजपा का चुनाव प्रचार केन्द्रीय नेतृत्व पर केंद्रित हो गया है। उससे इन चुनावों में सीधे प्रधानमन्त्री की अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी है। गुजरात में प्रधानमन्त्री ने जिस तरह से वहां की जनता के सामने यह रखा कि विपक्ष मेरी औकात को चुनौती दे रहा है उससे यह प्रमाणित होता है कि यह चुनाव प्रधानमन्त्री केन्द्रित हो गया है। गुजरात में जिस तरह से प्रधानमन्त्री और योगी आदित्यनाथ की जनसभाओं में कुर्सियां खाली रहने के वीडियो सामने आ चुके हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वहा भी स्थिति ज्यादा सुखद नहीं है। गुजरात को लेकर यह टिप्पणी हिमाचल के लिये एक स्पष्ट चेतावनी बन जाती है। क्योंकि भाजपा के लिये हिमाचल हारने के मायने बहुत गंभीर हो जाते हैं और कांग्रेस के अंदर किसी भी तरह से तोड़फोड़ करने के अलावा और कोई विकल्प भाजपा के पास नहीं रह जाता है।
इस परिपेक्ष में यदि चुनाव घोषित होने से पहले के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डाली जाये तो मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के इन बयानों से कि कांग्रेस चुनाव लड़ने लायक ही नहीं बचेगी। भाजपा अपने आरोप पत्र को सीबीआई को भेज देगी। इन्हीं बयानों के बीच कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह का यह ट्वीट आया था कि सीबीआई का स्वागत है। उस समय कांग्रेस के कई नेताओं के नाम मीडिया में उछले थे कि यह लोग भाजपा में जा सकते हैं। पवन काजल और लखविंदर राणा तभी भाजपा में चले गए थे। उसके बाद हर्ष महाजन और मनकोटिया के जाने के कयास और पुख्ता होते जा रहे थे। यदि उस समय विधायक अनिरुद्ध सिंह ने सीधे मुख्यमन्त्री कार्यालय पर ही हमला न बोला होता तो स्थितियां उस समय भी बिगड़ने के कगार पर पहुंच चुकी थी।
लेकिन इसके बाद टिकट आवंटन पर जो स्थितियां दोनों दलों के भीतर उभरी उनमें यह भी चर्चा में आ गया है कि भाजपा ने कांग्रेस के कुछ कमजोर उम्मीदवारों की आर्थिक सहायता की है। कुछ स्थानों पर भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ ही कांग्रेसियों की मदद की गयी है। अभी जिस तरह से मीडिया के कुछ प्रमुख लोगों के साथ मुख्यमन्त्री की बैठक के होने की चर्चा है उसमें सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के अन्दर जीतने के बाद कैसे तोड़फोड़ को अंजाम दिया जा सकता है उसके लिए एक उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार करने की योजना बनाई जा रही है। इस योजना के तहत कांग्रेस के अन्दर मुख्यमन्त्री पद के दावेदारों की लम्बी सूची जन चर्चा में डालने का प्रयास किया जायेगा। ताकि इस पद के दावेदारों की महत्वकांक्षाओं को इतना उभार दे दिया जाये कि स्थितियां मतभेदों से चलकर मनभेदों की स्थिति तक पहुंच जाये। कुछ लोगों के खिलाफ ई.डी.या आयकर की नौबत लाने के लिए पुराने आरोप पत्रों को खंगाला जा रहा है। चर्चा है कि हर्ष महाजन तोड़फोड़ का मास्टर प्लान तैयार करने की योजना पर लग गये हैं। भाजपा की यह योजना कितनी कारगर साबित होती है यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा। लेकिन इसका पूर्व आकलन कांग्रेस को भविष्य के प्रति सजग और सचेत रहने का एहसास अवश्य करवाता है। क्योंकि केन्द्रिय एजेंसियों के सहारे भाजपा कई राज्यों में सरकारें तोड़ने का प्रयास कर चुकी है।
आज यह चर्चा उठाना इसलिये प्रसांगिक हो जाती है कि पिछले दिनों कांग्रेस के कई नेता दिल्ली में केन्द्रिय नेताओं से मिलने आ चुके हैं। कई तो कुछ संभावित विधायकों को लेकर दिल्ली यात्रा कर चुके हैं। दिल्ली जाने वाले सभी वरिष्ठ नेताओं को संभावित मुख्यमन्त्री का चेहरा करार दिया गया है। यही संभावना आपसी मतभेदों का आधार न बन जाये यह आशंका बराबर बनी हुई है। शायद इसी आशंका के चलते सोनिया गांधी ने कुछ नेताओं को मिलने का समय नहीं दिया है। बल्कि यह सामने आया है कि हाईकमान ने कुछ मानक तय किये हैं जो मुख्यमन्त्री होने के लिये कसौटी बनेंगे। यह सही है कि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष और प्रचार कमेटी के चेयरमैन तक सभी नेता इसके पात्र हैं लेकिन फिर भी यह फैसला विधायकों की आम राय से ही होना चाहिए।